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गन्दे नाले में मगरमच्छों की वापसी का रास्ता कैसे हुआ साफ़!

भारत की भारत की स्नेहा शाही ने अपने कॉलेज के बीचो-बीच बहती जलधारा से प्लास्टिक का कचरा साफ़ करने की मुहिम चलाई.स्नेहा शाही ने अपने कॉलेज के बीचो-बीच बहती जलधारा से प्लास्टिक का कचरा साफ़ करने की मुहिम चलाई.
Sneha Shahi
भारत की भारत की स्नेहा शाही ने अपने कॉलेज के बीचो-बीच बहती जलधारा से प्लास्टिक का कचरा साफ़ करने की मुहिम चलाई.स्नेहा शाही ने अपने कॉलेज के बीचो-बीच बहती जलधारा से प्लास्टिक का कचरा साफ़ करने की मुहिम चलाई.

गन्दे नाले में मगरमच्छों की वापसी का रास्ता कैसे हुआ साफ़!

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने, भारत के गुजरात राज्य में,  ‘प्लास्टिक टाइड टर्नर चैलेंज’ अभियान के तहत एक विश्वविद्यालय की छात्रा ने प्लास्टिक कचरे के बारे में जानकारी हासिल कर, अपने कॉलेज के बीचो-बीच बहती जलधारा से प्लास्टिक का कचरा साफ़ करने की मुहिम चलाई. नतीजा यह हुआ कि बरसों से गन्दे नाले के रूप में पहचान पाने वाली खुकी जलधारा स्वच्छ तो हुई ही, उसमें मगरमच्छ और कछुए भी वापस लौट आए.

मगरमच्छ स्नेहा शाही का पसन्दीदा जानवर तो नहीं है, लेकिन आजकल जब वह मगरमच्छ देखती हैं, तो उनके चेहरे पर मुस्कुराहट बिखर जाती है, और आजकल मगरमच्छ दिखते भी तो ख़ूब हैं, इसलिये स्नेहा शाही के चेहरे पर मुस्कान भी ख़ूब नज़र आती है.

दरअसल स्नेहा शाही ने प्लास्टिक कचरे से भरी गन्दी जलधारा को साफ़ करने के लिये एक अभियान चलाया था, जिसका अप्रत्याशित परिणाम हुआ - उस जलधारा में मगरमच्छों की वापसी. यह जलधारा भारत के गुजरात के बड़ौदा स्थित महाराजा सायाजीराव विश्वविद्यालय के बीचो-बीच बहती है. स्नेहा शाही इसी  विश्वविद्यालय की छात्रा है. 

स्नेहा शाही ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) को बताया, "हम अक्सर मज़ाक करते थे कि हमारे कॉलेज की नदी में मगरमच्छ कैसे हो सकते हैं, ‘यह सम्भव नहीं है, यह सुरक्षित भी नहीं है!’ 

“तब हमें अहसास हुआ कि मुद्दा यह नहीं था... बल्कि इससे उलट था. यह मगरमच्छों का निवास स्थान है और हमने इसे बर्बाद कर दिया है. हमें इस पारिस्थितिकी तन्त्र को पुनर्जीवित करने के लिये जो कुछ भी हो सके, करना चाहिये.” 

स्नातक की छात्रा, 23 वर्षीय स्नेहा शाही, स्वभाव से बेहद चंचल हैं. उन्हें किताबें पढ़ना और नई-नई जगहों पर ट्रैकिंग पर जाना बहुत पसन्द है. 

स्नेहा शाही ने कुछ समय पहले संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के ‘प्लास्टिक टाइड टर्नर चैलेंज’ अभियान के बारे में सुना.

ब्रिटेन द्वारा वित्त पोषित "टाइड टर्नर प्लास्टिक चैलेंज" 2018 के बाद से, अफ़्रीका, एशिया और कैरीबियाई क्षेत्र के 25 देशों में, 2 लाख 25 हज़ार से अधिक युवाओं तक पहुँच बना चुका है. 

यह पहल समुद्र में प्लास्टिक कचरे को कम करने के लिये, ब्रिटेन सरकार की 25 साल की पर्यावरण योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

कार्रवाई की प्रेरणा 

भारत में, ‘टाइड टर्नर’ सरकार द्वारा समर्थित हैं और लगभग 1 लाख 60 हज़ार इको-स्कूलों के माध्यम से जारी की जाएगी.

