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यमन: अमेरिकी फ़ैसले से लाखों लोगों को मिल सकेगी अहम राहत , यूएन

यमन में घरेलू विस्थापन का शिकार एक बच्चा.
UNOCHA/Mahmoud Fadel
यमन में घरेलू विस्थापन का शिकार एक बच्चा.

यमन: अमेरिकी फ़ैसले से लाखों लोगों को मिल सकेगी अहम राहत , यूएन

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि यमन में हूथी आन्दोलनकारी संगठन (अन्सार अल्लाह) को, अमेरिका द्वारा विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित करने वाला फ़ैसला पलट किये जाने से, देश में लाखों लोगों को बहुत अहम राहत मिल सकेगी. ये वो लोग हैं जो जीवित रहने के लिये अन्तरराष्ट्रीय सहायता और आयात पर निर्भर हैं.

यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश के प्रवक्ता स्तेफ़ान दुजैरिक ने संवाददाताओं के लिये जारी एक वक्तव्य में अमेरिका, द्वारा इस सम्बन्ध में, शुक्रवार को गई घोषणा का स्वागत किया है.

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प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका द्वारा हूथी आन्दोलन संगठन के दर्जे के बारे में ये बदलाव करने से, उन लाखों यमनी लोगों को महत्वपूर्ण सहायता मुहैया कराई जा सकेगी जो अपनी बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने के लिये मानवीय सहायता और व्यावसायिक आयात पर निर्भर है. 

उन्होंने कहा कि ऐसे समय में, जबकि यमन में अकाल का वास्तविक ख़तरा नज़र आ रहा है, व्यावसायिक आयात और मानवीय सहायता को पर्याप्त और समुचित मात्रा में जारी रखना, बहुत अहम है.

स्तेफ़ान दुजैरिक ने ये आशा भी व्यक्त की कि इस ताज़ा घटनाक्रम से, संयुक्त राष्ट्र को यमनी लोगों के नेतृत्व वाली और उन्हीं के स्वामित्व वाली राजनैतिक प्रक्रिया फिर से शुरू करने में मदद मिलेगी, जिसके माध्यम से संघर्ष का, एक समावेशी और बातचीत पर आधारित समाधान तलाश किया जा सकेगा.

जुड़वाँ बच्चों को चिकित्सा मदद

इस बीच, एक अच्छी ख़बर. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनिसेफ़ ने यमन के एक परिवार के, परस्पर जुड़े हुए नवजात जुड़वाँ शिशुओं को, शनिवार को, इलाजे के लिये, हवाई मार्ग से, जॉर्डन की राजधानी अम्मान पहुँचाया है.

एजेंसी ने कहा है कि इन परस्पर जुड़े हुए नवजात जुड़वाँ शिशुओं की पर्याप्त चिकित्सा जाँच और उन्हें अलग करने की सम्भावना का आकलन करने के लिये अम्मान भेजा गया है.

इन परस्पर जुड़े हुए नवजात जुड़वाँ शिशुओं का जन्म दिसम्बर में, यमन की राजधानी सना में हुआ था. ये शिशु एक 35 वर्षीय एक महिला की सन्तान हैं जिनके परिवार का गुज़ारा नगर में, फेरी के ज़रिये, रोज़मर्रा की चीज़ें, बेचकर होने वाली आमदनी से चलता है.

स्थानीय अस्पताल और स्वास्थ्य अधिकारियों ने इन परस्पर जुड़े हुए नवजात जुड़वाँ शिशुओं को अलग करने और उनकी ज़िन्दगी बचाने में मदद के लिये तुरन्त सहायता की अपील की है.

यमन में यूनीसेफ़ के प्रवक्ता फ़िलिप दुआमेल्ले का कहना है, “कई सप्ताहों से चल रहे प्रबन्धों के बाद, अब हम प्रसन्न हैं कि ये परस्पर जुड़े हुए नवजात जुड़वाँ शिशु, इलाज के लिये जॉर्डन के अस्पताल में पहुँच गए हैं.”

उन्होंने कहा कि अब वो चिकित्सा सर्जरी विशेषज्ञों की एक टीम की सुरक्षित निगरानी में हैं. "हमें उम्मीद है कि हम जल्द ही, इन शिशुओं को वापिस सना में, स्वस्थ हालत में देख सकेंगे."

यूनीसेफ़ प्रतिनिधि ने उन सभी का शुक्रिया अदा किया जिन्होंने इन शिशुओं के स्वास्थ्य व जीवन की ख़ातिर धन दान दिया और अन्य तरह की मदद की है.

इन बच्चों को, सना से हवाई मार्ग के ज़रिये अम्मान पहुँचाया गया है और उनके माता-पिता भी उनके साथ हैं.

स्वास्थ्य प्रणाली की जर्जर अवस्था

यूनीसेफ़ ने यमन के स्वास्थ्य ढाँचे की जर्जर अवस्था पर भी गहरी चिन्ता व्यक्त की है जो अनेक वर्षों से जारी युद्ध के कारण तबाही के कगार पर पहुँच गया है. सं

गठन ने यमन की स्वास्थ्य प्रणाली को पूरी तरह तबाही से बचाने के लिये एकजुट व ठोस उपाय किये जाने का आग्रह किया है. 

जून 2015 में संघर्ष के दौरान, तबाह हुई एक स्कूल इमारत के मलबे में खेलते हुए बच्चे. वहाँ के बच्चे अब यूनीसेफ़ द्वारा उपलब्ध कराए गए शिविरों में पढ़ाई करते हैं. (अप्रैल 2017)
UNOCHA/Giles Clarke
जून 2015 में संघर्ष के दौरान, तबाह हुई एक स्कूल इमारत के मलबे में खेलते हुए बच्चे. वहाँ के बच्चे अब यूनीसेफ़ द्वारा उपलब्ध कराए गए शिविरों में पढ़ाई करते हैं. (अप्रैल 2017)

देश में, कुल संख्या की केवल आधी स्वास्थ्य सेवाएँ संचालित हैं, और जो सुविधाएँ, स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया करा रही हैं, वहाँ भी दवाओं, उपकरणों और कर्मचारियों की भारी कमी है. 

यमन के मौजूदा संकट की जड़ें वैसे तो वर्ष 2011 में समाहित हैं, मगर वर्ष 2015 में, इस संघर्ष ने तब और ज़्यादा भीषण रूप धारण कर लिया जब सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबन्धन द्वारा समर्थित सरकार और हूथी आन्दोलन के बीच लड़ाई तेज़ हो गई है. यमन सरकार को अन्तरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है.

लगभग छह वर्ष के भीषण युद्ध ने यमन को दुनिया का सबसे गम्भीर संकट बना दिया है, जिसमें युद्ध, बीमारी, आर्थिक विनाश, और सार्वजनिक संस्थाओं व सेवाओं का ढह जाना शामिल है.

देश की लगभग 2 करोड़ 40 लाख आबादी में से, क़रीब 80 प्रतिशत जनसंख्या को जीवित रहने के लिये किसी ना किसी रूप में मानवीय सहायता व संरक्षा की आवश्यकता है. इस आबादी में लगभग 1 करोड़ 20 लाख बच्चे भी हैं.

2020 में कोरोनावायरस महामारी का फैलाव शुरू होने से परिस्थितियाँ और भी ज़्यादा बिगड़ गई हैं.