'कंगारू मातृत्व' के सहारे बचाई जा सकती हैं लाखों नवजात ज़िन्दगियाँ
विश्व स्वास्थ्य संगठन - WHO ने नवजात शिशुओं को, उनकी माताओं से अलग किये जाने के ख़तरों की तरफ़ ध्यान दिलाते हुए आगाह किया है. एक नए अध्ययन में दिखाया गया है कि नवजात शिशुओं को उनकी माताओं के साथ त्वचा स्पर्श सुनिश्चित करने से, एक लाख 25 हज़ार तक ज़िन्दगियाँ बचाई जा सकती हैं.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी का कहना है कि बहुत से ऐसे मामले देखे गए हैं कि अगर किसी महिला को कोविड-19 वायरस के संक्रमण की पुष्टि हो गई है या संक्रमण होने का सन्देह है, तो भी नवजात शिशुओं को, उनकी माताओं से अलग किया जा रहा है.
Newborns need close contact with parents, especially mothers, after birth.However, in many countries, if #COVID19 infections are confirmed or suspected, newborn 👶 are separated from their mothers, ↗️ risk of death & complications.🆕 research: 👉 https://t.co/L5PXdTyj7u pic.twitter.com/YIbwghg84z
WHO
ऐसा किये जाने से, ऐसे शिशुओं के लिये, मौत का उच्च जोखिम और जीवन भर की स्वास्थ्य जटिलताओं का जोखिम पैदा किया जा रहा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन में मातृत्व, नवजात, बाल और किशोर स्वास्थ्य विभाग की निदेशक अंशु बैनर्जी का कहना है, “कोविड-19 के दौरान, आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ बाधित होने के कारण, बेहद कमज़ोर हालात का सामना करने वाले बच्चों में से कुछ को उपलब्ध स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता गम्भीर रूप से प्रभावित हुई है...”
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के अनुसार, निर्धनतम देशों में सबसे ज़्यादा जोखिम है, जहाँ समय से पहले जन्म होने और नवजात शिशुओं की मौत होने के सबसे ज़्यादा मामले होते हैं.
साथ ही, जन्म के आरम्भिक दिनों में, अभिभावकों के साथ त्वचा स्पर्श यानि कंगारू मातृत्व, और नवजात शिशु को जन्म के शुरुआती दिनों में केवल माँ का दूध ही पिलाने की सेवाओं में बाधा उत्पन्न होने के कारण, जोखिम और भी बढ़ेंगे.
अंशु बैनर्जी का कहना है, “अगर हमने जच्चा-बच्चा के लिये गुणवत्ता वाली देखभाल स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर और टिकाऊ बनाने के लिए, अभी क़दम नहीं उठाए तो, शिशु मृत्यु की दर कम करने में, दशकों के दौरान हासिल की गई प्रगति ख़तरे में पड़ जाएगी.”
विश्व स्वास्थ्य संगठन और उसके साझीदारों द्वारा किया गया ये नया शोध, द लैन्सेट पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.
कंगारू मातृत्व देखभाल
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि कंगारू मातृत्व (माँ-बच्चे का त्वचा स्पर्श) देखभाल सुनिश्चित कराकर, एक लाख 25 हज़ार नवजात शिशुओं की जान बचाई जा सकती है.
ये तरीक़ा ख़ासतौर से उन नवजात शिशुओं के लिये बहुत अहम है जिनका जन्म समय से पहले ही यानि 37 सप्ताहों के गर्भ के बाद ही हो जाता है, या जिन बच्चों का वज़न ढाई किलोग्राम से भी कम होता है.
ऐसे मामलों में, कंगारू मातृत्व का तरीक़ा अपनाकर, नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में 40 प्रतिशत तक की कमी देखी गई है. साथ ही, हाइपोथर्मिया के मामलों में 70 प्रतिशत, और गम्भीर संक्रमण होने के मामलों में 65 प्रतिशत की कमी देखी गई है.
रिपोर्ट लिखने वालों में शामिल, मलावी के स्वास्थ्य मन्त्रालय में स्वास्थ्य मामलों की निदेशक डॉक्टर क्वीन ड्यूब ने फ़ायदे गिनाते हुए कहा है, “कंगारू मातृत्व देखभाल, छोटे व बीमार नवजात शिशुओं का स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिये सबसे ज़्यादा असरदार तरीक़ों में से एक है.”
“हमारा विश्लेषण के अनुसार, नवजात शिशु को, कोविड-19 का संक्रमण लगने के ख़तरे की तुलना में, ये जोखिम कहीं ज़्यादा गम्भीर हैं.”
विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफ़ारिश है कि माताओं को, अपने नवजात शिशुओं को, उन्हें जन्म देने के समय से ही, अपने साथ अपने कमरे में रखना चाहिये.
साथ ही, नवजात शिशुओं को माँ का दूध पिलाने के साथ-साथ, उनके साथ त्वचा स्पर्श भी सुनिश्चित करना चाहिये, यहाँ तक कि कोविड-19 के संक्रमण का सन्देह या पुष्टि होने के मामले में भी.
इनके अलावा, संक्रमण की रोकथाम वाले उपायों को भी समर्थन दिया जाना चाहिये.