नेपाल: रेडियो के ज़रिये लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने की मुहिम

कोविड-19 महामारी के कारण दुनिया भर में शिक्षा प्रभावित हुई है, विशेष रूप से कमज़ोर वर्ग की लड़कियों के स्कूल छोड़ने और उनकी शिक्षा में व्यवधान आने का बड़ा ख़तरा पैदा हो गया है. नेपाल में संयुक्त राष्ट्र एजेंसियाँ, हाशियेकरण के शिकार समुदायों में, लड़कियों की शिक्षा के बारे में जागरूकता व चेतना जगाने के लिये, साथ मिलकर एक रेडियो कार्यक्रम के ज़रिये प्रयासों में जुटी हैं.
यूएन शैक्षिक, वैज्ञानिक एवँ सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के अनुसार कोविड महामारी की रोकथाम के लिये नेपाल में स्कूल मार्च 2020 से ही बन्द हैं.
अतीत गवाह है कि इस तरह के संकट लैंगिक समानता और शिक्षा पर लम्बे समय तक असर डालते हैं, जिनके परिणाम, हाशिये पर धकेली हुई लड़कियों के लिये दूरगामी होते हैं.
A community radio advocacy programme helped people to better understand the challenges that are specific to girls and how these affect their dropout and disruption in learning. Read the full article: https://t.co/1dySC0QzsR#girlseducation #covid19 #nepaljp #communityradio pic.twitter.com/VUrMIw4JJU
UNESCOKathmandu
इससे बाल श्रम, लिंग आधारित हिंसा, लड़कियों की छोटी उम्र में और जबरन विवाह व किशोरावस्था में ही गर्भवती होने का ख़तरा बढ़ जाता है, और बहुत सी लड़कियाँ, औपचारिक शिक्षा के लिये, फिर कभी स्कूल नहीं लौट पाती हैं.
लड़कियों के लिये शिक्षा सुनिश्चित करने और किसी को भी पीछे ना छूटने देने के लिये, नेपाल में संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियाँ समन्वित प्रयास कर रही हैं.
यूएन शैक्षिक, वैज्ञानिक एवँ सांस्कृतिक संगठन (UNESCO), संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) और महिला सशक्तिकरण के लिये प्रयासरत यूएन महिला संस्था (UN Women) के एक साझा कार्यक्रम के तहत, लड़कियों की शिक्षा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से सामुदायिक रेडियो कार्यक्रम शुरू किया गया है.
नेपाल के ग्रामीण इलाक़ों में अधिकाँश लोगों के लिये, ऑनलाइन सूचना व सेवाओं तक पहुँच आसान नहीं है.
बिजली की आपूर्ति से लेकर इण्टरनेट डेटा तक पहुँच आम ना होने और डिजिटल कौशल की कमी जैसे मुद्दों के कारण सूचना और संचार प्रौद्योगिकी आधारित सेवाओं की सुलभता चुनौतीपूर्ण हो जाती है.
परिणामस्वरूप, नेपाल में रेडियो, अब भी सूचना का सबसे लोकप्रिय माध्यम बना हुआ है, जिसे लोग अपने मोबाइल फोन पर, पारम्परिक रेडियो सैट या रेडियो ऐप के ज़रिये आसानी से सुन लेते हैं.
रेडियो नाटकों, वॉक्स-पॉप (लोगों की राय) और साक्षात्कारों के ज़रिये, ‘पढ्न देउ, अघी बढ़ी हुई देउ’ (पढ़ने दो, हमें बढ़ने दो) नामक यह कार्यक्रम, मौजूदा लैंगिक असमानताओं व उन हानिकारक प्रथाओं की शिनाख़्त करता है जिनकी वजह से लड़कियाँ लैंगिक भेदभाव का शिकार होकर शिक्षा से वंचित रह जाती हैं.
रेडियो नाटक 18 साल की एक लड़की श्रीजाना के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसके माता-पिता महामारी के कारण परिवार का बोझ कम करने के लिये उसकी शादी करना चाहते हैं.
प्रान्त 2 और सुदूर पश्चिम प्रान्त सहित नेपाल के पाँच ज़िलों के 26 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों में तीन महीने की अवधि के लिये इस रेडियो कार्यक्रम का प्रसारण हो रहा है.
नेपाल में हाशियेकरण का शिकार सबसे अधिक समुदाय, इन दोनों प्रान्तों में रहते हैं. यहाँ छउपाड़ी (मासिक धर्म के दौरान अलगाव की एक सामाजिक प्रथा), जल्द विवाह और दहेज जैसी भेदभावपूर्ण साँस्कृतिक प्रथाएँ अब भी प्रचलित हैं.
नेपाल में यूनेस्को, सामुदायिक रेडियो प्रसारकों के संघ (ACORAB) के साथ मिलकर, उन दूरदराज़ क्षेत्रों में श्रोताओं को जोड़ने की कोशिशों में लगा है, जहाँ ऑनलाइन मीडिया की पहुँच आज भी एक चुनौती है.
साप्ताहिक कार्यक्रम में सार्वजनिक सेवा घोषणाएँ की जाती हैं, रेडियो जिंगल्स के माध्यम से हानिकारक सामाजिक प्रथाओं और महामारी के दौरान लड़कियों की शिक्षा में आए व्यवधान पर बातचीत की जाती है.
साथ ही स्कूल फिर से खुलने पर कक्षा में उनकी सुरक्षित वापसी पर बल दिया जाता है.
सभी एपिसोड यूनेस्को काठमाण्डू के फ़ेसबुक पेज के माध्यम से प्रत्येक शनिवार सुबह 6:30 से 7:00 बजे तक, और बुधवार को पाँच लक्षित ज़िलों में से स्थानीय भाषाओं में प्रसारित किये जाते हैं.