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चीन में मानवाधिकार पैरोकारों और वकीलों के ख़िलाफ़ कार्रवाई पर क्षोभ  

चीन के शंघाई में गगनचुंबी इमारतों का नज़ारा पेश करने वाले स्थान पर शांति पसरी है.
Unsplash/Aleksandr Buynitskiy
चीन के शंघाई में गगनचुंबी इमारतों का नज़ारा पेश करने वाले स्थान पर शांति पसरी है.

चीन में मानवाधिकार पैरोकारों और वकीलों के ख़िलाफ़ कार्रवाई पर क्षोभ  

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के एक मानवाधिकार विशेषज्ञ ने चीन में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों के साथ स्तब्धकारी बर्ताव पर चिन्ता जताई है. मानवाधिकारों की रक्षा के लिये सक्रिय कार्यकर्ताओं की स्थिति पर यूएन की विशेष रैपोर्टेयर मैरी लॉलोर ने कहा है कि पिछले पाँच सालों से, राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर मानवाधिकार पैरोकारों पर मुक़दमे दायर किये जाना, उन्हें हिरासत में लिया जाना, उनका ग़ायब होना व उत्पीड़न किया जाना जारी है.  

मानवाधिकार विशेषज्ञ मैरी लॉलोर ने मौजूदा हालात पर क्षोभ ज़ाहिर करते हुए बुधवार को  कहा, “9 जुलाई 2015 को, जबसे 709 कार्रवाई की शुरुआत हुई है, तब से मानवाधिकार अधिवक्ता के पेशे का, प्रभावी ढँग से आपराधिकरण कर दिया गया है.”

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यूएन विशेषज्ञ ने हाल के समय में मानवाधिकार पैरोकार और वकील चैँग वायपिन्ग की गिरफ़्तारी और जबरन गुमशुदगी का उल्लेख करते हुए कहा, कि यह घटना उन वकीलों को चुप कराने के लिये जारी सरकारी प्रयासों की बानगी है, जोकि चीन में मानवाधिकारों के बदतर हालात के प्रति मुखर रहे हैं.

जनवरी 2020 में चैंग वायपिन्ग दस दिनों के लिये जबरन लापता कर दिये गये थे और उस दौरान उन्हें बाओजी शहर में एक स्थान पर, सुरक्षा बलों की निगरानी में रखा गया था.

इस कार्रवाई के पीछे वजह, राज्यसत्ता को नुक़सान पहुँचाने की उनकी मंशा बताई गई थी और उनका अधिवक्ता का लाइसेंस रद्द कर दिया गया था.  

बताया गया है कि वकील ने अक्टूबर में एक वीडियो ऑनलाइन मंचों पर प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने हिरासत में कथित रूप से यातना और बुरे बर्ताव का वर्णन किया. चैंग वायपिन्ग के मुताबिक इस घटना के परिणामस्वरूप उन्हें मनोवैज्ञानिक और शारीरिक पीड़ा हुई है. 

इस वीडियो के सामने आने के कुछ ही दिन बाद, चैंग वायपिन्ग को सुरक्षा अधिकारियों ने फिर से बाओजी शहर में हिरासत में ले लिया जिसके बाद से वो लापता हैं.

उनके वकील भी उनसे सम्पर्क स्थापित करने में नाकाम रहे हैं और अब तक उनके ख़िलाफ़ कोई आरोप भी तय नहीं किये गए हैं.

विशेष रैपोर्टेयर लॉलोर ने कहा, “मानवाधिकारों की अवहेलना के स्तब्धकारी प्रदर्शन में, प्रशासन ने फिर से एक मानवाधिकार रक्षक को साहसिक ढँग से अपने अनुभव सार्वजनिक करने और मानवाधिकार हनन की आलोचना करने के लिये गिरफ़्तार कर लिया है. साथ ही उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये ख़तरे के रूप में पेश करने के प्रयास किये गए हैं.”

यूएन विशेषज्ञ ने कहा कि चैंग वायपिन्ग का मुक़दमा लड़ने के लिये नियुक्त वकीलों ने भी दबाव में मुक़दमे से अपना नाम वापिस ले लिया है. उनके मुताबिक यह दर्शाता है कि मानवाधिकार रक्षकों व वकीलों के लिये चीन में हालात कितने गम्भीर हैं. 

मानवाधिकार विशेषज्ञ मैरी लॉलोर ने अन्य मानवाधिकार रक्षकों व वकीलों की गिरफ़्तारी, उन्हें हिरासत में लिये जाने और परिजनों को डराए-धमकाए जाने पर भी चिन्ता जताई है.  

उन्होंने कहा कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा व उससे जुड़ी ज़रूरतों को समझती हैं और यह हर सरकार का अधिकार है, “लेकिन इसकी क़ीमत देश के नागरिकों की ज़िन्दगी व आजीविका और उनके मानवाधिकार नहीं होने चाहिये.” 

विशेष रैपोर्टेयर के मुताबिक बुनियादी मानवाधिकार किसी भी सरकार या समाज के लिये ख़तरा नहीं हैं, और ना ही वे व्यक्ति, जो उन अधिकारों की रक्षा करते हैं.

मैरी लॉलोर ने चीन सरकार से चैंग वायपिन्ग और अन्य मानवाधिकार रक्षकों को तत्काल रिहा करने की माँग की है.  

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतन्त्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतन्त्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिये संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतन्त्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.