अन्तिम उपाय के तौर पर ही हो स्कूलों में तालाबन्दी - यूनीसेफ़

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने मंगलवार को ज़ोर देकर कहा है कि बच्चों की स्कूली शिक्षा जारी रखने के लिये कोई भी कसर नहीं छोड़ी जानी चाहिये. ग़ौरतलब है कि कोरोनावायरस संकट के कारण अनेक देशों में ऐहतियाती उपायों के तौर पर स्कूलों को बन्द किया है जिससे करोड़ों बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर असर हुआ है.
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फ़ोर ने एक बयान जारी कर कहा कि स्कूलों में तालाबन्दी से बच्चों पर होने वाले प्रभाव स्पष्ट हैं.
“As we enter the second year of the COVID-19 pandemic, and as cases continue to soar around the world, no effort should be spared to keep schools open or prioritize them in reopening plans.” @unicefchiefhttps://t.co/16j5bKIIqN
UNICEF
साथ ही यह भी स्पष्ट है कि वैश्विक महामारी स्कूलों से नहीं फैल रही है, इसके बावजूद बहुत से देशों ने स्कूलों को बन्द रखने का निर्णय लिया है और कुछ देशों में तो अब एक साल होने जा रहा है.
यूनीसेफ़ प्रमुख ने आगाह किया है कि स्कूलों को बन्द किये जाने की विनाशकारी क़ीमत चुकानी पड़ी है और पिछले वर्ष कोविड-19 व्यवधान के कारण दुनिया भर में 90 फ़ीसदी से ज़्यादा छात्र प्रभावित थे.
एक-तिहाई से ज़्यादा स्कूली बच्चों के पास घर बैठे पढ़ाई-लिखाई करने की सुविधा व माध्यमों तक पहुँच नहीं थी.
“स्कूलों के दायरे से बाहर रहने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर दो करोड़ 40 लाख होने की सम्भावना है, इस स्तर को वर्षों से नहीं देखा गया है जबकि इस सफलता को पाने के लिये कड़ी लड़ाई लड़ी गई है.”
“बच्चों के पढ़ने, लिखने और बुनियादी गणित करने की क्षमता प्रभावित हुई है और 21वीं सदी की अर्थव्यवस्थों में फलने-फूलने के लिये ज़रूरी कौशल कमज़ोर हुए हैं.”
यूएन एजेंसी की प्रमुख हेनरीएटा फ़ोर के मुताबिक बच्चों को घर तक सीमित रखने से उनके स्वास्थ्य, विकास, सुरक्षा और कल्याण पर जोखिम बढ़ता है. सबसे ज़्यादा निर्बल बच्चों को इसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ रही है.
उन्होंने कहा कि स्कूलों में मिलने वाले भोजन के बग़ैर बच्चे भूखे हैं और उनमें कुपोषण बढ़ रहा है.
स्कूलों में अपने सहपाठियों के साथ बातचीत और खेलकूद ना हो पाने की वजह से उनकी शारीरिक फ़िटनेस प्रभावित हुई है और मानसिक दबाव के संकेत भी दिखने लगे हैं.
स्कूलों में मिलने वाली सुरक्षा के एहसास से वन्चित छात्रों के सामने अब दुर्व्यवहार, बाल विवाह और बाल श्रम जैसे जोखिम भी बढ़ गये हैं.
यूएन एजेंसी प्रमुख ने कहा कि इसके मद्देनज़र स्कूलों में तालाबन्दी को एक अन्तिम उपाय के तौर पर ही इस्तेमाल में लाया जाना चाहिये - अन्य सभी उपायों की आज़माइश के बाद ही.
यूनीसेफ़ का मानना है कि स्थानीय स्तर पर वायरस के फैलाव के जोखिम का आकलन अहम है और स्कूलों के संचालन या वहाँ तालाबन्दी के सम्बन्ध में निर्णय लेते समय इसका ख़याल रखा जाना होगा.
एजेंसी के अनुसार राष्ट्रव्यापी स्कूल तालाबन्दी से जहाँ तक सम्भव हो, बचा जाना चाहिये.
उन्होंने कहा कि जहाँ सामुदायिक फैलाव का स्तर ऊँचा हो, जहाँ स्वास्थ्य प्रणालियों पर भारी बोझ हो और जहाँ स्कूलों को खुला रख पाना सम्भव ना हो, वहाँ सुरक्षा के उपाय किये जाने होंगे.
साथ ही यह ज़रूरी है कि घर में हिंसा का जोखिम झेलने वाले, स्कूलों में मिलने वाले आहार पर निर्भर और ज़रूरी सेवाओं व क्षेत्रों में रोज़गार वाले अभिभावकों के बच्चों की स्कूलों में शिक्षा जारी रखी जाये.
तालाबन्दी व अन्य पाबन्दियों के हटने के बाद बच्चों के लिये स्कूली शिक्षा को फिर शुरू करने को प्राथमकिता दी जानी चाहिये.
इसके अलावा जो बच्चे रिमोट लर्निंग से वँचित रह गये हों, उनके लिये पाठ्यक्रम को पूरा किये जाने के उपायों पर ध्यान दिया जाना होगा.