WHO: ऐस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन का इस्तेमाल सभी के लिये सही उपाय
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक विशेषज्ञ पैनल ने कोरोनावायरस के नए रूप से होने वाले संक्रमण की रोकथाम में ऑक्सफ़र्ड-ऐस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन की प्रभावशीलता पर उठे सवालों और चिन्ताओं को दरकिनार किया है. यूएन एजेंसी के विशेषज्ञों ने ऐस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन के इस्तेमाल पर अन्तरिम सिफ़ारिशें पेश करते हुए कहा है कि इसकी ख़ुराकें दिया जाना सही है, उन देशों में भी जहाँ कोविड-19 की नई क़िस्मे उभर रही हैं.
दक्षिण अफ्रीका में, हाल ही में हुए एक अध्ययन के आँकड़े दर्शाते हैं कि ऐस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन से वायरस के नए प्रकार के विरुद्ध, बुज़ुर्गों को रक्षा कवच प्रदान करने में ज़्यादा मदद नहीं मिली है.
WHO SAGE presenting its interim recommendations on the use of AstraZeneca Vaccine against #COVID19 https://t.co/S06dixPEUP
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टीकाकरण पर विशेषज्ञों के रणनैतिक सलाहकार समूह (SAGE) के प्रमुख डॉक्टर आलेहान्द्रो क्रैविओतो ने बताया कि अगर कहीं किसी ख़ास प्रकार के वायरस का फैलाव हो भी रहा है, तो भी ऐस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन का इस्तेमाल नहीं किये जाने का कोई कारण नहीं है.
इसका इस्तेमाल करने से, उस आबादी में गम्भीर बीमारी का स्तर घटाने में मदद मिलेगी.
इस समूह के कार्यकारी सचिव डॉक्टर योआख़िम होमबाख ने जिनीवा में बुधवार को एक प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि दक्षिण अफ़्रीका में हुआ अध्ययन ज़्यादा विस्तृत नहीं था.
वहीं डॉक्टर क्रैविओतो ने बताया कि 65 वर्ष से अधिक उम्र के ज़्यादा लोगों ने इस अध्ययन में हिस्सा नहीं लिया था.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी में टीकाकरण विभाग की प्रमुख डॉक्टर केट ओ ब्रियेन के अनुसार, दक्षिण अफ्रीकी अध्ययन के नतीजे निर्णायक नहीं हैं. हालाँकि वे दर्शाते हैं कि हल्के और सामान्य संक्रमण के मामलों में वैक्सीन की प्रभावशीलता कम है.
उन्होंने कहा कि सबसे अहम बात यह है कि इस अध्ययन में गम्भीर संक्रमण से बचाव, अस्पतालों में भर्ती होने और मौत टाले जाने के मामलों में ऐस्ट्राज़ेनेका की प्रभावशीलता पर तथ्य उपलब्ध नहीं हैं.
टीकाकरण की जल्द शुरुआत किये जाने और उसका असर देखने में सबसे दिलचस्प इसी नतीजे को जानना है.
उन्होंने कहा कि शोध दर्शाते हैं कि सभी वैक्सीनों का अलग-अलग असर देखने को मिला है. सबसे ज़्यादा असर बेहद गम्भीर संक्रमणों के ख़िलाफ़ दिखाई दिया है जबकि सामान्य और हल्के संक्रमणों में इसका असर कम होता जाता है. लेकिन यह स्थिति, सिर्फ़ कोरोनावायरस की वैक्सीन पर ही लागू नहीं होती.
वैक्सीन की दो ख़ुराकें
18 वर्ष से ज़्यादा उम्र के लोगो को वैक्सीन की दो ख़ुराकें देनी होती हैं और इसके लिये उम्र की कोई ऊपरी सीमा नहीं है.
बताया गया है कि पहली और दूसरी ख़ुराक के बीच, आठ से 12 हफ़्तों का अन्तराल होना चाहिये ताकि मज़बूत प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने का समय मिल सके.
