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क़रीब एक तिहाई बच्चे, स्कूलों में होते हैं - हिंसा व बदमाशी के शिकार

स्कूलों में हिंसा और बदमाशी दुनिया भर में नज़र आती है और इसके कारण बड़ी संख्या में बच्चे और किशोर व्यापक रूप में प्रभावित होते हैं. इसमें साइबर बदमाशी भी शामिल है.
Unsplash/James Sutton
स्कूलों में हिंसा और बदमाशी दुनिया भर में नज़र आती है और इसके कारण बड़ी संख्या में बच्चे और किशोर व्यापक रूप में प्रभावित होते हैं. इसमें साइबर बदमाशी भी शामिल है.

क़रीब एक तिहाई बच्चे, स्कूलों में होते हैं - हिंसा व बदमाशी के शिकार

संस्कृति और शिक्षा

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि दुनिया भर में बच्चों को स्कूलों में हिंसा और डराने-धमकाने यानि बदमाशी का सामना करना पड़ रहा है, हर तीन में से एक छात्र को कम से कम एक महीने में हमलों का निशाना बनाया जाता है, और 10 में से एक बच्चे को, साइबर बदमाशी का भी सामना करना पड़ता है.

संयुक्त राष्ट्र के शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को ने वर्ष 2019 के आँकड़ों के आधार पर ये चेतावनी जारी की है, जोकि 5 नवम्बर को मनाए जाने वाले स्कूलों में हिंसा और बदमाशी के ख़िलाफ़ प्रथम अन्तरराष्ट्रीय दिवस के मौक़े पर जारी की गई है, इसमें साइबर बदमाशी भी शामिल है. 

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यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले ने एक वक्तव्य में कहा है, “अफ़ग़ानिस्तान, बुर्किना फ़ासो, कैमरून और पाकिस्तान में हाल ही में स्कूलों पर हुए हमले, और फ्रांस में एक स्कूल अध्यापक सैमुअल पैटी की हत्या जैसे मामले, दरअसल स्कूलों को हर तरह की हिंसा से सुरक्षित रखने की महत्ता को उजागर करते हैं.”

शारीरीक व भावनात्मक तकलीफ़ें

ऑड्री अज़ूले ने कहा कि छात्रों को सुरक्षा मुहैया कराने के लिये डराए-धमकाए जाने यानि बदमाशी से निपटा जाना भी महत्वपूर्ण है.

उन्होंने कहा कि स्कूलों में बदमाशी को या तो नज़रअन्दाज़ कर दिया गया या उस पर ध्यान नहीं दिया गया, हालाँकि स्कूलों में बदमाशी ने दुनिया भर में करोड़ों बच्चों की शारीरिक और भावनात्मक तकलीफ़ों में डाला है. 

वर्ष 2019 में यूनेस्को की एक रिपोर्ट में 144 देशों में स्कूलों में हिंसा और बदमाशी के स्तर को उजागर किया गया था.

ऑड्री अज़ूले ने इस सन्दर्भ में इस बारे में विश्व स्तर पर जागरूकता बढ़ाने और इन दोनों ही समस्याओं से निपटने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है.

उन्होंने कहा, “छात्रों, अभिभावकों, शैक्षणिक समुदाय के सदस्यों और आम नागरिक के रूप में हम सबको स्कूलों में हिंसा और बदमाशी रोकने में अपनी भूमिका निभानी है.”

स्कूल में अजनबीपन

यूएन एजेंसी ने एक वक्तव्य में कहा है कि बदमाशी के कारण शैक्षिक उपलब्धियों के साथ-साथ शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा असर पड़ सकता है और इसके कारण बहुत से बच्चे स्कूली शिक्षा भी छोड़ सकते हैं.

यूनेस्को के वक्तव्य में बदमाशी को ऐसा आक्रामक व्यवहार परिभाषित किया गया है जिसमें नकारात्मक हरकतें शामिल होती हैं और किसी की मर्ज़ी के बिना उसके साथ बार-बार की जाती हैं.

ऐसे व्यवहारों में बदमाशी करने वाले और पीड़ित के बीच शक्ति या मज़बूती में असन्तुलन होता है, यानि पीड़ित अक्सर कमज़ोर हालात में होते हैं.

यूनेस्को का कहना है, “जिन बच्चों के साथ ज़्यादा बदमाशी की जाती है, वो स्कूल में ख़ुद को अजनबी समझने लगते हैं और बदमाशी का सामना नहीं करने वाले बच्चों की तुलना में उनके स्कूल छोड़ने की दो गुना ज़्यादा सम्भावनाएँ होती हैं.”