भारत में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय के अतिरिक्त सचिव, रवि अग्रवाल कहते हैं, "प्लास्टिक कचरे और इसके ग़ैर-ज़िम्मेदार निपटान का हमारे वनस्पतियों, जीवों और भूमि जल प्रणालियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. राष्ट्र का भविष्य होने के नाते, छात्र बड़े पैमाने पर अपने परिवारों और समाज के लिये परिवर्तन के प्रभावी कारक बन सकते हैं.” 

“हम देश भर के विभिन्न स्कूलों में ‘टाइड टर्नर’ पाठ्यक्रम लागू करने का समर्थन कर रहे हैं ताकि भारतीय बच्चों की अगली पीढ़ी शिक्षित, जागरूक और कार्रवाई के लिये प्रेरित हो सके.” 

उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम के तहत तीन अलग-अलग स्तरों पर शिक्षा दी जाती है - प्रवेश स्तर, नेतृत्व स्तर और चैम्पियन स्तर. जो युवा इसे चैम्पियन स्तर तक ले जाते हैं, वे समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण और उसके प्रबन्धन की पूरी समझ हासिल कर लेते हैं. फिर कार्रवाई के लिये वे अपने समुदायों को प्रेरित करते हैं - बिल्कुल वैसे ही जैसे स्नेहा शाही ने किया. 

भारत के गुजरात प्रदेश के बड़ौदा में, इस समूह ने नदी के 800 मीटर लम्बी सीमा से 700 किलोग्राम प्लास्टिक कचरा साफ़ किया.
Sneha Shahi
भारत के गुजरात प्रदेश के बड़ौदा में, इस समूह ने नदी के 800 मीटर लम्बी सीमा से 700 किलोग्राम प्लास्टिक कचरा साफ़ किया.

जब इस अभियान के क्रियान्वयन भागीदार, पर्यावरण शिक्षा केन्द्र (CEE) स्नेहा शाही के कॉलेज में यह कोर्स लेकर आया, तो उसमें नामांकन करने वाली वह पहली छात्रा थीं. 

स्नेहा शाही ने 300 से अधिक साथी छात्रों को अपने साथ जोड़ा - जिनमें से लगभग 90 तो उनके अपने विषय (पर्यावरण विज्ञान विभाग) से हैं. इन सभी ने, साथ मिलकर एक सर्वेक्षण किया कि एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को प्रतिबन्धित और समाप्त किया जाना चाहिये या नहीं.

उम्मीद की किरण

छात्रों की टीम ने विश्वविद्यालय के बीच बहने वाली भुकी नाला धारा पर ध्यान केन्द्रित करने का फ़ैसला किया, जिसमें प्लास्टिक और ठोस कचरा भरा हुआ था. वे पानी की गुणवत्ता की जाँच करके इस नतीजे पर पहुँचे कि हालाँकि वो नाला बहुत गन्दा है, लेकिन स्थिति इतनी ख़राब भी नहीं है कि उसे बदला न जा सके. 

“नाले का मतलब है – गटर, यानि गन्दे पानी की निकासी का रास्ता. लेकिन इसकी जाँच करने पर हमने पाया कि यह नाला, दरअसल, एक प्राकृतिक जलधारा थी, जो अब प्लास्टिक के कचरे से भर गया था. स्नेहा शाही ने बताया कि इन्हीं वजहों से यह जलधारा एक नाले की तरह दिखने लगी है, लेकिन कई जगहों पर अब भी इसमें दुर्लभ जैव विविधता नज़र आ जाती थी.”

इन प्रयासों के परिणामस्वरूप भुकी धारा बहाली परियोजना का जन्म हुआ. 

शुरू में, सफ़ाई के दौरान, लगभग 300 किलोग्राम कचरा हटाकर अलग किया गया और उसे फिर से उपयोग योग्य बनाया गया, यानि री-सायकिल किया गया. 

