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'डूबना या तैरना, एक साथ': कोवैक्स के बारे में 5 अहम बातें

कोवैक्स कार्यक्रम के तहत, कोविड-19 वैक्सीन की पहली खेप, भारत से घाना भेजने की तैयारी, 23 फ़रवरी 2021. भारत के सीरम संस्थान में लाइसेंस के तहत वैक्सीन बनाई जा रही है.
© UNICEF/Ragul Krishnan
कोवैक्स कार्यक्रम के तहत, कोविड-19 वैक्सीन की पहली खेप, भारत से घाना भेजने की तैयारी, 23 फ़रवरी 2021. भारत के सीरम संस्थान में लाइसेंस के तहत वैक्सीन बनाई जा रही है.

'डूबना या तैरना, एक साथ': कोवैक्स के बारे में 5 अहम बातें

स्वास्थ्य

कोविड-19 महामारी के सन्दर्भ में, हाल के दिनों में कोवैक्स का बहुत ज़िक्र सुना - देखा गया है. ख़ासतौर पर, यह कहते सुना गया है कि कोविड-19 की वैक्सीन की पहली खेप, कोवैक्स के तहत घाना व अन्य अफ़्रीकी देशों को भेजी गई है. कोवैक्स के बारे में कुछ अहम जानकारी, यूएन न्यूज़ ने तैयार की है...

1) कोवैक्स क्या है?

कोवैक्स (कोविड-19 वैश्विक वैक्सीन सुलभता), दरअसल, एसीटी-एक्सेलेरेटर कार्यक्रम के तहत वैक्सीन चरण है जिसका नेतृत्व विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), अन्तरराष्ट्रीय साझीदारों के साथ मिलकर कर रहा है.

ऐसी उम्मीद की जा रही है कि कोवैक्स कार्यक्रम के तहत, वर्ष 2021 के दौरान, लगभग 2 अरब ख़ुराकें उपलब्ध कराई जाएंगी.

कोवैक्स का उद्देश्य, कोरोनावायरस का मुक़ाबला करने के लिये प्रभावशाली रणनीति और औज़ार विकसित करना है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि कोवैक्स कार्यक्रम के तहत, किसी बीमारी का मुक़ाबला करने के लिये, इतिहास में सबसे तेज़ वैश्विक, सर्वाधिक समन्वित और सफल प्रयासों को सहारा व समर्थन दिया गया है.

कोवैक्स पहल का मक़सद वर्ष 2021 के दौरान, कोविड-19 वैक्सीन की लगभग 2 अरब ख़ुराकें उपलब्ध कराना है, जिनमें से अधिकतर निर्धन देशों के लिये होंगी. इन ख़ुराकों के ज़रिये, उन  देशों की लगभग 27 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण किया जाना है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन कोविड-19 स्वास्थ्य संगठन शुरू होने के समय से ही, कहता रहा है कि “जब तक हर एक व्यक्ति सुरक्षित नहीं है, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है.”

अलबत्ता, धनी देशों के पास इतने संसाधन मौजूद हैं कि उन्होंने कोविड-19 की वैक्सीन की ख़ुराकें, भारी मात्रा में पहले से ही अपनी ख़रीद के लिये सुरक्षित कर लीं ताकि जब औषधि बनाने वाली कम्पनियों की वैक्सीन को प्रयोग के लिये हरी झण्डी मिले तो उन देशों की आबादी, ये वैक्सीन हासिल करने वालों में, अग्रणी पंक्ति में रहे.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इस तरह के चलन के ख़िलाफ़ आगाह करते हुए ज़ोर देकर कहा है कि वैक्सीन सभी इनसानों के लिये उपलब्ध होनी चाहिये.

ब्रिटेन के ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय ने कोरोनावायरस की वैक्सीन विकसित की है जिसे,प्रयोगों के दौरान, इस महामारी के लक्षण रोकने में काफ़ी असरदार पाया गया है.

2) कोवैक्स कार्यक्रम कैसे चल रहा है?

कोवैक्स कार्यक्रम को धनी देशों व निजी दानदाताओं ने धनराशि दान की है जिसके तहत, 2 अरब डॉलर से अधिक की रक़म एकत्र हो चुकी है.

कोवैक्स पहल, महामारी शुरू होने के कुछ ही महीनों के भीतर आरम्भ कर दी गई थी, ताकि जब कारगर व सफल वैक्सीनें बाज़ार में आएँ तो, निर्धन देशों में रहने वाले लोगों को, नज़रअन्दाज़ ना कर दिया जाए.

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़ ने, वृहद अमेरिका स्वास्थ्य संगठन (PAHO) के साथ मिलकर, वैक्सीन ख़ुराकों की ख़रीद और आपूर्ति के प्रयासों की अगुवाई करनी शुरू कर दी है. 

निम्न व निम्नतर आय वाले लगभग 92 देश, कोवैक्स की मदद से, वैक्सीन ख़रीद रहे हैं, और ऐसा अनुमान है कि निर्धनतम नागरिकों को वैक्सीन की ख़ुराकें, मुफ़्त दी जाएँगी. उच्च आमदनी वाले लगभग 80 देशों ने, अपने यहाँ कोविड-19 वैक्सीन टीकाकरण का ख़र्च सरकारी बजट से उठाने की घोषणा की है.

3) कोवैक्स पहल में, कौन सी वैक्सीन वितरित की जा रही हैं?

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने, वर्ष 2020 के अन्त तक मौजूद और सम्भावित वैक्सीनों की लगभग 2 अरब ख़ुराकों की ख़रीद, सुरक्षित कर ली थी जिन्हें दुनिया भर में अनेक स्थानों पर भेजा जाना था.