“बदमाशी का शिकार बनाए जाने वाले बच्चों के शैक्षिक नतीजे व उपलब्धियाँ अन्य बच्चों की तुलना में बहुत ख़राब होते हैं और सैकण्डरी स्कूल की शिक्षा के बाद ही उनकी औपचारिक शिक्षा ख़त्म हो जाने की बहुत सम्भानाएँ होती हैं.

साइबर बदमाशी उछाल पर

यूएन संगठन ने ये भी ध्यान दिलाया है कि साइबर बदमाशी भी उछाल पर है क्योंकि कोविड-19 के कारण बहुत से बच्चों को शिक्षा हासिल करने के साथ-साथ घुलने-मिलने के लिये डिजिटल व ऑनलाइन मंचों का सहारा लेना पड़ रहा है. 

इस कारण बच्चों को डिजिटल उपकरणों पर बहुत ज़्यादा समय बिताना पड़ता है और उनकी ऑनलाइन व ऑफ़लाइन दुनिया एक-दूसरे में घुलमिल गई हैं जिससे उनके बदमाशी और साइबर बदमाशी का शिकार होने की सम्भावना भी बहुत ज़्यादा बढ़ गई है.

वैसे तो बदमाशी अक्सर छात्रों के साथी-छात्र ही करते हैं, मगर कुछ मामलों में अध्यापक और स्कूल के अन्य कर्मचारियों को भी इसके लिये ज़िम्मेदार माना जाता है. यूनेस्को का कहना है कि 67 देशों के स्कूलों में बच्चों को अब भी शारीरिक दण्ड देने कि अनुमति है. 

अनेक क्षेत्रों में बदमाशी के दौरान छात्रों को शारीरिक नुक़सान पहुँचाया जाना बहुत आम चलन है, जबकि उत्तर अमेरिका और योरोप में शारीरिक बदमाशी के बजाय मनोवैज्ञानिक बदमाशी ज़्यादा चलन में है.

बहुत से क्षेत्रों में यौन बदमाशी भी आम बात है जिसमें आक्रामक यौन मज़ाक किया जाता है, यौन टिप्पणियाँ या इशारे किये जाते हैं, और ये स्कूलों में छात्रों के साथ बदमाशी और परेशान करने के दूसरे आम तरीक़े हैं.

स्कूलों में होने वाली हिंसा के कारण वैसे तो लड़के और लड़कियों दोनों पर ही नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, मगर शारीरिक बदमाशी लड़कों में ज़्यादा प्रचलित है.

छात्रों की राय के अनुसार किसी व्यक्ति की शारीरिक दिखावट उसके साथ बदमाशी होने का एक आम कारण है, उसके बाद नस्ल, राष्ट्रीयता और त्वचा का रंग.

यूनेस्को के अनुसार लड़कियों को मनोवैज्ञानिक बदमाशी का निशाना बनाया जाना ज़्यादा प्रचलित है. इसमें किसी लड़की को निशाना बनाकर, उसे अलग-थलग महसूस कराना, नज़रअन्दाज़ करना, उसकी मौजूदगी को रद्द करना, उसका अपमान करना, उसके बारे में अफ़वाहें व झूठ फैलाना, तरह-तरह के नामों से पुकारना, उसे नीचा दिखाना और धमकियाँ देने जैसे बर्ताव शामिल होते हैं.

ये स्वस्थ परम्परा नहीं

यूनेस्को ने इस प्रचलित धारणा को ख़ारिज किया है कि स्कूलों में बदमाशी युवाओं की परम्परा है और इसे बन्द करने या इससे छुटकारा पाने के लिये कुछ नहीं किया जा सकता.

संगठन ने ज़ोर देकर कहा है कि अनेक देशों ने इस समस्या का सामना करने के लिये अच्छी प्रगति दर्ज की है.

संगठन ने कहा कि बदलाव लाने के लिये राजनैतिक इच्छाशक्ति की कुँजी है. 

स्कूलों में सकारात्मक और बच्चों का ख़याल करने वाला माहौल बनाकर, शिक्षकों को सही प्रशिक्षण देकर और बदमाशी और डराने-धमकाने के मामलों की रिपोर्ट करने के लिये ठोस प्रणाली बनाकर, और प्रभावित छात्रों को ज़रूरी सहायता मुहैया कराकर, इसमें कामयाबी हासिल की जा सकती है.