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आईसीसी के फ़ैसले से खुलेगा 'क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों में न्याय के लिये रास्ता'

ग़ाज़ा के खान युनिस शरणार्थी शिविर में एक बच्ची.
© UNRWA/Hussein Jaber
ग़ाज़ा के खान युनिस शरणार्थी शिविर में एक बच्ची.

आईसीसी के फ़ैसले से खुलेगा 'क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों में न्याय के लिये रास्ता'

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के एक स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के उस फ़ैसले की सराहना की है जिसमें कहा गया है कि इसराइल द्वारा क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों में जो गम्भीर अपराध किये गये हैं, वे कोर्ट के न्यायिक क्षेत्र में आते हैं. यूएन विशेषज्ञ ने मंगलवार को जारी अपने वक्तव्य में इस निर्णय को, न्याय व जवाबदेही की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम क़रार दिया है.  

इसराइल द्वारा, वर्ष 1967 से क़ब्ज़ा किये हुए फ़लस्तीनी इलाक़ों में मानवाधिकारों की स्थिति पर विशेष रैपोर्टेयर माइकल लिन्क ने इस निर्णय का स्वागत किया है.

उन्होंने कहा, “इस निर्णय से उन सभी को गहरी उम्मीद बँधी है जोकि मानते हैं कि ऐसे गम्भीर अपराध किये जाने का जवाब क्षमादान नहीं, उसके नतीजों को भुगतना है.”

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इस फ़ैसले के दायरे में सम्भावित युद्धापराधों के मामले भी शामिल है और इसे पूर्वी येरुशलम व ग़ाज़ा सहित 53 वर्षों से क़ाबिज़ इलाक़ों में दण्डमुक्ति ख़त्म करने की दिशा में एक बड़ा क़दम माना जाना रहा है. 

यूएन विशेषज्ञ ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र के अग्रणी राजनैतिक अंग, इसराइली क़ब्ज़े पर अपने प्रस्ताव लागू करा पाने में बार-बार विफल रहे हैं.

“इस फ़ैसले से रोम सम्विदा के तहत अपराधों के विश्वसनीय आरोपों की जाँच कराए जाने और आईसीसी में सुनवाई चरण तक पहुँचने का रास्ता अन्तत: खुल गया है.” 

इतिहास की परख 

अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के अभियोजक अब अतीत में लगाए गए आरोपों की जाँच कर सकते हैं. 

इनमें वर्ष 2014 में ग़ाज़ा में लड़ाई, 2018-2019 में प्रदर्शनों के दौरान हताहत होने वाले हज़ारों निहत्थे प्रदर्शनकारियों, और पूर्व येरुशलम व पश्चिमी तट में इसराइल द्वारा बस्तियाँ बसाए जाने की गतिविधियाँ शामिल है. 

इसके अलावा, आईसीसी अभियोजक अब फ़लस्तीनी सशस्त्र गुटों पर लगे गम्भीर आरोपों की भी जाँच कर सकते हैं. 

“अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ने रोम सम्विदा को पारित करके और अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय स्थापित करके,  इन गम्भीर अपराधों के दोषियों के लिये दण्डमुक्ति समाप्त करने के संकल्प की प्रतिज्ञा ली है.”

“इसके बावजूद, लम्बे समय से चले आ रहे इसराइली क़ब्ज़े के सन्दर्भ में, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ने अपवाद की संस्कृति को फलने-फूलने दिया है.”

पुख़्ता जाँच की दरकार

विशेष रैपोर्टेयर ने हाल के वर्षों में संयुक्त राष्ट्र की अनेक रिपोर्टों का हवाला दिया जिसमें जवाबदेही तय किये जाने और इसराइल से गम्भीर अपराधों के विश्वसनीय आरोपों की सटीक जाँच कराने की पुकार लगाई गई है. लेकिन इनमें से किसी भी मामले में कार्रवाई नहीं हुई है. 

यूएन विशेषज्ञ ने ग़ाज़ा में हिंसक संघर्ष पर आधारित 2008-2009 की रिपोर्ट का उदाहरण दिया जिसमें ज़ोर देकर कहा गया है कि क़ानून के राज के लिये न्याय और सम्मान, शान्ति की अपरिहार्य शर्त है. 

“लम्बे समय से दण्डमुक्ति के हालात ने क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों में न्याय का संकट पैदा कर दिया है जिस पर कार्रवाई की आवश्यकता है.” 

मानवाधिकार विशेषज्ञ ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आईसीसी प्रक्रिया को समर्थन देने का आग्रह किया है और ध्यान दिलाया है कि रोम सम्विदा की प्रस्तावना में अन्तरराष्ट्रीय सहयोग का आहवान किया गया है ताकि अन्तरराष्ट्रीय न्याय सुनिश्चित किया जा सके. 

उन्होंने कहा कि दण्डमुक्ति के अन्त और न्याय की दिशा में प्रयासों के ज़रिये, मध्य पूर्व में शान्ति की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है. 

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतन्त्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतन्त्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिये कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतन्त्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.