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महामारी ने बदल दिया कामकाजी ढाँचा

फ़्राँस के लियोन में तालाबन्दी के दौरान एक पत्रकार घर से काम कर रही हैं और उनकी बेटी उनके साथ खेल रही है.
© UNICEF/Bruno Amsellem/Divergence
फ़्राँस के लियोन में तालाबन्दी के दौरान एक पत्रकार घर से काम कर रही हैं और उनकी बेटी उनके साथ खेल रही है.

महामारी ने बदल दिया कामकाजी ढाँचा

स्वास्थ्य

कोविड-19 महामारी और ऐहतियाती उपायों के मद्देनज़र लागू की गई सख़्त पाबन्दियों के कारण बड़ी संख्या में कम्पनियों और कर्मचारियों के कामकाज के ढर्रे में रातों-रात व्यापक बदलाव आया है. कुछ लोगों के लिये घर बैठकर काम करने से जीवन आसान और उत्पादकता में सुधार आया है जबकि अन्य के लिये मानो दिन के 24 घण्टे ही ऑफ़िस के कामकाज में तब्दील हो गए हैं, जिससे यह वैकल्पिक व्यवस्था मानसिक थकावट का सबब भी बन रही है. हारवर्ड बिज़नेस स्कूल में प्रोफ़ेसर जैफ़्री पोल्ज़र और अन्य सहयोगी विशेषज्ञों के अध्ययन के नतीजों पर आधारित एक रिपोर्ट... 

कोरोनावायरस संकट काल में महामारी से बचाव के उपायों ने करोड़ों लोगों को घर तक ही सीमित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था के बहुत से सैक्टरों में लोगों से घर में बैठकर ही कामकाजी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने (Work from home) के लिये कहा गया.

इस व्यवस्था से ऑफ़िस आने-जाने में लगने वाला समय कम हुआ है और घर बैठकर तसल्ली से काम करना तो सम्भव हुआ है लेकिन कुछ नई चुनौतियाँ भी पैदा हुई हैं. 

जैसे, क्या घर से काम करने से कामकाजी घण्टे लम्बे हो रहे हैं और ऑफ़िस व घर के बीच की दूरी मिट रही है? क्या पहले की तुलना में अब ज़्यादा बैठकें और ईमेल का आदान-प्रदान हो रहा है? क्या घर बैठकर ऑफ़िस की ज़िम्मेदारियों को पूरा करना सरल है या अब यह उबाऊ और थकाऊ बनता जा रहा है?

घर की परिस्थितियाँ या सुविधाओं की उपलब्धता या उनका अभाव कर्मचारियों के प्रदर्शन को किस तरह प्रभावित कर रहे हैं?  

हाल ही में हारवर्ड बिज़नेस स्कूल और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में स्टर्न बिज़नेस स्कूल के विशेषज्ञों ने इन्ही मुद्दों पर एक नया अध्ययन प्रकाशित किया है.

इस अध्ययन के लिये 16 शहरों में 30 लाख से ज़्यादा लोगों के कामकाज के तरीकों, ईमेल के आदान-प्रदान, कैलेण्डर के इस्तेमाल सहित अन्य नमूनों का व्यापक विश्लेषण किया गया – तालाबन्दी व अन्य पाबन्दियों के लागू होने के आठ हफ़्ते पहले से लेकर आठ हफ़्ते बाद तक.

औसतन लोग ज़्यादा मीटिंगें कर रहे हैं लेकिन उनकी अवधि अपेक्षाकृत कम है और दिन में मीटिंगों में व्यतीत होने वाला समय कम हुआ है. 

सांगठनिक व्यवहार (Organizational behavior) विषय के प्रोफ़ेसर जैफ़्री पोलज़र ने अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के एक पॉडकास्ट में पड़ताल के निष्कर्षों के बारे में और ज़्यादा जानकारी दी, और यह रिपोर्ट इसी बातचीत पर आधारित है... 

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

- रोज़मर्रा के कामकाज में पारस्परिक सहयोग और टीम के साथ नज़दीकी तौर पर काम करना अहम है लेकिन कोविड-19 के कारण दूर बैठकर काम करने से इस पर असर हुआ है. 

