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आप्रवासी कामगारों को, स्थानीय लोगों की तुलना में, बहुत कम मेहनताना

जिन लोगों के पास रहने के लिये कोई जगह ही नहीं बची, उनके लिये लेबनाने के बेरूत में प्रवासी शिविर बनाए गए हैं.
IOM/Muse Mohammed
जिन लोगों के पास रहने के लिये कोई जगह ही नहीं बची, उनके लिये लेबनाने के बेरूत में प्रवासी शिविर बनाए गए हैं.

आप्रवासी कामगारों को, स्थानीय लोगों की तुलना में, बहुत कम मेहनताना

प्रवासी और शरणार्थी

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने सोमवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा है कि आप्रवासियों और स्थानीय या राष्ट्रीय कामगारों को मिलने वाले वेतन या मेहनताना के बीच काफ़ी बड़ा अन्तर है और ये अन्तर लगातार बढ़ता जा रहा है, यहाँ तक कि कोविड-19 महामारी के प्रभावों के कारण ये अन्तर और भी ज़्यादा बड़ा हो सकता है.

इस रिपोर्ट में ऐसे 49 देशों के हालात का जायज़ा लिया गया है जहाँ दुनिया भर के प्रवासी कामगारों की लगभग आधी संख्या रहती है, और पाया गया है कि प्रवासी कामगारों को औसतन लगभग 13 प्रतिशत कम वेतन या मेहनताना मिलता है.

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इस रिपोर्ट का नाम है – प्रवासी वेतन अन्तर: आप्रवासियों और राष्ट्रीय कामगारों के बीच वेतन अन्तर को समझना.

श्रम संगठन की प्रवासी शाखा की प्रमुख मिशेल लीटॉन का कहना है, “हमारी रिपोर्ट दर्शाती है कि कोविड-19 महामारी के फैलाव से पहले भी, आप्रवासी कामगारों को वेतन के मामले में काफ़ी बड़े भेदभाव और अन्तर का सामना करना पड़ता था."

"और हम जानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान वेतन या मेहनताना में ये अन्तर ना केवल और ज़्यादा व्यापक हुआ है, बल्कि आप्रवासी कामगारों को इस महामारी के दौरान भी भेदभाव का निशाना बनाया जा रहा है.”

महिलाएँ दोगुने भेदभाव की शिकार

मिशेल लीटॉन ने रिपोर्ट के निष्कर्ष प्रस्तुत करने के लिये बुलाई गई प्रेस वार्ता में कहा कि कुछ मामलों में तो इस अन्तर को शिक्षा, कौशल और अनुभवों जैसे उद्देश्यपरक तत्वों के आधार पर सही ठहराया जा सकता है, मगर, कुल मिलाकर देखा जाए तो आप्रवासियों को कम वेतन या मेहनताना मिलने का मुख्य कारण भेदभाव ही है.

उन्होंने कहा, “इसलिये, हमारे समाजों और कामकाज के स्थानों पर, बहुत गहराई से जड़ जमाए हुए पूर्वाग्रहों और भेदभाव का मुक़ाबला करना, पहले से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है."

"और आप्रवासियों को मिलने वाले कम वेतन के मुद्दे का हल निकालना ना केवल सामाजिक न्याय का मुद्दा है बल्कि परिवारों के बीच आय असमानताएँ कम करने के लिये भी, ये महिलाओं और पुरुषों के बीच असमानता को कम करने के लिये बहुत अहम मुद्दा है.”

महिला आप्रवासी कामगार अक्सर घरेलू कामकाज, या स्वास्थ्य देखभाल के कामकाज करती हैं, जहाँ उनके साथ वेतन या मेहनताना का मामले में दोगुना अन्तर किया जाता है, और अन्ततः वो राष्ट्रीय या स्थानीय कामगारों और पुरुष आप्रवासी कामगारों की तुलना में औसतन कम वेतन पाती हैं.

ये वेतन अन्तर साइप्रस में सबसे ज़्यादा क़रीब 42 प्रतिशत, इटली में 30 प्रतिशत और ऑस्ट्रिया में 25 प्रतिशत पाया गया. योरोपीय संघ के क्षेत्रीय स्तर पर ये अन्तर वैश्विक औसत से कम स्तर पर 9 प्रतिशत से कम पाया गया.

उच्च आय वाले देशों में, आप्रवासी कामगारों को अक्सर जोखिम वाले कामकाज में लगाया जाता है, जिनमें लगभग 27 प्रतिशत को अस्थाई रोज़गार ठेके मिलते हैं और 15 प्रतिशत आप्रवासी कामगार अंशकालिक रूप में काम करते हैं.

ये आप्रवासी कामगार खेतीबाड़ी, मछली शिकार, जंगल गतिविधियाँ, खदान, खुदाई, औद्योगिक उत्पादन, ऊर्जा व पानी उपभोक्ता सेवाओं और ढाँचा निर्माण क्षेत्र में काम करते हैं.

लेकिन निर्धन देशों में, जहाँ आप्रवासी कामगार अक्सर धनी देशों से आए कुशल व हुनरमन्द कामगार होते हैं, उन्हें अस्थाई ठेके पर भेजा जाताहै, मगर वहाँ उन्हें मिलने वाले वेतन या मेहनताना में सकारात्मक अन्तर होता है, यानि इन आप्रवासी कामगारों को राष्ट्रीय या स्थानीय कामगारों की तुलना में लगभग 17.3 प्रतिशत ज़्यादा वेतन मिलता है.

महामारी का प्रभाव

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की टीम ने दो देशों – अमेरिका और मैक्सिको में, प्रवासियों पर महामारी के प्रभाव की जाँच-पड़ताल की. दोनों ही देशों में शुरुआती समय में बेरोज़गारी में बढ़ोत्तरी हुई थी.

जब ये बढ़ोत्तरी कुछ कम हुई तो, अमेरिका में बहुत से प्रवासियों के स्थान पर, स्थानीय अनौपाचारिक कामगारों को कामकाज व रोज़गार दे दिया गया, जबकि बहुत से प्रवासी बेरोज़गार ही बने रहे. जबकि मैक्सिको में, प्रवासी कामगारों को नए रोज़गार व कामकाज मिल तो गए, मगर कुछ कम वेतन या मेहनताना पर.  

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के महानिदेशक, गाई राइडर ने, दिसम्बर महीने के आरम्भ में कहा था कि दुनिया के सामने, कोविड-19 महामारी से उबरने के लिये एक लम्बा और कठिन रास्ता सामने है, जिसने कामकाजी दुनिया पर भी, लगभग रातों-रात “एक बहुत भारी चोट की है”.

संगठन के वेतन व मेहनताना मामलों की विशेषज्ञ रोसालिया वास्कुवेज़-अलवारेज़ का कहना है कि महिलाओं के ऐसे क्षेत्रों में कामकाज करने की ज़्यादा सम्भावना है जो महामारी से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं, मसलन व्यापार, औद्योगिक निर्माण, निजी स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र और अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक या अस्थाई सैक्टर.

उनका कहना है कि उच्च आदमनी वाले देशों में, आने वाले कुछ महीनों के दौरान, वेतन और मेहनताना में भारी मन्दी देखने को मिल सकती है.

रोसालिया वास्कुवेज़-अलवारेज़ ने कहा, “कुल मिलाकर, हम वेतन और मेहनताना में बड़ी मन्दी की सम्भावना देखते हैं जिसका बड़ा असर, आप्रवासी व प्रवासी कामगारों पर ज़्यादा पड़ेगा.”