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म्याँमार संकट: तख़्तापलट के ज़िम्मेदारों के विरुद्ध, कड़ी कार्रवाई की माँग

म्याँमार के व्यावसायिक शहर व पूर्व राजधानी, यंगून का एक दृश्य
UN News/Nyi Teza
म्याँमार के व्यावसायिक शहर व पूर्व राजधानी, यंगून का एक दृश्य

म्याँमार संकट: तख़्तापलट के ज़िम्मेदारों के विरुद्ध, कड़ी कार्रवाई की माँग

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र की उप मानवाधिकार उच्चायुक्त नदा अल नाशीफ़ और म्याँमार पर स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ थॉमस एण्ड्रयूज़ ने, देश में, पिछले सप्ताह ‘सत्ता का तख़्तापलट’ करने वाली हस्तियों के विरुद्ध लक्षित प्रतिबन्ध लगाने का आहवान किया है. इस बीच म्याँमार में जारी स्थिति पर चर्चा करने के लिये, शुक्रवार को, यूएन मानवाधिकार परिषद का विशेष सत्र आयोजित किया गया, जिसमें म्याँमार में बन्दी बनाई गई राजनैतिक हस्तियों की तुरन्त रिहाई की माँग करने वाला प्रस्ताव पारित किया गया.

मानवाधिकार परिषद द्वारा सर्वसहमति से पारित प्रस्ताव में, म्याँमार में, मनमाने ढँग से बन्दी बनाए गए तमाम व्यक्तियों की, तत्काल और बिना शर्त रिहाई की पुकार लगाई गई है. इनमें काउंसलर आँग सान सू ची और राष्ट्रपति विन म्यिन्त व अन्य नेता शामिल हैं. प्रस्ताव में, आपात स्थिति ख़त्म करने की भी माँग की गई है.

उप मानवाधिकार उच्चायुक्त नदा अल नाशीफ़ और विशेष रैपोर्टेयर थॉमस एण्ड्रयूज़ ने साथ ही ये भी कहा कि तख़्तापलट के ज़िम्मेदार लोगो के विरुद्ध दण्डात्मक कार्रवाई की जाए और, म्याँमार के कमज़ोर समुदायों को किसी तरह का नुक़सान नहीं पहुँचाया जाए. और ये भी सुनिश्चित करना होगा कि कोरोनावायरस का मुक़ाबला करने के लिये मदद व मानवीय सहायता जारी रहे. 

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दुनिया देख रही है

म्याँमार पर स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ थॉमस एण्ड्रयूज़ ने, वहाँ, 1 फ़रवरी को, सेना द्वारा देश की सत्ता पर क़ब्ज़ा किये जाने का, विस्तृत ब्यौरा पेश करते हुए, उन हालात का भी ज़िक्र किया जिनमें असैनिक सरकार का तख़्तापलट किया गया, लोगों की क्या प्रतिक्रिया रही, और “सैन्य नेतृत्व ने क्या दमनकारी कार्रवाइयाँ कीं”.

विशेष रैपोर्टेयर ने अपनी बात, यह ज़ोर देते हुए शुरू की कि मानवाधिकार परिषद का विशेष सत्र आयोजित किया जाना ही, स्थिति की गम्भीरता को दिखाता है जिसमें, परिषद के विचार के अनुसार, म्याँमार में जो कुछ हुआ, “उसे शर्मनाक और ग़ैर-क़ानूनी कार्रवाई क़रार दिया जा सकता है – वैधानिक तरीक़े से चुनी हुई एक सरकार और उसके निर्वाचित नेताओं का तख़्तापलट किया जाना”.

उन्होंने कहा, “दिन के बाद, हर दिन, म्याँमार के लोगों, और दुनिया भर के लोगों ने, देश के रास्तों पर होती क्रूरता की दिल दहला देने वाली तस्वीरें और वीडियो देखी हैं."

"इनमें नज़र आता है कि पूरी तरह से चाक-चौबन्द सुरक्षा बलों ने, शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को घेरा हुआ है, और लगातार बढ़ती भीड़ पर, पानी की प्रबल बौछार की गई है, कुछ प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ भी चलाई गई हैं, इनमें एक ऐसी युवा महिला भी है जिसे उस समय गोली मारी गई, जब वो निहत्थी और बिना कोई ख़तरा पैदा किये, केवल सामान्य रूप से खड़ी थी. वो महिला भी राजधानी नाय प्यी थाव में अन्य शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों का हिस्सा थी.”

प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ अत्यधिक बल प्रयोग व जानलेवा गोलियाँ दागे जाने की भी ख़बरें मिली हैं.

साथ ही लोगों को मनमाने तरीक़े से बन्दी बनाने, उन्हें डराने-धमकाने, मीडिया को धमकियाँ दिये जाने, और ऐसे नियम व क़ानून लागू किये जाने की भी ख़बरें हैं जिनके तहत, व्यवस्थित तरीक़े से, लोगों के अधिकार छीन लिये जाने, उन्हें सूचना प्राप्ति से रोके जाने, और उनकी निजता का भी उल्लंघन किये जाने की परिस्थितियाँ शामिल हैं.

विशेष रैपोर्टेयर ने ख़बरों का हवाला देते हुए बताया कि म्याँमार में, 220 सरकारी आधिकारी और सिविल सोसायटी सदस्य गिरफ़्तार किये गए हैं, जिनमें देश की काउंसलर आँग सान सू ची, राष्ट्रपति विन म्यिन्त और संघीय चुनाव आयोग के कुछ सदस्य भी हैं. इनमें से अधिकतर को सादी वर्दी में पुलिस ने, रात के अन्धेरे में हिरासत में लिया.

अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की कार्रवाई 

स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ थॉमस एण्ड्रयूज़ ने म्याँमार में एक ऐसे मानवाधिकार कार्यकर्ता से मिला सन्देश, परिषद को पढ़कर सुनाया जिसे वहाँ सुरक्षा ख़तरों के कारण छुपना पड़ रहा है. उन्होंने साथ ही, परिषद से कार्रवाई किये जाने का भी आहवान किया.

म्याँमार पर, स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ थॉमस एण्ड्रयूज़
UN News
म्याँमार पर, स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ थॉमस एण्ड्रयूज़

“कार्यकर्ता ने, ये सटीक शब्द, सम्मानपूर्ण इस संस्था तक पहुँचाने के लिये कहा: ‘हमें, केवल किसी काग़ज़ पर लिखे वक्तव्य भर से कहीं अधिक की ज़रूरत है; हमें, संयुक्त राष्ट्र से असल कार्रवाई की दरकार है.’”

मानवाधिकार विशेषज्ञ ने यूएन मानवाधिकार परिषद (एचआरसी) का आहवान किया कि वो सुरक्षा परिषद से, उन सभी विकल्पों पर विचार करने का अनुरोध करे जिनका प्रयोग उसने पहले भी, बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन होने की स्थिति से निपटने के लिये किया है, जिनमें प्रतिबन्ध, शस्त्र नियन्त्रण (पाबन्दियाँ) और यात्राओं पर प्रतिबन्ध शामिल हैं.

इनके अलावा, अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) या किसी अस्थायी ट्राइब्यूनल में भी न्यायिक कार्यवाही शुरू किये जाने की पुकार लगाई गई है.

रोहिंज्या पर चिन्ताएँ

उप मानवाधिकार उच्चायुक्त नदा अल नाशीफ़ ने अल्पसंख्यक रोहिंज्या समुदाय, जिनमें अधिकतर मुस्लिम हैं, उनके लिये भी चिन्ताएँ व्यक्त की हैं. ध्यान रहे कि अतीत में, रोहिंज्या समुदाय को, सेना की हिंसा व क्रूरता का सामना करना पड़ा है.

उन्होंने कहा कि म्याँमार की सेना को, रोहिंज्या लोगों की स्थिति को और ज़्यादा ख़राब करने का मौक़ा नहीं दिया जाना चाहिये, विशेषकर, उन्होंने दशकों तक जिस, अत्यन्त गम्भीर हिंसा और भेदभाव का सामना किया है, उसे देखते हुए.”

उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि म्याँमार को अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा दिये गए आदेश में अस्थायी उपाय, पूरी तरह से लागू करने होंगे, और राख़ीन प्रान्त व अन्य अल्पसंख्यक इलाक़ों में, संघर्षों की जड़ में बैठे कारणों का समाधान निकालना होगा. 

संयुक्त राष्ट्र की उप मानवाधिकार उच्चायुक्त नदा अल नाशीफ़. (फ़ाइल फ़ोटो)
UN Photo/Jean-Marc Ferré
संयुक्त राष्ट्र की उप मानवाधिकार उच्चायुक्त नदा अल नाशीफ़. (फ़ाइल फ़ोटो)

ग़ौरतलब है कि अगस्त 2017 में, म्याँमार में, सेना की क्रूरता व हिंसा से बचने के लिये, लगभग 7 लाख रोहिंज्या लोगों को भागना पड़ा, और उन्होंने बांग्लादेश में पनाह ली हुई है.

उस समय म्याँमार की सरकार व सेना ने कहा था कि अगस्त 2017 में, कुछ पुलिस चौकियों पर, कथित रूप से रोहिंज्या समुदाय से सम्बन्ध रखने वाले सशस्त्र गुटों के हमलों के बाद, सेना ने कार्रवाई शुरू की थी.

‘सेना की मजबूरी’

मानवाधिकार परिषद का यह विशेष सत्र शुरू होने के अवसर पर, म्याँमार के राजदूत म्यिन्त थ्यू ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि उनका देश लोकतान्त्रिक मूल्यों के लिये प्रतिबद्ध है, और उन्होंने सेना द्वारा किये गए हस्तक्षेप को आवश्यक भी क़रार दिया.

राजदूत ने कहा, “मतदान के बाद हुई अनियमितताओं और उसके बाद के जटिल हालात के मद्देनज़र, तत्मादाव (सैन्य नेतृत्व) को, देश के संविधान के अनुरूप ही, सरकार संचालन सम्बन्धी ज़िम्मेदारियाँ अपने हाथों में लेनी पड़ी हैं.”

म्याँमार के राजदूत ने मानवाधिकार परिषद को सूचित किया कि 1 फ़रवरी को, देश में एक वर्ष के लिये, आपातस्थिति की घोषणा की गई है और कार्यवाहक राष्ट्रपति ने, देश की विधायी, कार्यकारी और न्यायपालिका सम्बन्धी शक्तियाँ, रक्षा सेवाओं के कमाण्डर - इन - चीफ़ को स्थानान्तरित कर दी हैं.

राजदूत के अनुसार, उसके बाद 2 फ़रवरी को, 16 सदस्यों वाली एक राष्ट्रीय प्रशासनिक परिषद का गठन किया गया है जिसमें, 8 वरिष्ठ सैन्य अधिकारी और 8 सिविल अधिकारी शामिल हैं.