मानवाधिकार दिवस: महामारी पर जवाबी कार्रवाई में मानवाधिकारों पर बल

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने गुरुवार को 'मानवाधिकार दिवस' के अवसर पर अपने सन्देश में एक अपील जारी करते हुए कहा है कि कोविड-19 पर जवाबी कार्रवाई और महामारी से उबरने के प्रयासों के केन्द्र में मानवाधिकारों को रखना होगा. महासचिव गुटेरेश के मुताबिक हर जगह, हर एक व्यक्ति के लिये, एक बेहतर भविष्य हासिल करने के लिये यह बेहद अहम है.
यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, “लोगों और उनके अधिकारों को जवाबी कार्रवाई और पुनर्बहाली के दौरान केन्द्र में रखा जाना होगा."
"हमें इस महामारी को हराने और भविष्य में हमारी रक्षा के लिये सार्वभौमिक, अधिकार-आधारित फ़्रेमवर्क की आवश्यकता है, जैसेकि सर्वजन के लिये स्वास्थ्य कवरेज.”
महासचिव गुटेरेश ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने मानवाधिकारों से जुड़ी दो बुनियादी सच्चाइयों को मज़बूती से पेश किया है और यह महसूस किया गया है कि मानवाधिकारों का हनन हम सभी को दुख पहुँचाता है.
“निर्बल समूहों पर कोविड-19 महामारी का विषम-अनुपात में असर हुआ है जिनमें अग्रिम मोर्चे पर जुटे कर्मचारी, विकलांग, बुज़ुर्ग, महिलाएँ, लड़कियाँ व अल्पसंख्यक हैं.”
“यह इसलिये फला-फूला है क्योंकि ग़रीबी, विषमता, भेदभाव, प्राकृतिक पर्यावरण के विनाश और अन्य मानवाधिकार विफलताओं ने हमारे समाजों में विशाल कमज़ोरियाँ पैदा की हैं.”
महासचिव ने आगाह किया कि महामारी की वजह से मानवाधिकार कमज़ोर हो रहे हैं, आवश्यकता से ज़्यादा कड़ी सुरक्षा कार्रवाई करने के लिये ज़मीन तैयार हुई है और नागरिक समाज व मीडिया की आज़ादी के लिये दमनकारी उपाय लागू किये गए हैं.
यूएन प्रमुख ने कहा कि दूसरी सच्चाई यह है कि मानवाधिकार सार्वभौमिक हैं और हर एक की रक्षा करते हैं. इस सिलसिले में उन्होंने ध्यान दिलाया कि असरदार जवाबी कार्रवाई को एकजुटता व सहयोग पर आधारित करना होगा.
“विभाजनकारी तरीक़े, अधिनायकवाद और राष्ट्रवाद का, एक वैश्विक चुनौती के समक्ष कोई महत्व नहीं हैं.”
ग़ौरतलब है कि यूएन प्रमुख ने महामारी से पहले मानवाधिकारों के लिये कार्रवाई की एक पुकार लगाई थी और सकारात्मक बदलाव के लिये सात-सूत्री कार्यक्रम पेश किया था.
इस योजना में उन्होंने संकट के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई, लैंगिक समानता, सार्वजनिक भागीदारी और टिकाऊ विकास जैसे क्षेत्रों में मानवाधिकारों की प्रमुख भूमिका को रेखांकित किया था.
“मानवाधिकार दिवस पर और हर दिन, आइये, हम सामूहिक कार्रवाई का संकल्प लें, जिसमें कोविड-19 महामारी से उबरने और सभी के लिये एक बेहतर भविष्य के निर्माण के दौरान मानवाधिकार की मुख्य भूमिका हो.”
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसम्बर 1948 को सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणापत्र पारित किया था जिसकी वर्षगाँठ पर यह दिवस मनाया जाता है.
इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र के 130 से ज़्यादा स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने एक बयान जारी करके कहा है कि पारित होने के सात दशक बाद भी यह ऐतिहासिक दस्तावेज़ महामारी से बेहतर ढँग से उबरने के लिये एक बेहद अहम फ़्रेमवर्क मुहैया कराता है.
यूएन विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकारों की रक्षा के लिये प्रणाली में सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणापत्र की मुख्य भूमिका है.
विशेष रूप से ऐसे समय में जब दुनिया कोविड-19 महामारी के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन, नस्लवाद और भेदभाव जैसी चुनौतियों से जूझ रही है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों के अनुसार, वर्ष 2020 को अनूठी अस्तित्ववादी चुनौतियों के लिये याद रखा जाएगा और इसने मानवता को एक महत्वपूर्ण सन्देश दिया है: मानवता के समक्ष पेश वैश्विक ख़तरों से निपटने के लिये वैश्विक कार्रवाई की ज़रूरत है जिसकी बुनियाद में बहुपक्षवाद, सहयोग और एकजुटता को रखना होगा.