वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

‘फ़लस्तीनी ज़ैतून किसानों को, हिंसा से रक्षा मुहैया कराने की ज़रूरत'

नबलूस के पास बुरक़िन गाँव में फ़लस्तीनी महिलाएँ पेड़ों से जैतून एकत्र कर रही हैं.
Manal Abdallah
नबलूस के पास बुरक़िन गाँव में फ़लस्तीनी महिलाएँ पेड़ों से जैतून एकत्र कर रही हैं.

‘फ़लस्तीनी ज़ैतून किसानों को, हिंसा से रक्षा मुहैया कराने की ज़रूरत'

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों व अन्य अन्तरराष्ट्रीय ग़ैर-सरकारी संगठनों ने इसराइल से, ज़ैतून की पारम्परिक खेती में लगे फ़लस्तीनी किसानों की, हिंसा से हिफ़ाज़त सुनिश्चित करने का आग्रह किया है. पश्चिमी तट में फ़लस्तीनी किसानों का अपने ज़ैतून बाग़ों तक पहुँच होना, उनकी आजीविका के लिए अहम है लेकिन सख़्त पाबन्दियों और इसराइली बस्तियों में रह रहे बाशिन्दों द्वारा फ़लस्तीनी किसानों पर कथित हमलों के कारण, हालात चुनौतीपूर्ण हो गए हैं. 

मानवीय राहत मामलों में समन्वय के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ने एक वक्तव्य में कहा है कि 7 अक्टूबर से 2 नवम्बर की अवधि में फ़लस्तीनी नागरिकों पर हमले किये जाने या उनके पेड़ों व कृषि उत्पादों को क्षति पहुँचाने के 33 मामले दर्ज किये गए हैं.

यह आशंका जताई गई है कि ये हमले इसराइली बस्तियों में रहने वाले बाशिन्दों द्वारा किये गए हैं. 

इन घटनाओं में 25 फ़लस्तीनी लोग घायल हुए हैं, एक हज़ार से ज़्यादा ज़ैतून के पेड़ जलाए गए हैं या उन्हें नुक़सान पहुँचाया गया है, और बड़ी तादाद में कृषि उत्पादों की लूट हुई है. 

यूएन एजेंसी के बयान के मुताबिक कुछ मामलों में इसराइली सुरक्षा बलों ने फ़लस्तीनियों व इसराइली बस्तियों में रह रहे लोगों के बीच हस्तक्षेप करते हुए आँसू गैस के गोले छोड़े और रबड़ की गोलियाँ चलाई. 

इसके परिणामस्वरूप ज़ैतून की खेती करने वाले किसान घायल हुए हैं और उन्हें मजबूर होकर सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ा है. 

ग़ौरतलब है कि ज़ैतून की खेती करने वाले किसानों को इसराइली प्रशासन द्वारा लागू की गई पाबन्दियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके लिये फ़सल से अपनी आजीविका चला पाना कठिन है. 

जिन फ़लस्तीनी किसानों के ज़ैतून बाग़ इसराइली बस्तियों के पास हैं, कुछ इलाक़ों में उन्हें फ़सल के मौसम के दौरान वहाँ दो या चार दिन जाने की ही अनुमति है.

इससे किसानों के लिये ज़ैतून की खेती बेहद मुश्किल हो जाती है, उनके पेड़ों की उत्पादकता घटती है और फ़सल को नुक़सान पहुँचाए जाने की आशंका भी बढ़ जाती है. 

पश्चिमी तट में ज़ैतून की खेती की जाती है.
Maha Kadadha
पश्चिमी तट में ज़ैतून की खेती की जाती है.

इसराइल के पश्चिमी तट पर खड़े किये गए अवरोधों के पार स्थित ज़ैतून के बाग़ों तक पहुँच पाना एक बड़ी चुनौती है. 

किसानों को वहाँ जाने के लिये विशेष परमिट की आवश्यकता होती है और स्थानीय नौकरशाही भूमि स्वामित्व साबित ना कर पाने सहित अन्य कारणों का हवाला देते हुए उनके आवेदनों को ख़ारिज कर देती है.   

कोविड-19 महामारी के दौरान यह प्रक्रिया विशेष रूप से मुश्किल हो गई है. फ़लस्तीनियों को अपने खेतों तक जाने की अनुमति लेने के लिये भीड़-भाड़ भरे परमिट कार्यालयों तक जाना पड़ता है, जहाँ कोविड-19 के फैलाव का जोखिम है.

इस सिलसिले में एक क़ानूनी कार्रवाई के बाद, किसानों के अपने ज़ैतून बाग़ों तक जाने के दिनों की संख्या को सीमित किये जाने में कुछ ढील दी गई है और अब ऐसे दिनों की संख्या बढ़ाकर 17 कर दी गई है जब ये किसान फ़सल के मौसम में, बैरियर के पार अपने खेतों में 17 दिनों तक जा सकते है.     

लेकिन संयुक्त राष्ट्र और अन्तरराष्ट्रीय संगठनों ने पाबन्दियों में ढील दिये जाने का आहवान किया है. साथ ही इसराइली सरकार से अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत तय दायित्वों का निर्वहन करने का आग्रह किया है. 

इसके तहत फ़लस्तीनियों को समय रहते उनके ज़ैतून बाग़ों तक पर्याप्त पहुँच सुनिश्चित करने, हिंसा, क्षति और लूटपाट से रक्षा करने, अपराधियों की जवाबदेही तय करने की माँग की है.