जबरन धन उगाही, जैविक युद्ध और आतंकवाद: चरमपंथी उठा रहे हैं महामारी का फ़ायदा
संयुक्त राष्ट्र अन्तर-क्षेत्रीय अपराध एवँ न्याय शोध संस्थान (UNICRI) की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि अपराधी तत्व और हिंसक चरमपंथी, कोविड-19 महामारी का फ़ायदा, अपना जाल और पहुँच बढ़ाने के लिये कर रहे हैं. इसके अलावा सोशल मीडिया पर ऐसी साज़िशी कहानियाँ भी फैल रही हैं जिनमें वायरस को हथियार बनाया जा रहा है और सरकारों में भरोसे को कमज़ोर किया जा रहा है.
UNICRI की निदेशक एण्टोनिया मैरी डि मेयो ने “Stop the virus of disinformation” रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा है कि आतंकवादी, हिंसक चरमपंथी और संगठित आपराधिक गुट, कोरोनावायरस संकट का फ़ायदा अपनी गतिविधियों का दायरा बढ़ाने और सरकारों द्वारा जवाबी कार्रवाई की प्रभावशीलता और विश्वसनीयता को जोखिम में डालने के लिये कर रहे हैं.
A new report issued today! Stop the #virus of #disinformation. The malicious use of #socialmedia during the #Covid_19 pandemic and technology options to fight it. #ThinkBeforeYouShare #FactsMatter https://t.co/YdxHbqJtzV pic.twitter.com/rjlTDZBa0B
UNICRI
“यह देखना चिन्ताजनक है कि कुछ आतंकवादी और हिंसक चरमपंथी गुटों ने सोशल मीडिया का ग़लत इस्तेमाल करने का प्रयास किया है ताकि सम्भावित आतंकवादियों को, कोविड-19 का संक्रमण फैलाने के लिये उकसाया जा सके, और इसे एक कामचलाऊ जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सके.”
शोधकर्ताओं ने पाया है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल आतंकवाद भड़काने, कट्टरपंथी बनने वाले आतंकवादियों को, हमले करने के लिये प्रोत्साहित करने में किया जा सकता है.
रिपोर्ट में ऐसे मामलों का उल्लेख किया गया है जिनमें दक्षिणपंथी चरमपंथी गुटों ने, खुले तौर पर अपने समर्थकों से, स्थानीय अल्पसंख्यकों, विशेष रूप में अल्पसंख्यक समूहों को वायरस से संक्रमित करने के लिये कहा है.
आतंकवाद से जुड़ा ऐसा ही एक मामला टिमॉथी विलसन का है जिसने अमेरिका के कंसास सिटी में कोरोनावायरस का इलाज कर रहे एक अस्पताल में बम फोड़ने की साज़िश की थी.
मार्च 2020 में अमेरिकी एफ़बीआई के साथ एक मुठभेड़ में टिमोथी विलसन की मौत हो गई.
रिपोर्टों के अनुसार टिमॉथी विलसन सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म टेलीग्राम पर दो नव-नाज़ी चैनलों पर सक्रिय था और उसका अन्तिम ऑनलाइन सन्देश कोविड-19 के स्रोत के बारे में यहूदी-विरोधी था.
शोधकर्ताओं ने तीन ग़ैर-सरकारी समूहों की जाँच की है: दक्षिणपंथी चरमपंथी; आतंकी गुट अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट (दाएश) के साथ जुड़े समूह; और संगठित आपराधिक गुट.
उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि चरमपंथी, विशेष रूप से दक्षिणपंथी गुट, वायरस के प्रति साज़िश की कहानियों और ग़लत सूचनाओं को फैलाने में, किस तरह सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं.
वे अपना नैटवर्क बढ़ाने के लिये कम्पयूटर ऐल्गोरिथम का इस्तेमाल कर रहे हैं और उन लोगों तक लक्षित ढँग से पहुँच रहे हैं जिन्होंने सोशल मीडिया पर ख़ास सन्देशों को पसन्द किया है.
बे-सिर-पैर की साज़िशें
बे-सिर-पैर की साज़िशों की ये कहानियाँ अक्सर अलग और विरोधाभासी होती हैं. मसलन, कहा गया है कि वायरस फैलाने के लिये 5जी मोबाइल फ़ोन सिग्नल का इस्तेमाल किया जा रहा है.
इसके अलावा अफ़वाहें फैलाई जा रही हैं कि इस महामारी के लिये बिल गेट्स ज़िम्मेदार है क्योंकि वे लोगों में माइक्रोचिप लगाना चाहते हैं. कुछ तत्वों का ये भी मानना है कि वायरस वास्तविक नहीं है और यह असल में कोई बीमारी ही नहीं है.
वैश्विक महामारी के कारण उपजे आर्थिक संकट की वजह से आपराधिक गुटों के पास उन कम्पनियों और दुकानों पर नियन्त्रण स्थापित करने का मौक़ा है जिन पर दीवालियेपन का जोखिम मंडरा रहा है.
इस सम्बन्ध में नशीले पदार्थों की तस्करी करने वाले उन बड़े गुटों का ज़िक्र किया गया है जो मैक्सिको के चार राज्यों में औषधि केन्द्रों पर अपना नियन्त्रण स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं.
यूएन शोधकर्ताओं ने ऐसे अनेक औज़ारों की शिनाख़्त की है जिनसे भ्रामक और ग़लत मन्तव्य से फैलाई गई सूचनाओं का मुक़ाबला किया जा सकता है. इनमें डेटा विज्ञान, तथ्यों की पुष्टि करने वाले ऐप और आर्टिफ़िशियल इन्टैलीजेंस के औज़ार शामिल हैं.
लेकिन उन्होंने चेतावनी जारी की है कि केवल टैक्नॉलॉजी उपायों से ही सोशल मीडिया के ग़लत इस्तेमाल को नहीं रोका जा सकता.