कोविड-19: वायरस के नए प्रकार से 'गम्भीर संक्रमणों' की लहर का ख़तरा
वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण हाल के महीनों में व्यापक क्षति हुई है और वायरस का नया रूप जल्द ही संक्रमणों के मामलों में फिर से तेज़ उछाल का सबब बन सकता है. संयुक्त राष्ट्र में राजनैतिक और शान्तिनिर्माण मामलों की अवर महासचिव रोज़मैरी डीकार्लो ने सोमवार को सुरक्षा परिषद को वीडियो लिन्क के ज़रिये सम्बोधित करते हुए कहा कि महामारी की वजह से कूटनीतिक और शान्ति स्थापना प्रयासों में बाधाओं और जटिलताओं का सामना करना पड़ा है.
कोरोनावायरस से अब तक लगभग दस करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं और तीन ट्रिलियन डॉलर से ज़्यादा की आय का नुक़सान हुआ है.
साथ ही हिंसक टकराव की रोकथाम करने की चुनौतियाँ और पैनी हुई हैं और सशस्त्र संघर्षों में निहित वजहें और गहरा गई हैं.
उन्होंने चिन्ता जताई कि वायरस के नए प्रकार से संक्रमणों की गम्भीर लहर का सामना ऐसे समय में करना पड़ सकता है जब स्वास्थ्य प्रणालियों और सामाजिक संरक्षा नैटवर्कों पर पहले से ही भीषण बोझ है.
“Recovering better” from #COVID19 also requires more political and financial investment to strengthen conflict prevention. My full remarks to the @UN Security Council today: https://t.co/M5CtdCMlhO pic.twitter.com/Wk9mCqL8kF
DicarloRosemary
अवर महासचिव डीकार्लो ने आगाह किया कि महामारी से शान्ति और सुरक्षा पर होने वाला असर बड़ी चिन्ता का विषय है.
महासचिव गुटेरेश की ओर से जारी वैश्विक युद्धिवराम की अपील और उसे लागू किये जाने के प्रयासों पर सोमवार को सुरक्षा परिषद की एक बैठक में कोरोनावायरस संकट की पृष्ठभूमि में मौजूदा चुनौतियों पर चर्चा हुई.
वैश्विक युद्धविराम की अपील का उद्देश्य हिंसक संघर्षों के बजाए कोविड-19 से लड़ाई पर ध्यान केन्द्रित करना था.
यूएन अधिकारी ने कहा कि लीबिया का उदाहरण दर्शाता है कि सतत राजनैतिक सम्वाद और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के एकजुट समर्थन से किस तरह प्रगति को साकार किया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि इसी क्रम में अफ़ग़ानिस्तान में शान्ति वार्ताओं के लिये भी अवसर पैदा हुए हैं ताकि दशकों की अस्थिरता और हिंसक संघर्ष का अन्त किया जा सके. मोज़ाम्बीक़ में निशस्त्रीकरण के लिये प्रयास चल रहे हैं और पूर्वी यूक्रेन में शान्ति की उम्मीदें बँधी हैं.
लेकिन आर्मिनिया और अज़रबेज़ान के बीच झड़पों सहित कुछ अन्य क्षेत्रों में हालात पहले से ज़्यादा ख़राब भी हुए हैं.
रोज़मैरी डीकार्लो ने कहा कि महामारी ढाँचागत और सार्वजनिक स्वास्थ्य के साथ-साथ राजनैतिक दबाव की परीक्षा भी साबित हुई है.
लेकिन इसने दर्शाया है कि सतत शान्ति के लिये वास्तविक राजनैतिक इच्छाशक्ति की मदद से किसी भी बाधा को लाँघना असम्भव नहीं है, विशेष रूप से अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन के साथ.
यूएन मानवीय राहत मामलों के प्रमुख मार्क लोकॉक ने कहा कि दुनिया भर में अब तक नौ करोड़ 90 लाख से ज़्यादा लोग संक्रमित हो चुके है.
इनमें से एक-चौथाई से ज़्यादा उन देशों में रह रहे हैं जोकि मानवीय या शरणार्थी संकटों का सामना कर रहे हैं.
उन्होंने स्पष्ट किया कि मामलों की वास्तवितक संख्या अभी पूरी तरह सामने नहीं आई पाई है, बहुत से निर्धन देश ख़तरनाक दूसरी लहर की ओर बढ़ रहे हैं और तेज़ी से फैलने वाला वायरस का नया प्रकार इन हालात को और भी जटिल बना देगा.
मार्क लोकॉक के मुताबिक वैक्सीन इस संकट से बाहर आने का रास्ता दिखा सकती हैं लेकिन कोई भी तब तक सुरक्षित नहीं है जब तक हर कोई सुरक्षित नहीं है.
चुनौती का विकराल स्तर
बहुत से ज़रूरतमन्द देश कोविड-19 टीकों के लिये एक लम्बी कतार में पीछे खड़े हैं जोकि अन्य को जोखिम में डाल सकता है. 23 करोड़ से ज़्यादा लोगों को मानवीय राहत और संरक्षा की आवश्यकता बताई गई है.
यूएन के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक मानवीय राहत संगठन ज़रूरत के अनुरूप सहायता प्रदान करने में जुटे हैं लेकिन इस संकट के लगातार बढ़ते दायरे से वे अपर्याप्त साबित हुए हैं.
इस सिलसिले में उन्होंने वैश्विक मानवीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिये 35 अरब डॉलर की अपील जारी की है ताकि 16 करोड़ लोगों तक पहुँचा जा सके और उन अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं को मज़बूती दी जा सके जोकि निर्बलों की सहायता करते हैं.
“अगले छह महीने बेहद अहम होने वाले हैं. आज के निर्णय आने वाले वर्षों में हमारी दिशा व रास्ते तय करेंगे.”
शान्ति अभियान मामलों के प्रमुख ज़्याँ पिए लाक्रोआ ने पहले से चली आ रही जटिल राजनैतिक परिस्थितियाँ कोविड-19 की वजह से और भी विकट हो गई हैं.
दक्षिण सूडान में शान्ति प्रक्रिया में देरी हुई है, साइप्रस में दो समुदायों के बीच सम्पर्क सीमित है, लेबनान में राजनैतिक और आर्थिक हालात बेहद चुनौतीपूर्ण हैं और मध्य अफ़्रीकी गणराज्य में इसकी आड़ में असंवैधानिक ढँग से सत्ता हासिल करने की कोशिशें हो रहे हैं.
उन्होंने चिन्ता जताई कि शान्तिरक्षकों को समय-समय पर बदले जाने की प्रक्रिया में देरी हुई है लेकिन अब ज़रूरतों के अनुरूप बदलाव लाया जा रहा है.