वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

'कोविड-19: वायरस भेदभाव नहीं करता, समाज करता है'

दुनिया भर में स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में अधिकाँश कर्मचारी महिलाएँ हैं.
© Aboudou Souleymane
दुनिया भर में स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में अधिकाँश कर्मचारी महिलाएँ हैं.

'कोविड-19: वायरस भेदभाव नहीं करता, समाज करता है'

स्वास्थ्य

वैश्विक महामारी कोविड-19 से निपटने के प्रयासों में अग्रिम मोर्चे पर मुस्तैद महिला चिकित्सकों और वैज्ञानिकों का कहना है कि मौजूदा संकट ने महिलाओं के लिये स्वास्थ्य देखभाल की सुलभता और पेशवर जगत में समाई, लैंगिक खाईयों को उजागर किया है. उन्होंने लैंगिक चुनौतियों की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि कोरोनावायरस ने तो भेदभाव नहीं किया, लेकिन समाजों ने ज़रूर किया है. 

वैश्विक स्वास्थ्य में महिलाएँ नामक संस्था की कार्यकारी निदेशक डॉक्टर रूपा धत और कोविड-19 वैक्सीन के विकास में अहम भूमिका निभाने वाली, ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर साराह जिलबर्ट व जर्मन कम्पनी बायोएनटेक में डॉक्टर ओज़लेम तुएर्ची, सोमवार को, विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रेस वार्ता में,शामिल हुईं.  

Tweet URL

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के प्रमुख टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने बताया कि महामारी का महिलाओं पर विषमतापूर्ण असर हुआ है. 

उन्होंने कहा कि घरेलू हिंसा में बढोत्तरी दर्ज किये जाने के साथ-साथ, बेरोज़गारी के ऊँचे स्तर सहित अन्य चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

महानिदेशक घेबरेयेसस ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि दुनिया भर में अधिकांश स्वास्थ्यकर्मी (70 प्रतिशत) महिलाएँ हैं, लेकिन नेतृत्व पदों पर उनकी संख्या एक चौथाई से भी कम है.

यूएन एजेंसी ने, पिछले महीने, समानतापूर्ण स्वास्थ्य के लिये, ‘Gender Equal Health’ नामक पहल शुरू की है. 

इसका उद्देश्य, स्वास्थ्य क्षेत्र में शीर्ष पदों पर महिलाओं की संख्या बढ़ाना, समान वेतन को बढ़ावा देना, और स्वास्थ्यकर्मियों के लिये सुरक्षित एवं शिष्ट माहौल सुनिश्चित करना है. 

अमेरिका में डाक्टर रूपा धत ने बताया कि, अपने संगठन का विस्तार करने, घरेलू ज़िम्मेदारियाँ निभाने और कोविड-19 मरीज़ों का उपचार करने के बीच, पिछला वर्ष एक उतार-चढ़ाव भरा अनुभव रहा है.

उन्होंने सचेत किया कि महामारी ने जिन बुनियादी ख़ामियों और विषमताओं को उजागर किया है, उन्हें अगले वैश्विक संकट से पहले ही सुलझाया जाना होगा.

डॉक्टर धत ने ध्यान दिलाया कि स्वास्थ्य व देखभाल सैक्टर में महिलाओं के बेहतरीन कार्य के बावजूद, उन्हें निर्णय-निर्धारण प्रक्रिया में बराबर का स्थान नहीं मिला है.

इसके परिणामस्वरूप उनकी प्रतिभा और विशेषज्ञता का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

उन्होंने क्षोभ ज़ाहिर करते हुए कहा कि, सबसे बुरे संक्रमण का शिकार अधिकांश मरीज़, काले और लातिन अमेरिकी मूल के थे, जोकि नई बात नहीं है. “कोविड-19 वायरस भेदभाव नहीं करता, समाज करते हैं.” 

महामारी से करियर पर असर

ब्रिटेन के ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर साराह जिलबर्ट ने अतीत में इन्फ़्लुएन्ज़ा, ईबोला और अन्य बीमारियों के लिये वैक्सीन पर काम किया है.

उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान महिलाओं के विशाल योगदान को रेखांकित करते हुए बताया कि ऑक्सफ़र्ड-ऐस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन पर काम कर रही टीम में दो-तिहाई महिलाएँ थीं. 

“लेकिन, टीम में वरिष्ठ पदों पर केवल एक तिहाई महिलाएँ हैं.”

चिन्ता जताई गई है कि महामारी के दौरान पुरुषों की तुलना में, महिलाओं के करियर और आजीविका पर इसका असर ज़्यादा हुआ है, और संकट से उबरते समय इस पहलू को नज़रअन्दाज़ नहीं किया जाना होगा.

हालाँकि बायोएनटेक कम्पनी में हालात इससे अलग हैं, जिसकी नींव डॉक्टर ओज़लेम तुएर्ची ने अपने पति प्रोफ़ेसर उगुर साहीन के साथ मिल कर रखी थी.

इस कम्पनी के कर्मचारियों में 54 फ़ीसदी महिलाएँ हैं और लगभग 50 फ़ीसदी वरिष्ठ पदों पर भी उन्हें प्रतिनिधित्व मिला है.

“हम सोचते हैं कि लैंगिक रूप से सन्तुलित टीम बनाना, असम्भव प्रतीत हो रहे काम को सम्भव बनाने में अहम रहा है: कोविड-19 वैक्सीन,  बिना किसी 'शॉर्ट कट' के, 11 महीने में विकसित करना.”

ग़ौरतलब है कि बायोएनटेक वैक्सीन को औषधि बनाने वाली कम्पनी फ़ाइज़र के साथ मिलकर तैयार किया गया और इस्तेमाल के लिये अनुमति पाने वाली यह पहली वैक्सीन थी. 

ऑक्सफ़र्ड-ऐस्ट्राज़ेनेका के साथ, ये दोनों वैक्सीनें अब कोवैक्स पहल का हिस्सा हैं, जिसका लक्ष्य सभी स्थानों पर न्यायसंगत ढंग से वैक्सीन का वितरण सुनिश्चित करना है.