भुखमरी का ख़ात्मा करने के लिये, समुद्री खेती में गहरी डुबकी
वर्ष 2050 तक दुनिया की आबादी 9 अरब 70 करोड़ हो जाने का अनुमान है और ऐसे में इस आबादी की खाद्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिये खाद्य उत्पादन भी उसी रफ़्तार से बढ़ाना होगा. विशेषज्ञों का ख़याल है कि बढ़ती आबादी की खाद्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिये समुन्दर एक टिकाऊ समाधान मुहैया करा सकते हैं.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार Aquaculture यानि मत्स्य (मछली) कृषि दुनिया में बहुत तेज़ी से बढ़ता खाद्य उत्पादन क्षेत्र है. वर्ष 2018 में मत्स्य खेती क्षेत्र का उत्पादन 11 करोड़ 45 लाख टन था. मछली उत्पादन में सबसे ज़्यादा भागीदारी के लिये एशियाई देश आगे हैं. पिछले दो वर्षों के दौरान विश्व के कुल मछली उत्पादन का लगभग 90 प्रतिशत एशियाई देशों में हुआ.
संगठन ने वर्ष 2020 की विश्व मछली कृषि पर अपनी रिपोर्ट में आगाह करते हुए कहा है कि जंगली मछलियों का शिकार किया जाना अब भी दुनिया भर में एक बड़ी समस्या बनी हुई है. मछली की विभिन्न प्रजातियों की संख्या लगातार कम हो रही और उनकी गुणवत्ता भी ख़राब हो रही है. लगभग 30 प्रतिशत मछली प्रजाति जैविक रूप से टिकाऊ स्तर पर नहीं बची है, और लगभग 60 प्रतिशत तो अपने वजूद के लिये ही संघर्ष कर रही हैं.
रिपोर्ट के अनुसार आने वाले वर्षों में मत्स्य खेती का समुद्री खाद्य बाज़ार पर दबदबा रहने की सम्भावना है. संगठन की रिपोर्ट में कहा गया है कि मत्स्य कृषि को अगर टिकाऊ तरीक़े से संभाला गया तो ये वैश्विक स्तर पर इनसानों की खाद्य ज़रूरतें पूरी करने की तरीक़े को ही बदल देगी.
लगातार पर्यावरण चुनौतियाँ
वैन्शे ग्रोब्रेक नॉर्वे के लिये संयुक्त राष्ट्र के ग्लोबल कॉम्पैक्ट स्थानीय नैटवर्क की अध्यक्ष हैं. ये नैटर्क निजी कम्पनियों का एक ऐसा समूह है जिसने संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये काम करना के लिये सहमति व्यक्त की है.
वैन्शे ग्रोब्रेक सैलमन मछली की खेती करने वाली कम्पनी सरमैग की कार्यकारी अधिकारी भी हैं जो नॉर्व, चिली और कैनाडा में कारोबार करती है. उनका कहना है कि समुद्री खाद्य पदार्थों की मौजूदा तादाद को टिकाऊ तरीक़े से छह गुणा तक बढ़ाया जा सकता है, बशर्ति कि सही परिस्थितियों में काम किया जाए.

हालाँकि वो ये भी स्वीकार करती हैं कि पर्यावरण चुनौतियाँ भी दरपेश हैं. मत्स्य खेती के नुक़सानों में समुद्री पर्यावास तबाह होने के साथ-साथ अनेक अन्य नुक़सान भी हैं. इनमें हानिकारण रसायनों और पशु-पक्षियों को दी जाने वाली दवाओं का इस्तेमाल भी शामिल है, और बहुत सा सामान बेकार भी हो जाता है.
वैन्शे ग्रोब्रेक का कहना है, “मत्स्य उद्योग अभी नया-नया है, और ख़राब छवि के बावजूद इस उद्योग ने तेज़ी से प्रगति की है. आज के समय में इस उद्योग का ख़ासा ज़ोर टिकाऊपन पर हैं, और मसलन, सैलमन की पैदावार, मत्स्य खेती में सर्वाधिक उन्नत प्रोद्योगिकी का रूप है.”
“मैं ये देखकर प्रोत्साहित हूँ कि इस उद्योग में मानक ऊँचे करने के लिये वाक़ई एक इच्छशक्ति नज़र आती है, और ये समझ भी नज़र आती है कि टिकाऊ विकास के मुद्दों पर मिलजुलकर काम करने से, हम सभी लाभान्वित होंगे.”
