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बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में शरणार्थी शिविर में रोहिंज्या शरणार्थियों के आश्रय स्थल. (फ़ाइल फ़ोटो)

डिजिटल प्रवासन: शरणार्थियों व प्रवासियों के लिये आर्थिक जीवनरेखा

UNICEF/Roger LeMoyne
बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में शरणार्थी शिविर में रोहिंज्या शरणार्थियों के आश्रय स्थल. (फ़ाइल फ़ोटो)

डिजिटल प्रवासन: शरणार्थियों व प्रवासियों के लिये आर्थिक जीवनरेखा

प्रवासी और शरणार्थी

कोविड-19 महामारी के कारण, एक तरफ़ तो वैश्विक अर्थव्यवस्था को भीषण झटका लगा है, वहीं ऑनलाइन वाणिज्य में कुछ उछाल देखा गया है. संयुक्त राष्ट्र के समर्थन से, दुनिया भर में एक ऐसा ऑनलाइन कार्यक्रम चलाया गया है जिसमें, शरणार्थियों और प्रवासियों को ऐसे उपकरण और ग्राहक मुहैया कराने में मदद की जा रही है जिनकी उन्हें, अपने कारोबार शुरू करने और अपनी आजीविकाएँ बेहतर बनाने के लिये, ज़रूरत है.

शरीफ़ा अहमद उन 9 लाख रोहिंज्या शरणार्थियों में से एक हैं जो, बांग्लादेश के बहुत ही घनी आबादी वाले शरणार्थी शिविर – कॉक्सेस बाज़ार में रहती हैं.

ये इलाक़ा म्याँमार की सीमा से सटा हुआ है. ये रोहिंज्या लोग म्याँमार में, हिंसा से बचकर भागे थे और अब बांग्लादेश में, भू-स्खलन, बाढ़ और तूफ़ानों के ख़तरों में रहने को मजबूर हैं. ये इलाक़ा निर्धनता और हिंसा के लिये जाना जाता है.

शरीफ़ा अहमद को जब, म्याँमार में, हिंसा से बचकर, अन्य लाखों लोगों की ही तरह, शान्ति की तलाश में, बांग्लादेश की तरफ़ भागना पड़ा, उससे पहले वो, वहाँ बाँस से बनाई हुई हस्तकला चीज़ें बेचती थीं.

अलबत्ता, अब उनके पास ये सम्भावना है कि वो इस हस्तकला हुनर के साथ अपना ख़ुद का कारोबार स्थापित करने और आजीविका कमा सकती हैं. ये सम्भव होता नज़र आ रहा है - संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की मदद से चलाए जा रहे एक डिजिटल कार्यक्रम की बदौलत. 

नवाचार के लिये प्रोत्साहन – (Aspire to innovate)

एस्पायर टू इनोवेट (a2i) नामक परियोजना, बांग्लादेश सरकार के डिजिटल एजेण्डा का एक प्रमुख हिस्सा है.

इस कार्यक्रम के तहत, देश के नागरिकों के लिये, अनेक क्षेत्रों में, डिजिटल सेवाओं में बेहतरी लाना है, जिनमें डिजिटल वित्त, विकलाँगता के साथ जीने वाले व्यक्तियों के लिये मदद, और नौकरशाही को सरल बनाना शामिल है.

बांग्लादेश में लोग, नवाचार के लिये प्रोत्साहन (a2i) प्लैटफ़ॉर्म पर व्यापक दायरे वाली डिजिटल जानकारी हासिल कर सकते हैं.
a2i
बांग्लादेश में लोग, नवाचार के लिये प्रोत्साहन (a2i) प्लैटफ़ॉर्म पर व्यापक दायरे वाली डिजिटल जानकारी हासिल कर सकते हैं.

इस परियोजना के तहत, शरीफ़ा अहमद को कारोबार चलाने का प्रशिक्षण दिया गया, और अपने सामान का वितरण करने की सुविधा, एक ऐसे बाज़ार के माध्यम से दी गई, जो शरणार्थियों के लिये टिकाऊ तरीक़ों से आमदनी के रास्ते खोजने और उनका कौशल सुधारने के लिये बनाया गया है.

रोहिंज्या लोग, बांग्लादेश में एक ऐसे समुदाय से सम्बन्ध रखते हैं जिसे अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करने के लिये मदद पर निर्भर है.