SAGE प्रमुख ने बताया कि वैसे तो वैक्सीन सुरक्षित है लेकिन अभी पूरी तरह आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं और इसलिये गर्भवती या स्तनपान करा रही महिलाओं को इसे दिये जाने की सिफ़ारिश कर पाना सम्भव नहीं होगा.
उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में निर्णय चिकित्सक पर ही छोड़ दिया जाना चाहिये और यह वैयक्तिक परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है.
डॉक्टर क्रैविओतो ने स्पष्ट किया कि उपलब्ध वैक्सीनों की कमी और वायरस के फैलाव को सीमित करने की ज़रूरत के मद्देनज़र, अन्तरराष्ट्रीय यात्रियों को ये टीके नहीं लगाए जाने चाहिये.
हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा जा सकता
विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक डॉक्टर सौम्या विश्वनाथन ने, देशों से ऐस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन का इस्तेमाल करने का आहवान किया है, विशेष रूप से उन देशों का, जिनके पास वायरस से लड़ाई का ये एकमात्र औज़ार है.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि खोने के लिये समय नहीं है और ऐसे बहुत से देश जोकि टीकाकरण की प्रतीक्षा कर रहे हैं, उनके लिये इसके इस्तेमाल के फ़ायदे, जोखिमों से कहीं ज़्यादा हैं.
डॉक्टर स्वामीनाथन ने कोविड-19 के फैलाव की जिनॉमिक (जीन सम्बन्धी) निगरानी पहले से कहीं ज़्यादा करने का भी आग्रह किया है.
“बहुत से अन्य देशों में हालात ऐसे हैं कि वहाँ, सीमित विश्लेषण के ज़रिये वायरस की नई क़िस्म का पता लगाने में सफलता मिली है लेकिन उसके फैलाव के दायरे को नहीं जानते. वे इसकी वजह से सीमित आँकड़ों पर आधारित निर्णय लेते समय बेहद सतर्क हैं.”
कोरोनावायरस संक्रमण के अब तक 10 करोड़ 65 लाख मामलों की पुष्टि हो चुकी है और 23 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है.
एकजुटता का आहवान
इस बीच, विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष के प्रमुखों ने बुधवार को वैक्सीन एकजुटता की एक अपील जारी की है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के प्रमुख टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस और यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हेनरिएटा फ़ोर ने विश्व नेताओं का आहवान किया है कि अपनी सीमाओं से परे देखे जाने की ज़रूरत है.
साथ ही एक ऐसी वैक्सीन रणनीति लागू की जानी होगी जिससे महामारी का अन्त हो सके और उसकी उभरती नई क़िस्मों को सीमित किया जा सके.
कोविड-19 वैक्सीनों की अब तक 12 करोड़ 80 लाख ख़ुराकें दी जा चुकी हैं लेकिन तीन चौथाई से ज्यादा टीकाकरण केवल 10 धनी देशों में हुआ है.
यूएन अधिकारियों ने आगाह किया है कि ये एक आत्मघाती रणनीति है जिसकी क़ीमत जीवन और आजीविका के रूप में चुकानी पड़ेगी.
उन्होंने एक चेतावनी जारी करते हुए कहा कि इससे वायरस के लिये अपना रूप बदलने और वैक्सीनों को बेअसर करने का रास्ता खुल जाएगा.
इससे आर्थिक पुनर्बहाली की प्रक्रिया कमज़ोर होगी.
यूएन एजेंसियों के शीर्ष अधिकारियों ने कहा है कि दुनिया के सभी देशों में, वर्ष 2021 के शुरुआती 100 दिनों में टीकाकरण की शुरुआत की जानी होगी.
इसके तहत यह अनिवार्य है कि निम्न और मध्य आय वाले देशों में, महामारी से लड़ाई में अग्रिम मोर्चे पर जूझ रहे स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाय.