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काँगो: 30 लाख बच्चों का जीवन और भविष्य जोखिम में, यूनीसेफ़ की चेतावनी

काँगो लोकतान्त्रिक गणराज्य के दक्षिण कीवू प्रान्त में, विस्थापित लोग, जल इकट्ठा करते हुए.
UNICEF Patrick Brown
काँगो लोकतान्त्रिक गणराज्य के दक्षिण कीवू प्रान्त में, विस्थापित लोग, जल इकट्ठा करते हुए.

काँगो: 30 लाख बच्चों का जीवन और भविष्य जोखिम में, यूनीसेफ़ की चेतावनी

मानवीय सहायता

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़ ने काँगो लोकतान्त्रिक गणराज्य (डीआरसी) में, विस्थापित लगभग 30 लाख बच्चों की गम्भीर स्थिति की तरफ़ ध्यान आकर्षित किया है जिन्हें लड़ाकों की क्रूर हिंसा और अत्यन्त गम्भीर भुखमरी का सामना करना पड़ रहा है.

यूनीसेफ़ ने शुक्रवार को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि अनेक स्थानों पर, पूरे के पूरे गाँवों, को आग लगा दी गई है, स्वास्थ्य केन्द्र और स्कूलों में लूटपाट की गई है, और पूरे के पूरे परिवारों को, मौत के मुँह में धकेल दिया गया है. 

ये सब, काँगो के पूर्वी क्षेत्र में किये गए हमलों में किया गया, जिनमें कुदालें-कुल्हाड़ियाँ और भारी हथियारों का प्रयोग किया गया. प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि बहुत से लोगों को, बिना को सामान लिये ही, सुरक्षा के लिये वहाँ से भागना पड़ा है. 

काँगो लोकतान्त्रिक गणराज्य में यूनीसेफ़ प्रतिनिधि एडुअर्ड बीजबेदेर ने कहा, “विस्थापित बच्चों ने भय, निर्धनता, और हिंसा के सिवाय, और कुछ भी नहीं देखा है. उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी, केवल जीवित रहने के बारे में सोच पाते हैं.”

“इसके बावजूद, दुनिया, उनके भाग्य के बारे में लगातार, बेपरवाह होती जा रही है. हमें, इन बच्चों को, एक बेहतर भविष्य मुहैया कराने में मदद करने के लिये, संसाधनों की आवश्यकता है.”

संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार, काँगो लोकतान्त्रिक गणराज्य में लगभग 52 लाख विस्थापित लोग हैं, इनमें से लगभग आधे लोग, पिछले लगभग 12 महीनों के दौरान विस्थापित हुए हैं. विस्थापित लोगों की इस कुल संख्या में, लगभग 30 लाख बच्चे हैं.

जिन परिवारों को उनके घरों और गाँवों से जबरन निकाल दिया गया है, वो ऐसे भीड़ भरी बस्तियों में रहने को विवश हैं जहाँ सुरक्षित जल, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य बुनियादी सेवाओं का अभाव है. कुछ लोगों को ऐसे समुदायों ने अपने यहाँ जगह दी है, जो ख़ुद भी अभावग्रस्त हालात में रहने को मजबूर हैं. 

सर्वाधिक हिंसा ग्रस्त प्रान्तों – इतूरी, उत्तर कीवू , दक्षिण कीवू और टैन्गानयिका में लगभग 80 लाख लोग, गम्भीर खाद्य असुरक्षा के हालात में जी रहे हैं.

बच्चों के विरुद्ध हिंसा में तीव्र बढ़ोत्तरी

यूनीसेफ़ की शुक्रवार को जारी रिपोर्ट में, इस संकट की तीव्रता की तरफ़ ध्यान खींचा गया है.

रिपोर्ट में ऐसे बच्चों की गवाहियाँ भी पेश की गई हैं जिन्हें मिलिशिया लड़ाकों ने भर्ती कर लिया था, उनके साथ यौन दुराचार किया गया, और अन्य कई तरह के मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया. इन मानवाधिकार उल्लंघनों और प्रताड़नाओं में, वर्ष 2020 की पहली छमाही में, उससे पहले के वर्ष की इसी अवधि की तुलना में, 16 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गई.

काँगो लोकतान्त्रिक गणराज्य के टैन्गानयिका प्रान्त में, विस्थापित लोग, झोपड़ियों में रहते हुए.
UNICEF/Olivia Acland
काँगो लोकतान्त्रिक गणराज्य के टैन्गानयिका प्रान्त में, विस्थापित लोग, झोपड़ियों में रहते हुए.

इन सबके बावजूद, विस्थापित आबादी को राहत और बचाव सहायता पहुँचाना भी बहुत जटिल कार्य है, और वहाँ असुरक्षा व कमज़ोर परिवहन साधनों व ढाँचे के कारण, सहायता कार्यों में अक्सर व्यवधान उत्पन्न होता है.

यूनीसेफ़ और उसके साझीदार संगठनों द्वारा चलाए जा रहे त्वरित सहायता कार्यक्रम के ज़रिये, अस्थाई समाधान पेश किया जा रहा है जिसमें, लगभग 5 लाख लोगों को, वर्ष 2020 में, अस्थाई शिविर, खाना पकाने के बर्तन, कनस्तर और अन्य ज़रूरी सामान मुहैया कराया गया. 

अतिरिक्त धन की तुरन्त ज़रूरत

काँगो लोकतान्त्रिक गणराज्य में, विस्फोटक सुरक्षा परिस्थितियाँ, सहायता कर्मियों और यूनीसेफ़ कर्मचारियों के लिये, व्यापक चिन्ता का कारण है, ये सहायता कार्य जारी रखने के लिये अतिरिक्त धन की सख़्त ज़रूरत है.

यूनीसेफ़ द्वारा देश के लिये वर्ष 2021 की मानवीय सहायता अपील में जो 38 करोड़ 44 लाख डॉलर की रक़म जुटाने की पुकार लगाई है, उसका केवल 11 प्रतिशत हिस्सा ही अभी तक हासिल हुआ है. 

यूएन बाल एजेंसी ने आगाह करते हुए कहा है कि पर्याप्त धनराशि नहीं मिलने की स्थिति में, यूनीसेफ़ और उसके साझीदार संगठन, लगभग 30 लाख बच्चों और उनके परिवारों के लिये, गम्भीर मानवीय ज़रूरतें पूरी करने, और उनके मावाधिकारों की रक्षा करने और उन्हें बढ़ावा देने के लिये अपना कार्य जारी रखने योग्य नहीं रह सकेंगे.

यूनीसेफ़ प्रतिनिधि ने ज़ोर देकर कहा कि पर्याप्त मानवीय सहायता उपलब्ध कराए बिना, हज़ारों बच्चे, कुपोषण और बीमारियों के कारण, मौत का शिकार हो जाएंगे, और विस्थापित आबादियों को, ऐसी बुनियादी सेवाएँ नहीं मिल पाएँगी जिन पर उनका जीवन निर्भर है.