आईसीसी: यूगाण्डा के एक पूर्व विद्रोही कमाण्डर, युद्धापराध और मानवता के विरुद्ध अपराधों के दोषी

अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने यूगाण्डा के एक पूर्व विद्रोही गुट के नेता को घरेलू विस्थापितों के शिविरों पर हमला किये जाने के आरोप का दोषी ठहराया है. नैदरलैण्ड्स के हेग में स्थित कोर्ट - आईसीसी ने गुरूवार को अपना फ़ैसला सुनाते समय कहा कि डॉमिनिक आँगवेन ,लॉर्ड्स रज़िस्टेन्स आर्मी (Lord's Resistance Army) के ब्रिगेड कमाण्डर के तौर पर, उत्तरी युणाण्डा में युद्धापराधों और मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों के लिये पूर्ण रूप से ज़िम्मेदार है.
45 वर्षीय आँगवेन को 1 जुलाई 2002 और 31 दिसम्बर 2005 के दौरान मानवता व युद्धापराधों के तहत 61 मामलों में दोषी पाया गया है और अब उन्हें अधिकतम 30 वर्ष के कारावास की सज़ा हो सकती है, हालाँकि अभूतपूर्व हालात में आजीवन कारावास की सज़ा भी दी जा सकती है.
The trial of Dominic #Ongwen in numbers.ℹ Learn more about the verdict delivered today before the #ICC ➡ https://t.co/LYotUS5g9W pic.twitter.com/1FpaMbr7fn
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आईसीसी ने कहा है कि सज़ा का फ़ैसला सुनाए जाने के बाद पीड़ितों के लिये मुआवज़े पर चर्चा शुरू होगी.
डॉमिनिक आँगवेन ने, लॉर्ड्स रज़िस्टेन्स आर्मी (Lord's Resistance Army) के ब्रिगेड कमाण्डर के तौर पर अन्य गम्भीर अपराधों के साथ-साथ बड़ी संख्या में आम लोगों की हत्या, जबरन शादियों, यौन दासता, बाल सैनिकों की भर्ती को स्वीकृति दी.
न्यायालय ने तीन वर्षों – जुलाई 2002 से दिसम्बर 2005 – के दौरान हुए अपराधों की समीक्षा की है जब आँगवेन बटालियन कमाण्डर से ऊपर उठ कर सिनिया ब्रिगेड के प्रमुख बने, उनकी रैंक ब्रिगेडियर की थी और उनके मातहत सैकड़ों सैनिक काम करते थे.
“चैम्बर ने पाया है कि डॉमिनिक आँगवेन इन अपराधों के लिये पूर्ण रूप से ज़िम्मेदार हैं.”
“चैम्बर को ऐसे तथ्य नहीं मिले जिनसे इस दावे को बल मिलता है कि वो इन अपराधों के लिये प्रासंगिक अवधि में किसी मानसिक रोग या विकार से पीड़ित थे, या फिर कि उन्होंने ये अपराध किसी दबाव या ख़तरे का सामना करते हुए किये.”
आईसीसी ने अपने वक्तव्य में बताया कि आम नागरिकों के ख़िलाफ़ हमलों को यह कहकर जायज़ ठहराया गया कि वे सरकार के समर्थक हैं और इसलिये विद्रोहियों के शत्रु हैं.
आईसीसी के अनुसार सशस्त्र गुट के सैनिकों को आम लोगों की सीने और सिर में गोली मारने और यह सुनिश्चित करने के आदेश दिये गए थे कि उनकी मौत हो जाए.
जिन लोगों को निशाना बनाया गया उनमें से अधिकतर, सरकार द्वारा घरेलू विस्थापितों के लिये बनाए गए शिविरों में रहते थे.
न्यायालय ने, सुनवाई के दौरान ने ऐसे चार शिविरों से प्राप्त हुए तथ्यों की जाँच की: 10 अक्टूबर 2003 को पजूले, 29 अप्रैल 2004 को ओडेक, 19 मई 2004 को लुकोडी, और 8 जून 2004 को एबोक में हुई घटना.
न्यायालय ने स्वीकार किया कि डॉमिनिक आँगवेन को एलआरए गुट ने तब अग़वा कर लिया गया था जब उनकी उम्र नौ साल की थी, और इसके बाद उन्हें काफ़ी पीड़ा झेलनी पड़ी.
लेकिन यह भी स्पष्ट किया गया है कि डॉमिनिक आँगवान की जवाबेदही जिन अपराधों के लिये तय की जा रही है, उन्होंने, उन अपराधों को, एलआरए के कमाण्डार के तौर पर वयस्क होने के बाद अंजाम दिया.
कोर्ट में सुनवाई के दौरान एलआरए के एक सैनिक ने गवाही देते हुए बाल सैनिकों की भर्ती किये जाने की प्रक्रिया के बारे में सिलसिलेवार ब्यौरा दिया.
“जब भी हम युवाओं के पास आते थे, हम उन्हें अग़वा कर लेते और जंगलों में ले जाते. हमें ऐसा करना होता था क्योंकि हमें अपनी संख्या बढ़ानी थी.”
चूँकि नए लोगों को लड़ाई के लिये भर्ती करने की ख़ातिर, अग़वा किया जाना नियमित गतिविधियों का हिस्सा था, इसलिये किसी कमाण्डर को इसके लिये आदेश देने की ज़रूरत नहीं थी, चूँकि यह हमारे काम का हिस्सा था.
इस मुक़दमे में, दिसम्बर 2016 से मार्च 2020 तक 234 बार सुनवाई हुई, जिसमें न्यायाधीशों ने अभियोजन पक्ष की ओर से 109 गवाहों व विशेषज्ञों की बात सुनी, जबकि बचाव पक्ष की ओर से 63 लोग पेश किये गए.
पीड़ितों के प्रतिनिधियों ने सात गवाहों और विशेषज्ञों को बुलाया. कुल मिलाकर, न्यायालय में, चार हज़ार से ज़्यादा पीड़ितों का प्रतिनिधित्व हुआ.