ग्वान्तनामो बन्दीगृह में मानवाधिकार हनन के मामलों पर ध्यान देने की पुकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि अमेरिका सरकार द्वारा, क्यूबा में कुख्यात ग्वान्तनामो बे बन्दीगृह को बन्द करने पर विचार किये जाने की घोषणा के बाद, यह भी ज़रूरी है कि वहाँ अब भी बन्द लगभग 40 क़ैदियों के ख़िलाफ़ हो रहे मानवाधिकार हनन के मामलों पर ध्यान दिया जाय.
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR), के मंगलवार को जारी एक वक्तव्य में कहा गया है कि उस बन्दीगृह में रखे गए बन्दियों के साथ कथित अत्याचारों और अन्य तरह के दुर्व्यवहारों की जाँच होनी चाहिये.
🇺🇸#UnitedStates: Ongoing violations of #HumanRights being committed against the 40 remaining detainees – including torture & other ill-treatment – must be addressed in the review of how to close #GuantanamoBay detention centre – UN experts. Learn more: https://t.co/T3k0tw1ZIO pic.twitter.com/KG54DZUAjd
UN_SPExperts
ग्वान्तनामो बे बन्दीगृह दरअसल न्यूयॉर्क और वाशिंगटन पर 11 सितम्बर 2001 को हुए हमलों के मद्देनजर, विदेशी आतंकवादी संदिग्धों को हिरासत में रखने के लिये बनाया गया था.
राष्ट्रपति जो बाइडेन की नई अमेरिकी सरकार ने, 12 फ़रवरी को कहा था कि इस सैन्य बन्दीगृह को बन्द करने के लिये औपचारिक समीक्षा शुरू की जा रही है.
पूर्ववर्ती ओबामा सरकार के दौरान इसे बन्द करने के हुए विफल प्रयास को पुनर्जीवित करके, इस पर दोबारा कार्यवाही शुरू की गई है.
ग़ौरतलब है कि वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने, ओबामा सरकार में उपराष्ट्रपति के रूप में कार्य किया था.
संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों के समूह ने कहा है, "हम इस हिरासत गृह को बन्द करने के लक्ष्य का स्वागत करते हैं, जो आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध के दौरान किये गए मानवाधिकारों और मानवीय क़ानूनों के उल्लंघन के लिये, दंडमुक्ति ख़त्म किये जाने के, हमारे पिछले आहवान के पूर्णतया अनुरूप है."
उन्होंने कहा, “9/11 हमलों की 20वीं वर्षगाँठ के अवसर पर, हम जेल और सैन्य आयोगों के संचालन व उनकी विरासत की, पारदर्शी, व्यापक और जवाबदेही केन्द्रित समीक्षा का आग्रह करते हैं.”
वक्तव्य के मुताबिक, विशेषज्ञों का कहना है कि वहाँ रखे गए शेष बन्दियों में से अनेक, अब कमज़ोर और बूढ़े हो चुके हैं.
अनेक मामलों में, उनकी शारीरिक और मानसिक अखंडता को "स्वतन्त्रता के अभाव और सम्बन्धित शारीरिक व मनोवैज्ञानिक यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक सज़ा" ने तार-तार कर दिया है.
स्वतन्त्र विशेषज्ञों ने ज़ोर देकर कहा कि “जिन नीतियों व प्रथाओं के तहत इस तरह के बन्दीगृह और सैन्य आयोग बने, उन्हें ख़ारिज करना बेहद ज़रूरी है, जिससे "अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के स्पष्ट उल्लंघन की पुनरावृत्ति न हो."
उन्होंने यह भी कहा कि यह भी है ज़रूरी कि जिन लोगों को जबरन ग़ायब किया गया, मनमाने ढंग से हिरासत में रखा गया, प्रताड़ित किया गया, और अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत दिये गए उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित रखा गया - जिनमें निष्पक्ष मुक़दमे का अधिकार भी शामिल है; उन्हें अब इसका पर्याप्त मुआवज़ा दिया जाए.
मानवाधिकार विशेषज्ञ,अमेरिकी सरकार से यह सुनिश्चित करने का भी अनुरोध कर रहे हैं कि असाधारण रैंडीशन, यातना, गुप्त नज़रबन्दी और भेदभावपूर्ण तरीक़ों से चलाए गए मुक़दमों की कार्यवाही सहित, मानवाधिकार उल्लंघन के सभी विश्वसनीय आरोपों की स्वतन्त्र और निष्पक्ष जाँच हो व को सज़ा मिले.
ग़ौरतलब है कि असाधारण रैंडीशन (Rendition), अमेरिका सरकार द्वारा अपनाया गया एक ऐसा चलन था जिसके तहत बन्दियों को गुप्त रूप में, ऐसे स्थानों पर भेजना शामिल था, जहाँ उनके साथ मानवीय बर्ताव सुनिश्चित करने के लिये कम सख़्त क़ानून हों.
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, “ग्वान्तनामो बे बन्दीगृह में, वर्तमान में और अब से पहले, बन्दी बनाकर रखे गए अनेक लोगों ने ‘काफ्काएस्क़’ यानि अत्यन्त दमनकारी और प्रताड़ना वाले हालात में अपने जीवन का बड़ा हिस्सा बिताया है, जहाँ क़ानून का शासन निरर्थक था और प्रशासन की क्रूर ताक़त का राज था."
मानवाधिकार विशेज्ञों ने इस ज़रूरत पर ज़ोर दिया कि जो लोग ग्वन्तानामो बे बन्दीगृह में शेष बचे हैं, मानवाधिकार क़ानून के तहत उनका पुनर्वास किये जाने के लिये उन्हें सहायता मुहैया कराई जाए.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, "लोकतन्त्र बेहतर करके दिखा सकते हैं और उन्हें बेहतर करना चाहिये.”
"विशेषकर अमेरिका को स्पष्ट रूप से अपने इतिहास में इस काले अध्याय को पीछे छोड़कर, यह दिखा देना चाहिये कि वह न केवल जेल बन्द करने के लिये तैयार है बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिये भी तत्पर कि ऐसा प्रचलन दोबारा प्रयोग ना हो, और यह भी कि इस जेल में किये गए अपराधों के लिये ज़िम्मेदार लोग, क़ानून का सामना करने से बच ना जाएँ.”
इस वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों की पूरी सूची इस प्रेस विज्ञप्ति में देखी जा सकती है.
विशेष रैपोर्टेयर्स, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की कथित विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये न तो संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी हैं, और न ही उन्हें संगठन से कोई वेतन मिलता है. वे पूरी तरह से अपनी व्यक्तिगत क्षमता में सेवा करते हैं.