दुनिया में हर तीन में से एक महिला, हिंसा पीड़ित

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और साझीदार संगठनों का एक नया अध्ययन दर्शाता है कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा, युवा उम्र से ही शुरू हो जाती है और बुरी तरह व गहराई से जड़ें जमाए हुए है. इस रिपोर्ट को महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा पर, अब तक का सबसे विस्तृत अध्ययन बताया गया है, जिसके अनुसार, अपने जीवनकाल में, हर तीन में से एक महिला यानि लगभग 73 करोड़ 60 लाख महिलाओं को, शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है, और इस आँकड़े में पिछले एक दशक में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है.
मंगलवार को जारी रिपोर्ट के अनुसार हिंसा की शुरुआत कम उम्र में ही हो जाती है. 15 से 24 वर्ष आयु वर्ग में, हर चार में से एक महिला को अपने अंतरंग साथी के हाथों हिंसा का अनुभव करना पड़ा है.
🆕data shows that violence against women remains devastatingly pervasive & starts alarmingly young. Across their lifetime, 1⃣ in 3⃣ 👧🧕👩 are subjected to physical or sexual violence by an intimate partner or sexual violence from a non-partner.👉 https://t.co/mvLkJyslpB pic.twitter.com/9XCmqC6Xi5
WHO
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के प्रमुख टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा, “हर देश और संस्कृति में, महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की महामारी है, और कोविड-19 वैश्विक महामारी ने हालात और भी गम्भीर बना दिये हैं.”
उन्होंने क्षोभ ज़ाहिर करते हुए कहा कि, कोविड-19 के उलट, महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा को एक वैक्सीन के ज़रिये नहीं रोका जा सकता. इसके विरुद्ध लड़ाई में, सरकारों, समुदायों व व्यक्तियों को, मज़बूत और सतत प्रयासों की मदद से ही सफलता हासिल करनी होगी.
हानिकारक रवैयों में बदलाव लाकर, सेवाओं व अवसरों की सुलभता बेहतर बनाकर, और स्वस्थ व आदरपूर्ण रिश्ते सुनिश्चित करके.
अंतरंग साथी द्वारा हिंसा, महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा सबसे अधिक व्याप्त रूप बताया गया है, जिससे 64 करोड़ से ज़्यादा महिलाएँ प्रभावित हैं.
लेकिन, दुनिया में छह फ़ीसदी महिलाओं ने बताया कि उनके पति या साथी के बजाय, उन्हें अन्य लोगों से यौन हमले का अनुभव करना पड़ा.
यौन दुर्व्यवहार के सभी मामलों के दर्ज ना हो पाने और कथित कलंक की वजह से, वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा हो सकती है.
इस रिपोर्ट को, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के मुद्दे पर, अब तक का सबसे बड़ा अध्ययन क़रार दिया गया है, जोकि वर्ष 2000 से 2018 तक एकत्र किये गए आँकड़ों पर आधारित है.
ताज़ा रिपोर्ट में वर्ष 2013 में जारी किये गए अनुमान में ताज़ा-तरीन जानकारी व आँकड़े जोड़े गए हैं.
आँकड़ों के अनुसार, महिलाओं व लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा का ऊँचा स्तर चिन्ताजनक है.
लेकिन मौजूदा हालात पर, कोविड-19 महामारी के असर का आकलन नहीं हो पाया है.
यूएन एजेंसी और अन्य साझीदार संगठनों ने सचेत किया है कि महामारी के दौर में, तालाबन्दी होने व समर्थन सेवाओं में व्यवधान आने से, महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा होने की सम्भावना बढ़ी है.
महिला सशक्तिकरण के लिये यूएन संस्था – यूएन वीमैन (UN Women) की प्रमुख फ़ूमज़िले म्लाम्बो न्गुका ने बताया कि कोविड-19 के बहुत तरह केअसर हुए हैं, और महिलाओं व लड़कियों के ख़िलाफ़ हर प्रकार की हिंसा बढ़ी है.
“इससे निपटने के लिये, हर सरकार को मज़बूत व सक्रिय उपाय करने होंगे, और इन उपायों में महिलाओं को शामिल करना होगा.”
अनेक देशों में तालाबन्दी के दौरान, अंतरंग साथी द्वारा हिंसा के कारण, हैल्पलाइन, पुलिस, स्वास्थ्यकर्मी, अध्यापकों और अन्य सेवा प्रदाताओं के पास ऐसे मामले पहुँचे हैं.
रिपोर्ट बताती है कि कोविड-19 महामारी के असर का पूर्ण आकलन सर्वेक्षण शुरू होने के बाद ही किया जा सकेगा.
अध्ययन दर्शाता है कि हिंसा से निम्न और निम्नतर आय वाले देशों में रह रही महिलाएँ ज़्यादा प्रभावित हैं.
निर्धनतम देशों में 37 फ़ीसदी महिलाओं ने अपने जीवन में, अंतरंग साथी द्वारा शारीरिक और/या यौन हिंसा का अनुभव किया है. कुछ देशों में तो यह आँकड़ा 50 प्रतिशत तक है.
ओशेनिया, दक्षिणी एशिया, और सब-सहारा अफ़्रीका में, 15 से 49 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं में अंतरंग साथी द्वारा हिंसा के मामलों की दर सबसे ज़्यादा है जोकि 33 से 51 प्रतिशत के बीच है.
योरोप में यह सबसे कम 16 से 23 प्रतिशत, मध्य एशिया में 18 प्रतिशत, पूर्वी एशिया में 20 प्रतिशत और दक्षिण पूर्वी एशिया में 21 प्रतिशत है.
विशेषज्ञों का कहना है कि हिंसा के सभी रूपों का, महिलाओं के स्वास्थ्य व कल्याण पर बुरा असर हो सकता है, जिसके दुष्प्रभाव लम्बे समय तक जारी रह सकते हैं.
हिंसा के इन मामलों को, ज़ख़्मी होने के जोखिम, मानसिक अवसाद, बेचैनी, अनचाहे गर्भधारण, यौन-संचारित बीमरियों और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जोड़ कर देखा जाता है.
बताया गया है कि हिंसा की रोकथाम के लिये प्रणाली में समाई आर्थिक व सामाजिक विषमताओं को दूर करना, शिक्षा व सुरक्षित रोज़गार सुलभ बनाना, और भेदभावपूर्ण लैंगिक मानकों व संस्थाओं में बदलाव लाना ज़रूरी है.
सफल उपाय सुनिश्चित करने के लिये, ऐसी रणनीतियाँ भी अपनाई जानी होंगी जिनसे पीड़ितों को अहम सेवाएँ उपलब्ध कराई जाएँ, महिला संगठनों को समर्थन हासिल हो, अन्यायपूर्ण सामाजिक मानकों को चुनौती दी जाएँ, भेदभावपूर्ण क़ानूनों में सुधार किया जाए और क़ानूनी कार्रवाई को मज़बूती प्रदान की जाए.