खाद्य प्रणालियाँ, एक तिहाई उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार
एक नया अध्ययन दर्शाता है कि विश्व भर में मानव-गतिविधियों के कारण होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की एक-तिहाई से ज़्यादा मात्रा के लिये खाद्य प्रणालियाँ ज़िम्मेदार हैं. संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवँ कृषि संगठन (UNFAO) में जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ फ्रांसेस्को टुबिएलो और इटली में योरोपीय आयोग के साझा शोध केन्द्र के विशेषज्ञों द्वारा, साझा रूप से तैयार की गई यह रिपोर्ट, ‘नेचर फ़ूड’ नामक जर्नल में प्रकाशित हुई है.
भूमि के इस्तेमाल में बदलाव, कृषि उत्पादन, पैकेजिंग और कचरा प्रबन्धन सहित अन्य क्षेत्रों में, खाद्य प्रणालियों के कारण होने वाला उत्सर्जन, वर्ष 2015 में 18 अरब टन, कार्बन डाइऑक्साइड के तुल्य आँका गया.
यह कुल आँकड़े का 34 प्रतिशत है, एक ऐसा हिस्सा जिसमें धीरे-धीरे गिरावट आ रही है. वर्ष 1990 में यह 44 प्रतिशत था.
रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक खाद्य प्रणालियों के उत्सर्जन का दो-तिहाई हिस्सा, भूमि-आधारित क्षेत्र से आता है, जिसमें कृषि, भूमि का इस्तेमाल और उसमें किये जाने वाले बदलाव हैं.
विकासशील देशों में यह आँकड़ा अधिक है, लेकिन वनों की कटाई की रफ़्तार घटने, खाद्य प्रसंस्करण और शीत भण्डारण के कारण इसमें गिरावट आ रही है.
औद्योगिक देशों में मानव गतिविधियों के कारण होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में, खाद्य प्रणालियों का हिस्सा मोटे तौर पर 24 प्रतिशत पर स्थिर है.
लेकिन विकासशील देशों में यह काफ़ी हद तक कम हुआ है. इसकी आंशिक वजह खाद्य से इतर क्षेत्रों से होने वाले उत्सर्जन में हुई तेज़ बढ़ोत्तरी बताई गई है.
वर्ष 1990 में 68 प्रतिशत के स्तर से घटकर, यह 2015 में 39 प्रतिशत पर पहुँच गया है.
चीन, इण्डोनेशिया, अमेरिका, ब्राज़ील, योरोपीय संघ और भारत सबसे ज़्यादा उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं.
खाद्य प्रणालियों से होने वाले उत्सर्जन में कृषि उत्पादन के चरण का योगदान सबसे अधिक है – यह कुल आँकड़े का 39 प्रतिशत है.
भूमि का इस्तेमाल और सम्बन्धित गतिविधियों का योगदान 38 प्रतिशत, और वितरण 29 प्रतिशत के लिये ज़िम्मेदार है.
रिपोर्ट के मुताबिक़, खाद्य प्रणालियों से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में, मीथेन (CH4) लगभग 35 प्रतिशत है, और मवेशियों को पालने और चावल उगाने में उत्सर्जित होती है.
विकासशील और विकसित देशों में यह लगभग बराबर है.
ऊर्जा का बढ़ता इस्तेमाल
रिपोर्ट में बताया गया है कि वैश्विक खाद्य प्रणालियाँ, ऊर्जा गहन (Energy intensive) बनती जा रही है, जोकि फुटकर, पैकेजिंग, परिवहन, और प्रसंस्करण क्षेत्रों में पनपते रुझानों को परिलक्षित करता है.
कुछ विकासशील देशों में इन क्षेत्रों में उत्सर्जन का स्तर तेज़ी से बढ़ रहा है.
औद्योगिक देशों में फ़्लूओरिनेटेड ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ा है, जिसका वैश्विक तापमान में बढोत्तरी पर भारी असर होता है. इन गैसों का इस्तेमाल शीतलन उपकरणों और अन्य औद्योगिक कार्यों में किया जाता है.
रिपोर्ट के अनुसार, प्रशीतन (Refrigeration), फुटकर और सुपरमार्केट सैक्टर में ऊर्जा की लगभग आधी खपत के लिये ज़िम्मेदार है.
दुनिया भर में ‘कोल्ड चेन’ गतिविधियाँ, वैश्विक खाद्य प्रणाली से जनित कुल उत्सर्जन के पाँच फ़ीसदी हिस्से के लिये ज़िम्मेदार है. यह आँकड़ा आने वाले समय में और अधिक बढ़ने की सम्भावना है.
पैकेजिंग का खाद्य प्रणाली उत्सर्जन में 5.4 प्रतिशत योगदान है.
वैश्विक स्तर पर प्रति व्यक्ति, वार्षिक भोजन-सम्बन्धी उत्सर्जन में, 1990 से 2015 तक, एक तिहाई की कमी आई है, जोकि दो टन कार्बन डाइऑक्साइड के तुल्य है.