ग़ाज़ा में इसराइली हमलों व नाकाबन्दी से, दस वर्ष में 16 अरब डॉलर का नुक़सान
संयुक्त राष्ट्र की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि इसराइल द्वारा फ़लस्तीनी क्षेत्र ग़ाज़ा में सैन्य गतिविधियों और नाकेबन्दी के कारण वर्ष 2007 से 2018 के बीच, लगभग 16 अरब 70 करोड़ डॉलर का आर्थिक नुक़सान हुआ है. यूएन व्यापार और विकास संगठन – UNCTAD की बुधवार को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार इसराइल द्वारा ग़ाज़ा की नाकाबन्दी के कारण सामान्य हालात की तुलना में ग़रीबी चार गुना ज़्यादा बढ़ गई है.
यूएन महासभा के लिये तैयार की गई, अंकटाड की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग़ाज़ा की अर्थव्यवस्था ढहने के कगार पर है.
ग़ाज़ा में इसराइल के सैन्य अभियानों के कारण जो नुक़सान हुआ, वो इस फ़लस्तीनी क्षेत्र के 2018 में वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग दस गुना ज़्यादा है, दूसरे शब्दों में, फ़लस्तीनी सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 107 प्रतिशत.
Prolonged closure and military operations have left #Gaza’s regional economy on the verge of collapse. The occupation cost Gaza $16.7 billion in the past decade, @UNCTAD estimates in its latest report to the @UN General Assembly. https://t.co/UFLZsBUvy4 pic.twitter.com/oFPKaB0hAP
UNCTAD
ग़रीबी के मूलक
ग़ाज़ा में वर्ष 2007 में ग़रीबी की दर 40 प्रतिशत थी, और अगर इसराइल के लम्बे सैन्य अभियानों के ज़रिये भारी तबाही नहीं हुई होती तो इस ग़रीबी में वर्ष 2017 तक 15 प्रतिशत की कमी आ सकती थी, मगर इसके उलट, ग़रीबी की दर बढ़कर 56 प्रतिशत हो गई.
असमानता की गहराई भी अपेक्षा से कहीं ज़्यादा विकट है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि परिवारों के ग़रीबी रेखा से दूर या नज़दीक होने के पैमाने के तहत ग़रीबी की खाई वर्ष 2017 में 20 प्रतिशत थी, और अगर इसराइली सैन्य अभियान नहीं चलाए जाते तो ये दर 4.2 प्रतिशत होती.
फ़लस्तीनी लोगों की सहायता के लिये अंकटाड के संयोजक महमूद अल-ख़फ़ीफ़ ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि ग़ाज़ा की अर्थव्यवस्था में, वर्ष 2007 से 2017 के बीच 5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई, जोकि प्रति वर्ष केवल 0.5 प्रतिशत से भी कम रही.
कुल फ़लस्तीनी अर्थव्यवस्ता में ग़ाज़ा का हिस्सा भी 37 प्रतिशत से लगभग आधा कम होकर 18 प्रतिशत पर रह गया है.
इसराइली सैन्य कार्रवाई का लम्बा असर
अंकटाड की रिपोर्ट का मक़सद ग़ाज़ा में इसराइल के हमलों के तीन दौरों का, वर्ष 2008 के बाद से हुए असर का आकलन करना था.
साथ ही रिपोर्ट में, ग़ाज़ा पट्टी में हमास की सरकार बनने के बाद से इसराइली द्वारा लागू की गई आर्थिक नाकेबन्दी और आवागमन पर पाबन्दियों का असर भी मापना था.
रिपोर्ट में कहा गया है, “परिणाम ये हुआ है कि ग़ाज़ा की अर्थव्यवस्था ढह जाने के कगार पर पहुँच गई है जबकि बाक़ी फ़लस्तीनी क्षेत्रों से और दुनिया से व्यापार पर भी बहुत गम्भीर पाबन्दियाँ लगाई हुई हैं.”
नाकाबन्दी हटाने की अपील
रिपोर्ट में कहा गया है, “ग़ाज़ा की अर्थव्यवस्था का गला घोंट देने वाली पाबन्दियों का हटाया जाना बहुत ज़रूरी है ताकि ये क्षेत्र फ़लस्तीनी क्षेत्र के शेष इलाक़ों और बाक़ी दुनिया के साथ स्वतन्त्र रूप से व्यापार कर सके, और कारोबार, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, मनोरंजन और पारिवारिक सम्बन्ध निभाने के लिये स्वतन्त्र आवागम के अधिकार बहाल किये जा सकें.”
“सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव संख्या 1860 (2009) के अनुरूप तमाम पाबन्दियाँ हटाने से ही, इस मानवीय संकट का टिकाऊ हल तलाश किये जाने की उम्मीद की जा सकती है.”
रिपोर्ट कहती है कि ग़ाज़ा में ज़्यादातर लोगों को स्वच्छ पानी, नियमित व भरोसेमन्द बिजली आपूर्ति और यहाँ तक कि गन्दगी निकासी की समुचित प्रणाली का भी अभाव है.
इसराइली हमलों और यात्राओं पर लगाई गई पाबन्दियों के आर्थिक असर के आकलन पर अंकटाड की इस रिपोर्ट में फ़लस्तीनी लोगों को ऐसे व्यापक फ़ायदे शामिल नहीं किये गए हैं, जो उन्हें ग़ाज़ा के किनारों पर मौजूद प्राकृतिक गैस के मैदानों से आमदनी के ज़रिये हो सकते थे.
और ज़्यादा निवेश की दरकार
रिपोर्ट में सिफ़ारिश की गई है कि फ़लस्तीनी सरकार को उन ऊर्जा संसाधनों को विकसित करने की अनुमति दी जानी चाहिये, और ग़ाज़ा में, बन्दरगाहों, हवाई अड्डों, पानी और बिजली परियोजनाओं में निवेश करके, वहाँ की आर्थिक प्रगति की सम्भावनाओं में जान फूँकनी चाहिये.
अंकटाड में वैश्वीकरण और विकास रणनीति विभाग के निदेशक रिचर्ड कोज़ूल-राइट का कहना है कि ग़ाज़ा में रहने वाले लगभग 20 लाख फ़लस्तीनियों को अब कोविड-19 महामारी के कारण स्वास्थ्य आपदा का सामना करना पड़ रहा है.
लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि अमेरिका में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन के नेतृत्व वाली नई सरकार के सन्दर्भ में कुछ ऐहतियाती उम्मीद भी नज़र आ रही है कि उनके आने से अमेरिकी रुख़ में कुछ सकारात्मक बदलाव हो सकते हैं.
रिचर्ड ने कहा, “इस स्थिति ने स्वभाविक रूप में ये उम्मीदें बढ़ा दी हैं कि इसराइल और फ़लस्तीन के बीच सम्बन्धों में कुछ बदलाव आ सकते हैं.”