सरमैग एक औद्योगिक समूह – SeaBOS की भी संस्थापक सदस्य है. यह औद्योगिक समूह ने टिकाऊ समुद्री कारोबार कार्रवाई मंच के लिये यूएन ग्लोबल कॉम्पैक्ट को समर्थन दे रहा है. ये कार्रवाई मंच दुनिया की बढ़ती आबादी की खाद्य ज़रूरतों को पूरा करने में समुद्री खाद्य पदार्थों की केन्द्रीय भूमिका को प्रोत्साहन देता है.
SeaBOS के प्रबन्ध निदेशक मार्टिन ऐक्सेल इस पर सहमत नज़र आते हैं कि मत्स्य खेती क्षेत्र अपनी ख़राब छवि के लिये ख़ुद ही ज़िम्मेदार है. “हमारे बीच बहुत से ऐसे कु-कारक रहे हैं जिन्होंने ग़लत चीज़ें की हैं, और स्पष्टतः नियम तोड़े हैं.” इसके बावजूद, वो विश्वस्त भी हैं कि ये उद्योग सही दिशा में आगे बढ़ रहा है.
उनका कहना है कि, “SeaBOS में मत्स्य उद्योग जगत की कुछ विशाल कम्पनियाँ एक मंच पर हैं, और हम अपने सामने मौजूद चुनौतियों के बारे में बहुत बेबाक बातचीत कर रहे हैं. इनमें जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, अवैध, गोपनीय और नियम-विरुद्ध मछली शिकार, आधुनिक दासता, समुद्री प्लास्टिक की सफ़ाई, और मछलियों में एण्टीबायोटिकत्स के इस्तेमाल को कैसे कम किया जाए, ख़ासतौर से ऐसी एण्टीबायोटिक्स जो इनसानों के स्वास्थ्य के लिये गम्भीर हैं.”
मार्टिन ऐक्सेल के अनुसार SeaBOS में शामिल समुद्री भोजन कम्पनियाँ पर्यावरण आर्थिक टिकाऊपन की अहमियत समझती हैं, जिसमें कारोबार में काम करने वाले लोगों की समुचित देखभाल किया जाना, और समुदाय और उपभोक्ताओं का भरोसा व सम्मान जीतना भी शामिल हैं.

मार्टिन ऐक्सेल कहते हैं, “ये एक हक़ीक़त है कि आने वाले वर्षों में क़रीब 10 अरब लोगों की खाद्य ज़रूरतें पूरी करने के लिये मत्स्य खेती सर्वाधिक कारगर विकल्प है. इसे उद्योग क्षेत्र को स्वस्थ व टिकाऊ तरीक़े से आगे बढ़ाया जा सकता है, इसीलिये हमारे सदस्यगण वैज्ञानिकों के साथ मिलकर ऐसा प्रोद्योगिकी की तलाश में कार्यरत हैं जिसके ज़रिये हमारे सामने दरपेश खाद्य उत्पादन सम्बन्धी चुनौतियों के प्रभावशाली हल निकाले जा सकें.”
नीली अर्थव्यवस्था का विकास
समुद्रों के लिये यूएन महासचिव के विशेष दूत पीटर थॉमसन विश्वस्त नज़र आते हैं कि अगर सही तरीक़े से प्रबन्धन किया गया तो, दुनिया भर में भुखमरी की चुनौती का सामना करने के लिये समुद्र बहुत अहम भूमिका निभाएँगे.
उनका कहना है, “समुद्री अर्थव्यवस्था सम्बन्धी गतिविधियों को संयोजित व टिकाऊ तरीक़े से आगे बढ़ाना यानि टिकाऊ नील अर्थव्यवस्था में दुनिया की खाद्य ज़रूरतें पूरी करने के लिये असीम सम्भावनाएँ हैं. हमें ये नहीं भूलना चाहिये कि पृथ्वी का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा समुद्र ही हैं और पृथ्वी का 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा पर्यावास क्षेत्र समुद्री सतह के नीचे है.”
पीटर थॉमसन का कहना है कि टिकाऊ मत्स्य खेती की तरीक़ों का विकास करके समुद्र इनसानों की पोषक खाद्य ज़रूरतों को पूरा करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते रहेंगे, जिसमें समुद्री वातावरण का ख़याल रखा जाना होगा और उपयुक्त मत्स्य नस्लों व उनकी भी खाद्य ज़रूरतों का ध्यान रखा जाना होगा.