स्वच्छ जल व स्वच्छता का अभाव में अरबों लोग – एक ‘नैतिक विफलता’

संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष वोल्कान बोज़किर ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के दौरान भी अरबों लोगों के पास, साफ़ पेयजल व हाथ धोने के लिये बुनियादी सुविधाओं का अभाव था, जोकि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की नैतिक विफलता को दर्शाता है. यूएन महासभा प्रमुख ने सर्वजन के लिये जल व स्वच्छता सुनिश्चित किये जाने के मुद्दे पर गुरुवार को आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक को सम्बोधित करते हुए यह बात कही है.
यूएन महासभा अध्यक्ष ने कहा कि जल की सुलभता, केवल किसी बर्तन में द्रव्य से जुड़ा विषय नहीं है, बल्कि गरिमा, अवसर व समानता जैसे सार्वभौमिक मुद्दों को भी रेखांकित करता है.
विश्व भर में, अब भी, तीन अरब से ज़्यादा लोगों के पास, हाथ धोने के लिये बुनियादी सुविधाओं का अभाव है.
Today’s discussion on water & the #GlobalGoals is long overdue; while water is integral to sustainable development, the fact is that we are nowhere near achieving the goals we have set out. We must focus on tangible, concrete actions that deliver for the people of the world. pic.twitter.com/ptVujoxaQE
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महासभा अध्यक्ष ने कहा, "मैं अगर स्पष्टता से कह सकूँ, तो यह एक नैतिक विफलता है कि हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहाँ उच्चस्तरीय तकनीकी नवाचार और सफलता तो है, लेकिन अरबों लोगों को हमने बिना साफ़ पानी के और हाथ धोने के बुनियादी औज़ारों के बग़ैर जीवन जीने दिया है."
इस बैठक में टिकाऊ विकास के 2030 एजेण्डा के तहत जल-सम्बन्धी लक्ष्यों और उद्देश्यों को लागू किये जाने पर चर्चा हुई, जोकि एक स्वस्थ, बेहतर व न्यायसंगत जगत के निर्माण का ब्लूप्रिन्ट है.
इस एजेण्डा में किसी को भी पीछे ना छूटने देने का वादा किया गया है – टिकाऊ विकास एजेण्डा का छठा लक्ष्य, जल व साफ़-सफ़ाई की सुलभता सुनिश्चित करने पर केन्द्रित है.
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2018 से 2028 को ‘जल कार्रवाई दशक’ घोषित किया है, जिसके ज़रिये जल संसाधनों पर वैश्विक दबाव और सूखा व बाढ़ के जोखिम से निपटने का लक्ष्य रखा गया है.
महासभा प्रमुख ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान, अरबों लोगों के पास हाथ धोने की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के साधन मौजूद नहीं थे.
सबसे कम विकसित देशों में स्वास्थ्यकर्मियों के पास बहते जल तक पहुँच नहीं थी, जोकि "वैश्विक विषमता का एक ज्वलन्त उदाहरण" है.
"हम पीछे लौट कर चीज़ों को बदल तो नहीं सकते लेकिन हमें अपनी विफलताओं को स्वीकार करना होगा, और इस अवसर का इस्तेमाल, उन प्रणालीगत ख़ामियों को दूर करने में किया जाना होगा जिनसे संकट फलता-फूलता रहा है."
संयुक्त राष्ट्र की उपमहासचिव आमिना जे मोहम्मद ने अपने सम्बोधन में आगाह किया कि दुनिया, टिकाऊ विकास के छठे लक्ष्य को पाने से अभी बहुत दूर है.
उन्होंने ध्यान दिलाया कि वर्ष 2030 तक लक्ष्य को हासिल करने के लिये, मौजूदा प्रगति की दर को चार गुना करना होगा.
उपमहासचिव आमिना मोहम्मद ने बताया कि वर्ष 2040 तक, दुनिया में 18 वर्ष से कम आयु वर्ग में, हर चार में से एक बच्चा, (लगभग 60 करोड़ बच्चे) जल संसाधनों पर भारी दबाव से पीड़ित इलाक़ों में रहने को मजबूर होंगे.
उन्होंने अनिवार्य उपायों पर ज़ोर देते हुए कहा कि महामारी से पुनर्बहाली के दौरान टिकाऊ विकास लक्ष्यों में निवेश किया जाना होगा, और जल व साफ़-सफ़ाई की सुलभता में पसरी विषमताओं को दूर किया जाना होगा.
उन्होंने सरकारों से जलवायु कार्रवाई के लिये महत्वाकांक्षा बढ़ाने का भी आहवान किया है, और याद दिलाया है कि 90 प्रतिशत से ज़्यादा प्राकृतिक आपदाएँ जल से सम्बन्धित हैं.
संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद के अध्यक्ष मुनीर अकरम ने स्पष्ट किया कि सुरक्षित पेयजल के क़ानूनी अधिकार को तो मान्यता मिली है, लेकिन इस बुनियादी अधिकार को हर किसी के लिये साकार करने हेतु अब अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को प्रयास तेज़ करने होंगे.
उन्होंने आगाह किया कि वर्ष 2050 तक, दुनिया की आधी से ज़्यादा आबादी के समक्ष, जल संसाधनों पर दबाव के कारण भारी जोखिम होगा.
उन्होंने कहा कि अकेले मरुस्थलीकरण से 100 देशों में एक अरब से ज़्यादा लोगों की आजीविकाओं पर ख़तरा उत्पन्न होता है. जल की भारी क़िल्लत से वर्ष 2030 तक 70 करोड़ लोग विस्थापन के लिये मजबूर हो सकते हैं.
इस बीच, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने गुरुवार को एक नई पहल शुरू की है जिसका लक्ष्य, दुनिया भर में उन 20 प्रतिशत बच्चों तक पहुँचना है, जिनके पास दैनिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त जल नहीं है.
सर्वजन के लिये जल सुरक्षा – नामक पहल के ज़रिये, हर स्थान पर, बच्चों के लिये टिकाऊ और जलवायु-प्रतिरोधी जल सेवाएँ सुनिश्चित की जाएंगी.
यह एक ऐसी समस्या है, जिससे 80 देशों में, एक अरब 42 करोड़ लोग प्रभावित हैं, जिनमें 45 करोड़ बच्चे हैं.