वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

आयु-आधारित पूर्वाग्रह व भेदभाव - हर वर्ष अरबों डॉलर के नुक़सान का कारण

नेपाल के एक गाँव में 69 वर्षीय महिला.
UNICEF/Preena Shrestha
नेपाल के एक गाँव में 69 वर्षीय महिला.

आयु-आधारित पूर्वाग्रह व भेदभाव - हर वर्ष अरबों डॉलर के नुक़सान का कारण

मानवाधिकार

व्यक्तियों की उम्र पर आधारित नकारात्मक रूढ़िवादी मान्यताओं, पूर्वाग्रहों और धारणाओं से ना केवल ख़राब स्वास्थ्य व सामाजिक रूप से अगल-थलग पड़ने की समस्या उभरती है, बल्कि अर्थव्यवस्थाओं को भी अरबों डॉलर का नुक़सान होता है. संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों ने गुरुवार को एक नई रिपोर्ट जारी करके, आयु-आधारित भेदभाव व पूर्वाग्रह से निपटने के लिये तत्काल कार्रवाई किये जाने की पुकार लगाई है. 

यह रिपोर्ट, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA), आर्थिक एवँ सामाजिक मामलों के यूएन विभाग (UNDESA) और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) ने साझा रूप से तैयार की है. 

Tweet URL

यूएन एजेंसियों ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि उम्र के आधार पर भेदभाव या पूर्वाग्रहों (Ageism) के कारण स्वास्थ्य, सामाजिक व न्याय प्रणालियों और अन्य क्षेत्रों में संस्थाओं पर असर हो रहा है.

एक अनुमान के अनुसार, हर एक सेकेण्ड में दुनिया में किसी व्यक्ति को आयु-आधारित भेदभावपूर्ण या पूर्वाग्रही रवैयों का सामना करना पड़ता है. 

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने कहा, “उम्र के आधार पर भेदभाव से, हर किसी को, युवा हों या वृद्ध, नुक़सान पहुँचता है.”

“लेकिन अक्सर, यह हमारे रवैयों, नीतियों, क़ानूनों और संस्थाओं में इतना व्यापक और स्वीकार्य होता है कि हम, हमारी गरिमा पर इसके नकारात्मक प्रभाव को भी नहीं पहचान पाते.”

बहुत से कार्यस्थलों पर, उम्रदराज़ और युवा दोनों अक्सर लाभ से वंचित रह जाते हैं. 

वृद्धजन के लिये, विशिष्ट प्रशिक्षण और शिक्षा की सुलभता, उम्र के साथ काफ़ी हद तक कम हो जाती है, जबकि युवाओं पर इसका असर स्वास्थ्य, आवास और राजनीति में दिखता है, जहाँ उनकी आवाज़ों का ख़ारिज कर दिया जाता है या नकार दिया जाता है. 

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने ज़ोर देकर कहा है कि गहराई से समाई और मानवाधिकार हनन की इस प्रवृत्ति से, सीधी लड़ाई लड़े जाने की ज़रूरत है.

कोविड-19 से उजागर हुई समस्या

रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी से निपटने के दौरान पाया गया कि आयु-आधारित भेदभाव व पूर्वाग्रह का दायरा बहुत व्यापक है.  

बुज़र्गों और युवाओं को सार्वजनिक विमर्शों में व सोशल मीडिया में रूढ़ीवादी ढंग से पेश किया गया. 

चिकित्सा देखभाल व जीवनरक्षक उपचार की सुलभता और एकान्त में अलग रखे जाने के लिये, अक्सर उम्र को कसौटी माना गया.   

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने, कोरोनावायरस संकट से उबरने के दौरान ऐसी रूढ़ियों और भेदभावों को जड़ से उखाड़ फेंकने की अहमियत को रेखांकित किया है. 

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की कार्यकारी निदेशक, नतालिया कानेम ने भी कहा है कि बुज़ुर्गों को अक्सर निर्धनता, लिंग, विकलांगता या अल्पसंख्यक समूह से होने के कारण, एक दूसरे से जुड़े अनेक भेदभावों का सामना करना पड़ता है. 

उन्होंने कहा कि इस संकट को एक ऐसा मोड़ बनाना होगा, जहाँ से बुज़ुर्गों को देखने, उनके साथ व्यवहार किये जाने के रवैयों में तब्दीली लाई जाए ताकि हम साथ मिलकर, सभी उम्र के लोगों के लिये स्वस्थ, गरिमामय विश्व साकार कर सकें.  

अरबों डॉलर की हानि

रिपोर्ट बताती है कि आयु-आधारित भेदभाव व पूर्वाग्रह से, स्वास्थ्य व कल्याण पर असर के साथ-साथ, वैश्विक अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर का नुक़सान होता है. 

अनुमान दर्शाते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में, अगर 55 वर्ष या उससे ज़्यादा उम्र के पाँच फ़ीसदी लोगों को रोज़गार मिले, तो उसका राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर हर वर्ष, 48 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का सकारात्मक असर होगा. 

रिपोर्ट के मुताबिक, उम्र-आधारित भेदभावों की आर्थिक क़ीमतों के सम्बन्ध में डेटा अभी सीमित है. इन हालात के मद्देनज़र, निम्न व मध्य आय वाले देशों में, इसके आर्थिक प्रभावों को पूरी तरह समझने के लिये शोध की आवश्यकता पर बल दिया गया है.  

रिपोर्ट बताती है कि आयु-आधारित भेदभाव से निपटने के लिये नीतियों और क़ानूनों की आवश्यकता है.

साथ ही ऐसी शैक्षिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाना होगा, जिनसे ग़लत धारणाओं को दूर किया जा सके, हमदर्दी को बढ़ावा मिले, और अन्तर-पीढ़ीगत गतिविधियों की मदद से, पूर्वाग्रहों को कम किया जा सके. 

यूएन एजेंसियों ने ज़ोर देकर कहा है कि सभी देशों व पक्षों को, तथ्यों पर आधारित रणनीतियाँ अपनानी होंगी, डेटा संग्रहण प्रक्रिया को बेहतर बनाना होगा, और हमारे सोचने, महसूस करने व काम करने के रवैयों में बदलाव लाना होगा.