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परमाणु शस्त्र निषेध सन्धि हुई लागू, यूएन महासचिव ने बताया अहम पड़ाव

जापान के हिरोशिमा में, पमराणु बम गिराए जाने के बाद एक इमारकत का भयानक दृश्य. इस स्थल को बाद में, एक स्मारक के रूप में सहेजा गया है.
UN Photo/DB
जापान के हिरोशिमा में, पमराणु बम गिराए जाने के बाद एक इमारकत का भयानक दृश्य. इस स्थल को बाद में, एक स्मारक के रूप में सहेजा गया है.

परमाणु शस्त्र निषेध सन्धि हुई लागू, यूएन महासचिव ने बताया अहम पड़ाव

यूएन मामले

पिछले लगभग दो दशकों में, प्रथम बहुपक्षीय परमाणु निरस्त्रीकरण सन्धि, शुक्रवार को लागू हुई है जिसे, यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरश ने, विश्व को परमाणु शस्त्रों से मुक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम क़रार दिया है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि परमाणु शस्त्र निषेध सन्धि (TPNW), दुनिया भर में सभी के लिये परमाणु निरस्त्रीकरण के वास्ते बहुपक्षीय रुख़ को एक मज़बूत समर्थन का प्रतिनिधित्व भी करती है.

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जीवितों के दुखद अनुभव

यूएन प्रमुख ने एक वीडियो सन्देश और वक्तव्य में उन देशों की प्रशंसा की है जिन्होंने इस परमाणु शस्त्र निषेध सन्धि को स्वीकार कर लिया है.

उन्होंने साथ ही, इस सन्धि के लिये बातचीत को आगे बढ़ाने और अन्ततः इसे लागू करवाने में, सिविल सोसायटी की बहुत अहम भूमिका का भी स्वागत किया है.

उन्होंने कहा है कि परमाणु विस्फोटों और परमाणु परीक्षणों के भुक्तभोगियों ने बहुत दुखद व भयानक अनुभव बयान किये हैं और इस सन्धि के वजूद में आने और लागू होने के पीछे, उनका भी एक नैतिक शक्ति के रूप में योगदान है.

इस सन्धि के लागू होने का बहुत कुछ श्रेय, उन लोगों की अथक कोशिशों को जाता है.

एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि वो इस सन्धि के अनुरूप ही, संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई की अगुवाई करने के लिये आशान्वित हैं, जिसमें सदस्य देशों की पहली आधिकारिक बैठक के लिये तैयारियाँ किया जाना भी शामिल है.

बढ़ते ख़तरे

यूएन प्रमुख ने कहा, “परमाणु शस्त्र बढ़ता ख़तरा पेश करते हैं और विश्व को परमाणु शस्त्रों से मुक्ति पाने और उनके किसी भी सम्भावित प्रयोग के परिणामस्वरूप होने वाले मानवीय और पर्यावरण विनाश की रोकथाम के लिये तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है.”

उन्होंने कहा कि परमाणु शस्त्रों से छुटकारा पाना, संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च निरस्त्रीकरण प्राथमिकता है.

उन्होंने तमाम देशों से, सामान्य सुरक्षा और सामूहिक हिफ़ाज़त मज़बूत करने की ख़ातिर, इस महत्वाकाँक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिये, एकजुट होकर काम करने का आहवान किया.

इस परमाणु शस्त्र निषेध सन्धि को लागू होने के लिये 50 देशों की स्वीकार्यता की आवश्यकता थी जो उसने अक्टूबर 2020 में हासिल कर ली थी. अभी तक 86 देश इस सन्धि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं.

इस मुहिम में अथक प्रयास करने वाले कार्यकर्ताओं ने शुक्रवार के इस क्षण का बेसब्री से इन्तज़ार किया है और उन्होंने इस पड़ाव को परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में एक नया अध्याय क़रार दिया है.

इस सन्धि को आरम्भिक रूप में, यूएन महासभा में, वर्ष 2017 में, 122 देशों ने मंज़ूर किया था, लेकिन इसे लागू होने के लिये, कम से कम 50 देशों की स्वीकार्यता की आवश्यकता थी.

परमाणु शस्त्रों की समाप्ति के लिये अन्तरराष्ट्रीय अभियान के नेतृत्व में, सिविल सोसायटी समूहों के, दशकों तक चली मुहिम और प्रयासों की बदौलत, आख़िरकार, ये सन्धि लागू हो सकी है.

परमाणु शक्तियों का मौन

अलबत्ता, मुख्य परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों – अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन, और फ्रांस ने, अभी तक इस सन्धि पर दस्तख़त नहीं किये हैं.

इस सन्धि में घोषित किया गया है कि जो देश इस पर हस्ताक्षर करेंगे और इसे स्वीकार करेंगे, वो किन्हीं भी परिस्थितियों में, परमाणु शस्त्रों या अन्य प्रकार की परमाणु विस्फोटक उपकरणों का विकास, परीक्षण, उत्पादन, निर्माण और किसी अन्य प्रकार से अधिग्रहण, प्राप्ति या भण्डार नहीं करेंगे.

अक्टूबर 2020 में, सिविल सोसायटी समूहों और उनके अभिभावक संगठन (ICAN) ने एक वक्तव्य में कहा था कि जब यह सन्धि लागू हो जाएगी तो, सभी सदस्य देशों को अपने वादे निभाने होंगे और इसके तहत लगे प्रतिबन्धों का पालन करना होगा. 

इस संगठन को वर्ष 2017 का नोबेल शान्ति पुरस्कार भी मिला था.