बड़े प्लास्टिक और थर्माकोल को साफ़ करके छोटे गमलों और दीवारों पर लगाने वाली सज्जा के रूप में ढाला गया. काँच की बोतलों को री-सायकलिंग के लिये भेजा गया. 

इस समूह ने, नदी के लगभग 800 मीटर लम्बी सीमा के इलाक़े से, 700 किलोग्राम कचरा साफ़ किया. 

नए दोस्तों का आगमन

जैसे-जैसे कचरा कम होता गया और हालात सुधरते गए, स्नेहा शाही और उसके स्वयंसेवक साथी, यह देखकर प्रफुल्लित हो उठे कि मानसून की बारिश में गंगा के मुलायम खोल वाले कछुए और मगरमच्छ, मुख्य नदी से तैरकर, सहायक नदी में वापस लौटने लगे हैं. 

साथ ही, पौधे और कीड़े भी वहाँ फिर दिखने लगे.

स्नेहा शाही ने बताया, “आजकल मैं जब भी भुकी धारा के ऊपर से गुज़रती हूँ, तो मगरमच्छ देखने की उम्मीद में थोड़ी देर पुल पर ही रुक जाती हूँ. पहले, इनके दिखने की सम्भावना कम होती थी, लेकिन अब यह सम्भवना 10 में से 8 के अनुपात से बढ़ गई है. इससे मुझे बहुत ख़ुशी होती है. हमारे इन नए दोस्तों की नियमित उपस्थिति के कारण अब विश्वविद्यालय को सुरक्षा बाड़ भी लगाने पड़े हैं.”

टाइड टर्नर चुनौती 

स्नेहा शाही और उनकी टीम के प्रयासों को तब पहचान व सम्मान मिले, जब उन्होंने भुकी स्ट्रीम परियोजना के लिये ‘यूथ फॉर अर्थ अवार्ड’ (टीम का नाम – Our Common Future) जीता. 

यह समूह अब इस सफलता को और आगे बढ़ाने का इरादा रखता है, और परियोजना को आगे बढ़ाकर, शहर के केन्द्र में पारिस्थितिकी तन्त्र को पूरी तरह बहाल करने की योजना पर काम करना चाहता है. 

यूनेप, विश्व एसोसिएट्स ऑफ गर्ल गाइड्स (2 करोड़ सदस्यों तक पहुँच),विश्व स्काउट्स एसोसिएशन (5 करोड़ सदस्य) और जूनियर अचीवमेंट (1 करोड़ सदस्य) के साथ मिलकर काम कर रहा है, ताकि समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण के विषय पर युवाओं को शिक्षित किया जा सके, जिससे वो अपने समुदायों में इस समस्या के निदान में मदद कर सकें.

“टाइड टर्नर चुनौती,’ यूनेप द्वारा समर्थित ‘द अर्थ ट्राइब’ का हिस्सा है, जिसमें युवाओं को एक मंच पर एकत्र करके, प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जानकारी और कार्रवाई का अवसर प्रदान दिया जाता है.

लेकिन स्नेहा शाही ने बताया कि 'टाइड टर्नर बैज' हासिल करना आसान नहीं था और चुनौती के बीच कई बार हौसला टूटा. लेकिन उन्हें लगा कि प्लास्टिक कचरे के मुद्दे पर समझ इतनी कम है कि उसे लोगों तक पहुँचाने के लिये उन्हें दृढ़ रहना होगा.

स्नेहा शाही कहती हैं, “जब आप पहली बार चुनौतियों को देखते हैं, तो लगता है कि आप यह सभी स्तर पार नहीं कर पाएँगे. लेकिन मैंने इसमें अपनी पूरी ताक़त लगाने का फैसला किया, जिससे लोगों और हितधारकों तक पहुँच बना सकूँ.” 

उन्होंने कहा, “धीरे-धीरे अभियान ने गति पकड़ ली. प्लास्टिक को हमारी नदियों, धाराओं, महासागरों या जंगलों में आने ही नहीं दिया जाना चाहिये.” 

“ये प्लास्टिक कूड़ा-कचरा इंसानों ने बनाया है, इसलिये यह पूरी तरह से हमारी ज़िम्मेदारी है कि एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को ख़त्म करें और इसे हमारे पारिस्थितिक तन्त्र में प्रवेश करने से रोकें."