देश की कुल आबादी में, प्रवासियों और विस्थापित लोगों की काफ़ी बड़ी संख्या है: हर साल, प्राकृतिक आपदाओं के कारण, लगभग 7 लाख लोगों को अपने घर छोड़ने पड़ते हैं: इनमें से लगभग 4 लाख लोग, राजधानी ढाका का रुख़ करते हैं. 

इसके अतिरिक्त, लगभग 70 लाख बांग्लादेशी लोगों ने, रोज़गार की तलाश में, देश ही छोड़ दिया है.

‘नवाचार के लिये प्रोत्साहन’ के तहत, प्रवासी कामकाजियों, जबरन विस्थापित किये गए लोगों और उन्हें अपने यहाँ सहारा और सहायता देने वाले समुदायों की मदद के लिये, एक पोर्टल (डिजिटल मंच) बनाया गया है.

इस पोर्टल में, इन सभी को रोज़गार वाले कामकाज के अवसरों से जोड़ने की सुविधा है. ‘नवाचार के लिये प्रोत्साहन’ परियोजना के छह डिजिटल देश के बाहर स्थापित किये गए हैं, जिनमें से तीन, सऊदी अरब में हैं. कुल बांग्लादेशी प्रवासी कामगारों की लगभग एक तिहाई संख्या सऊदी अरब में है.

खाई को पाटना

बांग्लादेश में, इस परियोजना की कामयाबी ने, यूएनडीपी को, इसी तरह के कार्यक्रम बनाने और उन्हें अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर लागू करने के लिये प्रोत्साहित किया है.

इस परियोजना का उद्देश्य, अन्य ज़रूरतन्द समुदायों की मदद करना है, जिनमें तुर्की में शरणार्थी आबादी जैसे लोग शामिल हैं, जोकि विश्व की सबसे ज़्यादा शरणार्थी आबादी है.

तुर्की में रहने वाले शरणार्थियों की संख्या लगभग 36 लाख है जिनमें, अधिकतर ऐसे सीरियाई लोग हैं जो अपने देश में, अनेक वर्षों से चले आ रहे संघर्ष से बचकर भागे हैं. 

हामेद अल फ़ैसल भी उन्हीं में से एक हैं. सीरिया में, अपना घर छोड़कर भागने को मजबूर होने से पहले, वो वेबसाइट बनाने और उसका रखरखाव करने वाले जानकार (Web developer) के रूप में काम करते थे.

तुर्की में, यूएनडीपी द्वारा स्थापित एक डिजिटल मंच ने, हामेद अल फ़ैसल को ऐसा रोज़गार तलाश करने में मदद की है जिसमें वो अन्य सीरियाई शरणार्थियों को कारोबारी सलाह देते हैं. 

वेनेज़ुएला का ये परिवार, अपने देश में, हिंसा से बचने के लिये, सुरक्षा ख़ातिर, कोलम्बिया में पहुँचा है. फ़ाइल फ़ोटो (अप्रैल 2019)
©UNICEF/Arcos
वेनेज़ुएला का ये परिवार, अपने देश में, हिंसा से बचने के लिये, सुरक्षा ख़ातिर, कोलम्बिया में पहुँचा है. फ़ाइल फ़ोटो (अप्रैल 2019)

इन शरणार्थियों को, दूसरी तरफ़, यूएनडीपी द्वारा सहायता कार्यक्रम का भी सहारा मिला है जिसमें उन्हें कम्पनियाँ स्थापित करने, मान्यता हासिल करने, और ख़ुद के लिये ग्राहक बाज़ार विकसित करने के लिये प्रशिक्षण दिया गया है.

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के आपदा ब्यूरो के मुखिया असाका ओकाई का कहना है, “नवाचार के लिये प्रोत्साहन जैसे कार्यक्रमों ने, बहुत से शरणार्थियों और प्रवासियों का जीवन बेहतर बनाया है."

"अब हमने, बांग्लादेश और तुर्की में, डिजिटल उपकरणों का प्रभाव देखा है, हम इसी तरह के अवसर, अन्य ज़रूरतमन्द समुदायों तक भी पहुँचाना चाहते हैं, जैसेकि जॉर्डन में सीरियाई प्रवासी और शरणार्थी, और कोलम्बिया में वेनेज़ुएला के लोग.”