वो सारी वैक्सीनें, वायरस के ख़िलाफ़ बहुत ज़्यादा असरदार नहीं होंगी, मगर इतनी बड़ी संख्या में, वैक्सीन ख़ुराकों का भण्डार सुनिश्चित करने का मतलब है कि यूएन स्वास्थ्य एजेंसी, ये बात पूरी तसल्ली और भरोसे के साथ कह सकती है कि कोवैक्स कार्यक्रम के तहत, वर्ष 2021 के मध्य तक, भागीदार देशों में स्वास्थ्य व सामाजिक कर्मियों की सुरक्षा के लिये, उपलब्ध करा दी जाएंगी. 

फ़ाइज़र-बायोएनटैक वैक्सीन की कुल सहमत 4 करोड़ ख़ुराकों में से, लगभग 12 लाख ख़ुराकें, वर्ष 2021 की पहली तिमाही के दौरान, 18 देशों में पहुँचाई जाएंगी. इस वैक्सीन को अत्यधिक शीत भण्डारण सुविधा की ज़रूरत है. उसकी तुलना में, ऐस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफ़र्ड वैक्सीन की लगभग 33 करोड़ 60 लाख ख़ुराकें, उन तमाम देशों को भेजी जाएंगी जो कोवैक्स कार्यक्रम में शामिल हैं, अफ़ग़ानिस्तान से लेकर ज़िम्बाब्वे तक.

4) कोवैक्स के तहत सबसे पहले किन देशों को वैक्सीन पहुँचाई जा रही है?

कोविड-19 महामारी की ऐस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफ़र्ड वैक्सीन, लाइसेंस के तहत, भारत में निर्मित की जा रही है.

24 फ़रवरी को, ऐस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफ़र्ड वैक्सीन की लगभग 6 लाख ख़ुराकों की खेप, घाना पहुँची जिन्हें उत्पादन लाइसेंस के तहत भारत में बनाकर, वहीं से रवाना किया गया.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे एक ऐतिहासिक घटनाक्रम क़रार देते हुए इसका ज़ोरदार स्वागत किया जिससे दुनिया भर में, कोविड-19 वैक्सीन के समान और न्यायसंगत वितरण का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी.

इस खेप तुरन्त बाद, ऐस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफ़र्ड वैक्सीन की लगभग 5 लाख ख़ुराकों की अन्य खेप, आइवरी कोस्ट भी पहुँचाई गई है.

ये आरम्भिक खेपें, उस बड़े बेड़े का हिस्सा हैं जिसके तहत, शुरुआती चरण में  लगभग 9 करोड़ ख़ुराकें, अफ्रीकी देशों को, वर्ष 2021 की पहली छमाही के दौरान भेजी जानी है. 

ऐसी उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2021 के अन्त तक, जब वैक्सीन निर्माण क्षमता व उपलब्धता काफ़ी बढ़ जाएगी तो, लगभग 60 करोड़ ख़ुराकें उपलब्ध कराई जाएंगी. जिसका अर्थ है कि तब तक, अफ्रीकी देशों की लगभग 20 प्रतिशत अन्य आबादी का भी टीकाकरण कर दिया जाएगा. 

5) कोवैक्स कार्यक्रम क्यों महत्वपूर्ण है?

कोविड-19 वायरस ने इनसानों पर बहुत विनाशकारी प्रभाव डाला है. दुनिया भर में, इस वायरस के कारण, लगभग 25 लाख लोग, मौत के मुँह में जा चुके हैं.

बहुत अन्य लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा है और बहुत से लोगों को गम्भीर तकलीफ़ों और दर्दनाक अनुभवों से गुज़रना पड़ा है. कोवैक्स कार्यक्रम का इरादा, ज़िन्दगियों के इस भारी नुक़सान को रोकना और लगातार बीमारी व अस्वास्थ्य पर लगाम कसना है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस.

इसके अतिरिक्त कोरोनावायरस की रोकथाम के लिये लागू किये गए यात्रा प्रतिबन्धों, तालाबन्दियों और अन्य उपायों की वजह से अरबों लोगों का जीवन बाधित हुआ है.

करोडों लोगों के रोज़गार व आमदनी वाले कामकाज ख़त्म हो गए हैं क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारी व्यवधान पैदा हुआ है. स्वास्थ्य सेवाओं पर भी भारी बोझ पड़ा है जिसके कारण, कोविड-19 से इतर बीमारियों के मरीज़ों को अपना इलाज करा पाना और भी ज़्यादा मुश्किल हो गया है.

ऐसी आशा की जा रही है कि कोवैक्स कार्यक्रम के तहत उपलब्ध कराई जा रही वैक्सीन के माध्यम से, इस तरह के नुक़सान वाले चलन को पलटा जा सकेगा और दुनिया सामान्य जन-जीवन की तरफ़ लौट सकेगी; हालाँकि कोविड-19 के बाद की सामान्य स्थिति कैसी होगी, इस पर अब भी अनिश्चितता बरक़रार है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस ने ध्यान दिलाया है कि कोवैक्स कार्यक्रम कोई परोपकारी (Charity) प्रयास नहीं है: आपस में घनिष्टता से जुड़ी हुई एक वैश्विक अर्थव्यवस्था में, सभी देशों में आसानी से उपलब्ध होने वाली असरदार वैक्सीन ही, इस महामारी पर क़ाबू पाने का सबसे तेज़ रास्ता है. ऐसा करके ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को फिर से तेज़ी के साथ पटरी पर लाया जा सकता है और टिकाऊ पुनर्बहली सुनिश्चित की जा सकती है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के मुखिया के शब्दों में, “डूबना या तैरना, एक साथ ही होना है”.

COVAX: Ensuring global equitable access to COVID-19 vaccines