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कोविड के बाद की दुनिया के लिये बुनियादी बदलावों की ज़रूरत

कोलम्बिया के कौका में आदिवासी समुदायों के लिये जैव सुरक्षा उपकरण, फ़ेस मास्क और खाद्य किटें मुहैया कराने के इन्तेज़ाम में यूएनडीपी ने भी मदद की है.
UNDP Colombia/Jurany Carabani
कोलम्बिया के कौका में आदिवासी समुदायों के लिये जैव सुरक्षा उपकरण, फ़ेस मास्क और खाद्य किटें मुहैया कराने के इन्तेज़ाम में यूएनडीपी ने भी मदद की है.

कोविड के बाद की दुनिया के लिये बुनियादी बदलावों की ज़रूरत

स्वास्थ्य

ऐसे में जबकि, कोविड-19 महामारी दुनिया भर में एक सदी में सबसे गम्भीर और विनाशकारी स्वास्थ्य, सामाजिक-आर्थिक और मानवीय संकट पैदा करने पर आमादा है,  संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने मंगलवार को एक उच्चस्तरीय परिचर्चा में इस स्थिति का लाभ वास्तविक, बुनियादी और आवश्यक बदलाव लाने के लिये एक अवसर के रूप में करने की पुकार लगाई है.

इस परिचर्चा का नाम था – सभी लोगों के लिये टिकाऊ विकास की ख़ातिर वैश्विक अर्थव्यवस्था का पुनर्जन्म. यूएन महासचिव ने इस परिचर्चा में कहा, “हमें वैश्विक एकजुटता और तालमेल की आवश्यकता है.”

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महासचिव ने महामारी द्वारा उत्पन्न विनाश की दर्दनाक तस्वीर पेश करते हुए बताया कि दस लाख से ज़्यादा लोगों की ज़िन्दगी इसकी भेंट चढ़ चुकगी है, 10 करोड़ से ज़्यादा लोग अत्यधिक ग़रीबी असमानता के गर्त में धकेले जा चुके हैं, भुखमरी का सामना करने वाले लोगों की संख्या दो गुना हो गई है और अकाल का ख़तरा मंडरा रहा है.

महासचिव ने कहा, “लैंगिक असमानता की खाई का दायरा बढ़ रहा है, और श्रम बाज़ार में महिलाओं की भागादारी दशकों पीछे चली गई है, जबकि ये भागीदारी समावेशी प्रगति की एक महत्वपूर्ण कुंजी है.”

“हम जलवायु कार्रवाई करने और एक टिकाऊ व ऊर्जावान अर्थव्यवस्था के लिये तात्कालिक ज़रूरत का सामना कर रहे हैं.”

और इन चिन्ताजनक चुनौतियों के बीच, विकासशील देशों को वित्तीय बर्बादी का सामना करने की स्थिति में पहुँचा दिया गया है.

सर्वजन के लिये वैक्सीन

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि महामारी से उबरने के लिये जितने बड़े आर्थिक पैकेज की दरकार है, वो वैश्विक अर्थव्यवस्था का लगभग 10 प्रतिशत के बराबर होना चाहिये. साथ ही, उन्होंने पिछले सप्ताहान्त धनी देशों के जी20 सम्मेलन में विकासशील देशों की मदद किये जाने आहवान दोहराते स्वीकार किया कि महामारी का ख़ात्मा किया जाना, सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिये.

महासचिव ने कहा, “वैक्सीन, परीक्षण और उपचार, ये सभी दुनिया भर के लोगों की भलाई के लिये होने चाहिये, सर्वजन के लिये आसानी से उपलब्ध.”

“लेकिन हम अब भी खाई देख रहे हैं – कोवैक्स सुविधा में काई, 28 अरब डॉलर की रक़म की क़िल्लत, और इस वर्ष के अन्त तक नई वैक्सीन को दुनिया भर में सर्वजन के लिये आसान उपलब्धता बनाने के लिये 4 अरब 20 करोड़ डॉलर की रक़म की कमी. ये एक ऐसी वैक्सीन होगी जिसे दुनिया भर में सर्वजन को किफ़ायती दामों पर सानी से उपलब्ध कराया जाएगा.”

एक महत्वपूर्ण मौक़ा

यूएन प्रमुख ने अर्थव्यवस्थाओं को एक टिकाऊ रास्ते पर आगे बढ़ाने के लिये वित्तीय संसाधन मुहैया कराने के महत्ता पर ज़ोर दिया. इसमें विकासशील दुनिया की मदद करने के लिये अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की शक्ति को समर्थन देना भी शामिल है.

यूएन प्रमुख ने एक ऐसी नव वैश्विक व्यवस्था की हिमायत की है जिसमें ताक़त, संसाधन और अवसरों का बँटवारा समान रूप से हो, और ऐसी सरकारी प्रणालियाँ हों जो आज की वास्तविकताओं पर खरी उतरें.

उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि प्रमुख वैश्विक संस्थाओं में भागीदारी का स्तर अतीत की ज़न्जीरों में जकड़ा हुआ है, जिनमें सुरक्षा परिषद भी शामिल है, और ये आज की दुनिया को प्रतिबम्बित नहीं करता.

डगर आसान नहीं

अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की प्रबन्ध निदेशक क्रिस्टीन लैगार्ड ने ऐसी अच्छी राजनीति व अच्छी अर्थव्यवस्था की तरफ़ ध्यान दिलाया जिसमें ऐसे लोगों पर ध्यान केन्द्रित किया जाए जो आर्थिक तराज़ू के निचले पलड़े पर हैं. हालाँकि, इस सन्दर्भ में उन्होंने ये भी स्वीकार किया कि ये बदलाव कोई आसान काम नहीं है. 

क्रिस्टीन लैगार्ड ने मौजूदा और भविष्य के झटकों से निपटने के तरीक़े पर ध्यान केन्द्रित रखने की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया, और इसे उन्होंने बुनियादी मानवीय एकजुटता का इम्तेहान क़रार दिया.

विश्व बैंक समूह के मुख्य अर्थशास्त्री कैरमैन एम. रीनहार्ट ने कहा कि आज की बहुत सी आर्थिक चुनौतियाँ कोविड-19 शुरू होने से पहले के समय की हैं और ज़ोर दिया कि अगर निम्न आय और उभरते बाज़ारों वाले देशों को अगर मौजूदा महामारी से उबरना है तो वास्तविक नज़रिये और पक्के इरादे के साथ आगे बढ़ना होगा.

पत्रकार और नोबेल पुरस्कार विजेता पॉल क्रुगमैन ने ज़ोर देकर कहा कि अगर हमने कोरोनावायरस के संक्रमण का सिलसिला नहीं तोड़ा तो, ये वायरस दौड़ जीत जाएगा, और जिन लोगों की आजीविकाएँ तालाबन्दियों के कारण बहुत ज़्यादा प्रभावित हुई हैं, उन्हें और ज़्यादा आर्थिक ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ेगा.