यातना पर पाबन्दी लगाने के लिये 'संकल्प का अभाव'

संयुक्त राष्ट्र के एक स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा है कि यातना और क्रूर बर्ताव के अन्य रूपों पर पाबन्दी लगाए जाने के लिये सरकारों ने फ़िलहाल ऐसा संकल्प नहीं दिखाया है, जिस पर भरोसा किया जा सके. दुनिया भर में यातना से जुड़े मामलों की निगरानी के लिये नियुक्त, यूएन के विशेष रैपोर्टेयर निल्स मेल्ज़र ने मानवाधिकार परिषद के समक्ष अपनी नई रिपोर्ट पेश की है.
इस रिपोर्ट में आधिकारिक स्तर पर सूचनाओं के आदान-प्रदान और देशों की यात्रा करने के अनुरोधों पर देशों की सरकारों के रुख़ की समीक्षा की गई है.
विशेष रैपोर्टेयर निल्स मेल्ज़र ने बताया कि यातना दिये जाने के आरोपों पर, सरकारों की प्रतिक्रिया, पूर्ण चुप्पी साधने से लेकर, ऐसे अनुरोध को आक्रामक ढंग से रद्द किया जाना तक है.
UN expert @NilsMelzer says States’ interactions with his mandate fail to meet required standards and demonstrate lack of genuine commitment to prohibition of #torture & ill-treatment. #HRC46 report 👉 https://t.co/KyeH3keQtY pic.twitter.com/Lwp3Vfy9j9
UN_SPExperts
उनकी ओर से जारी एक वक्तव्य में कहा गया है कि ऐसे आरोपों को बिना किसी आधार के नकारे जाने, लालफ़ीताशाही की रुकावटें पैदा करने और दिखावटी दावों से, यातना के लिये ज़िम्मेदार लोगों को, क़ानून की पकड़ से बच निकलना सुनिश्चित होता है.
इससे पीड़ितों को मदद और मुआवज़ा दिला पाना सम्भव नहीं हो पाता.
रिपोर्ट में इस बात की पड़ताल की गई है कि राष्ट्रीय प्राधिकरणों ने, यूएन रैपोर्टेयर के साथ किस तरह सहयोग किया है.
यह समीक्षा वर्ष 2016 से 2020 तक, लगभग 500 सूचनाओं के आदान-प्रदान पर आधारित है.
बताया गया है कि इनमे से 90 प्रतिसत से ज़्यादा मामलों में सरकारों का जवाबी रुख़, सहयोग के लिये मानवाधिकार परिषद के मानकों पर खरा नहीं उतरता.
विशेष रैपोर्टेयर निल्स मेल्ज़र ने कहा, “अतीत के वर्षों में, दुनिया के सभी क्षेत्रों में सरकारों के ध्यानार्थ लाए गए, यातना व बुरे बर्ताव के, 10 में से 9 मामलों को या तो पूरी तरह नज़रअन्दाज़ कर दिया गया या फिर हनन को प्रभावी ढंग से रोकने, जाँच करने या उसे सुधारने के लिये उपाय नहीं किये गए.”
उन्होंने बताया कि यह स्थिति, देशों का दौरा करने के लिये भेजे गए आवेदनों के सम्बन्ध में भी है. विशेष रूप से उन देशों में, जहाँ यातना व बुरे बर्ताव के मामले अक्सर सामने आते हैं.
“देशों की यात्राएँ करने के हमारे अनुरोधों में से लगभग 80 प्रतिशत को, सरकारों ने या तो नज़रअन्दाज़ कर दिया, टाल दिया या फिर नकार दिया. इस वजह से हम, उन जगहों की स्वतन्त्र निगरानी के लिये यात्राएँ नहीं कर पाए, जहाँ इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है.”
उन्होंने स्पष्ट किया कि जिन देशों ने यूएन विशेषज्ञों को निमन्त्रण भेजा, वे भी अपने संकल्पों को पूरा करने में विफल रहे हैं.
यूएन विशेषज्ञ ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि यातना और बुरे बर्ताव पर सार्वभौमिक पाबन्दी, अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में बार-बार दोहराया जाने वाला कोई नारा नहीं है.
इसके तहत, मुश्किल फ़ैसलों और अप्रिय सच का सामना करने के लिये राजनैतिक संकल्प व साहस की आवश्यकता होगी.
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय को अपनी सिफ़ारिशों में कहा है कि देशों और यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों के बीच आपसी सम्पर्क व बातचीत का आकलन करने और उसमें सुधार लाने के लिये एक प्रक्रिया स्थापित किये जाने की आवश्यकता है.
विशेष रैपोर्टेयर
स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतन्त्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतन्त्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.