पेरिस समझौते में अमेरिका की वापसी – ‘उम्मीद भरा दिन’
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते में अमेरिका की वापसी का स्वागत करते हुए, इसे दुनिया के लिये एक उम्मीद भरा दिन क़रार दिया है, जिससे महत्वाकाँक्षी वैश्विक जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी. पेरिस समझौते में वैश्विक तापमान में बढोत्तरी को रोकने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में कटौती का महत्वाकाँक्षी लक्ष्य रखा गया है.
अमेरिका उन 194 देशों में शामिल रहा है जिन्होंने दिसम्बर 2015 में पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे.
तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के बाद राष्ट्रपति बने डॉनल्ड ट्रम्प ने, तीन वर्ष पहले इस समझौते से, हट जाने की घोषणा की थी. यह निर्णय नवम्बर 2020 में लागू हुआ था.
I’m very pleased to mark the return of the United States to the #ParisAgreement with US @ClimateEnvoy John Kerry.This is good news for the United States — and for the world.Welcome back.https://t.co/2Muu7JHDI7 pic.twitter.com/TW223AN61a
antonioguterres
लेकिन जनवरी 2021 में राष्ट्रपति बाइडेन ने एक कार्यकारी आदेश जारी करके, पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के फ़ैसले को पलट दिया था.
महासचिव ने पेरिस समझौते में अमेरिका के औपचारिक रूप से फिर शामिल होने के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि ये अमेरिका, और दुनिया के लिये अच्छी ख़बर है.
इस कार्यक्रम में जलवायु मामलों पर अमेरिकी पक्ष की ओर से राष्ट्रपति जो बाइडेन के विशेष दूत और पूर्व विदेश मन्त्री जॉन कैरी भी शामिल हुए.
यूएन प्रमुख ने कहा, “पिछले चार वर्षों में एक महत्वपूर्ण देश की अनुपस्थिति से पेरिस समझौते में एक रिक्तता पैदा हो गई थी,” जिससे पूरी कड़ी कमज़ोर पड़ रही थी.
उन्होंने बताया कि अमेरिका की वापसी के साथ ही यह समझौता, फिर से, पूर्ण रूप से वैसे ही बहाल हो गया है, जिसकी परिकल्पना इसे पारित करते समय की गई थी.
चेतावनीपूर्ण संकेत
यूएन के शीर्ष अधिकारी ने आगाह किया कि पेरिस समझौता, एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, लेकिन अब तक जो संकल्प लिये गए हैं, वे पर्याप्त नहीं है.
उन्होंने सचेत किया कि जलवायु परिवर्तन के चेतावनी भरे संकेत हर जगह दिखाई दे रहे हैं.
वर्ष 2015 के बाद के छह साल, रिकॉर्ड पर, अब तक के सबसे गर्म साल साबित हुए हैं.
कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर रिकॉर्ड ऊँचाई पर है, वनों में आग, बाढ़ और चरम मौसम की अन्य घटनाओं से, हर क्षेत्र प्रभावित है.
उन्होंने आगाह किया कि अगर दुनिया ने अपना रास्ता नहीं बदला तो इस सदी में वैश्विक तापमान में तीन डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो सकती है, जोकि विनाशकारी होगा.
2021: महत्वपूर्ण वर्ष
उन्होंने जलवायु चुनौतियों से निपटने के लिये 2021 को बेहद महत्वपूर्ण वर्ष क़रार देते हुए ध्यान दिलाया है कि ग्लासगो, यूएन के वार्षिक जलवायु सम्मेलन (कॉप-26), सरकारों के लिये ऐसे निर्णय लेने का अवसर है जिनसे मानवता और पृथ्वी का भविष्य निर्धारित होगा
इस क्रम में, अमेरिका सहित जी-20 समूह के अन्य सदस्य तीन अहम उद्देश्यों को पूरा करने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.
पहला, एक ऐसे वैश्विक गठबन्धन की स्थापना, जिससे वर्ष 2050 तक कार्बन तटस्थता (नैट कार्बन उत्सर्जन शून्य) की स्थिति हासिल की जा सके.
महासचिव ने उम्मीद जताई है कि राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा लिये गए संकल्प के अनुरूप, अमेरिका जल्द ही इस गठबन्धन का औपचारिक रूप से हिस्सा बन जाएगा.
दूसरा, रूपान्तरकारी बदलावों के दशक को सम्भव बनाना.
महासचिव गुटेरेश ने ध्यान दिलाया कि विज्ञान स्पष्ट है कि कार्बन उत्सर्जन को घटाने में बहुत तेज़ी से प्रगति सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है.
इसके लिये, सभी सरकारों को अगले दस वर्षों के लिये, महत्वाकाँक्षी, ठोस और विश्वसनीय राष्ट्रीय जलवायु योजनाएँ, नवम्बर 2021 में, कॉप-26 सम्मेलन में पेश करनी होंगी.
तीसरा, कार्रवाई की आवश्यकता अभी है.
वैश्विक महामारी कोविड-19 से पुनर्बहाली, मज़बूत व बेहतर पुनर्निर्माण करने का एक अवसर है.
कर (टैक्स) का भार, आय से हटाकर कार्बन पर और उपभोक्ताओं से हटाकर प्रदूषकों पर केन्द्रित किया जाना होगा.
कोयले और अन्य जीवाश्म ईंधनों को मिलने वाली सब्सिडी पर रोक लगानी होगी, जिससे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता हो, और जलवायु व जैवविविधता को नुक़सान हो.
साथ ही जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का सामना कर रहे देशों को, वित्तीय संसाधन भी मुहैया कराए जाने में समर्थन देना होगा.
महासचिव गुटेरेश ने ज़ोर देकर कहा कि पेरिस समझौता, “हमारे वंशों और सम्पूर्ण मानव परिवार के साथ हमारा समझौता” है.
उन्होंने भरोसा जताया कि नवीकरणीय ऊर्जा और हरित बुनियादी ढाँचे से ऐसे भविष्य का निर्माण करना सम्भव है, जिससे लोगों व पृथ्वी की रक्षा, और सभी के लिए समृद्धि सुनिश्चित हो.