आर्मीनिया के येरेवान में एक बच्चा अपने पिता के साथ बैठकर पढ़ाई क रहा है.
© UNICEF/Arthur Gevorgyan
आर्मीनिया के येरेवान में एक बच्चा अपने पिता के साथ बैठकर पढ़ाई क रहा है.

संचार गतिविधियों में इज़ाफ़ा

- तालाबन्दी व अन्य पाबन्दियाँ लागू होने के बाद के दो हफ़्तों तक संचार गतिविधियों में तेज़ बढ़ोत्तरी देखी गई. जैसेकि कम्पनियों के कर्मचारियों में पारस्परिक ईमेल सन्देशों में तेज़ी के साथ-साथ बाहरी कम्पनियों के साथ ईमेल में भी इज़ाफ़ा हुआ जिसके बाद ईमेल के मामले में गतिविधियाँ सामान्य हो गईं. 

- अध्ययन की पूरी अवधि में बैठकों के मामले में विविध प्रकार के रुझान देखने को मिले हैं. बहुदेशीय टीमों के साथ मीटिंगों पर मिले आँकड़ों के मुताबिक तालाबन्दी के तीन-चार हफ़्तों बाद तक ऐसी मीटिंगों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई. लेकिन फिर छठे-सातवें हफ़्ते तक उनमें गिरावट आ गई जिसकी वजह विभिन्न देशों व शहरों में स्थित कम्पनियों व कर्मचारियों में समन्वय स्थापित हो जाना बताया गया है. 

- अलग-अलग समय क्षेत्रों में काम कर रहे कर्मचारियों ने ज़रूरतों के अनुसार अपने कार्य के समय व उपलब्धता में लचीलापन दिखाया ताकि समय के अन्तराल के बावजूद आपसी सहयोग सुनिश्चित किया जा सके.   

कामकाजी घण्टे बढ़े

- सुबह काम शुरू होने के बाद भेजी गई पहली ईमेल या मीटिंग होने के समय और फिर कार्य दिवस ख़त्म होने की आख़िरी ईमेल या मीटिंग के समय की निगरानी के ज़रिये यह जानने का प्रयास किया गया कि दिन में कुल कितने घण्टे काम किया गया. 

यह विश्लेषण दर्शाता है कि काम करने की अवधि में बढ़ोत्तरी हुई है – औसतन 48 मिनट तक. और ऐसा नहीं है कि काम की अवधि अचानक बढ़ी हो और फिर उसमें गिरावट आई हो. तालाबन्दी के दौरान यह लगभग पूरी अवधि में औसत से ज़्यादा रही है. 

एक सम्भावना यह भी है कि लोग लम्बे घण्टों तक काम तो कर रहे थे लेकिन बीच-बीच में ब्रेक ले रहे थे, या परिवार के साथ समय गुज़ार रहे थे, या किसी परिजन की देखभाल कर रहे थे. 

- घर पर काम करने की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों - छोटे बच्चों की देखभाल, वृद्धजन या बीमार की तिमारदारी - के कारण महत्वपूर्ण सांगठनिक निर्णय प्रक्रियाओं में शामिल होने से वंचित रहने का जोखिम है.

तुर्की के इस्ताम्बुल में एक महिला फ़ोटोग्राफ़र कोरोनावायरस संकट के दौरान घर से काम कर रही हैं.
© UNICEF
तुर्की के इस्ताम्बुल में एक महिला फ़ोटोग्राफ़र कोरोनावायरस संकट के दौरान घर से काम कर रही हैं.

प्रदर्शन व उत्पादकता पर असर

अनेक ऐसे मामलों की जानकारी मिली है जिनमें तंग हालात, शयनकक्ष, पर्याप्त वाई-फ़ाई कनेक्शन ना होने की वजह से लोगों को कार या अन्य स्थानों से काम करना पड़ा जिससे उनका कामकाज प्रभावित हुआ. 

घर से काम करने की परिस्थितियों में भिन्नताओं की वजह से लोगों की कम्पनियों में प्रगति और प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है जिससे एक तरह की विषमता जन्म ले सकती है.

- महामारी के कारण लागू उपायों से पहले भी जो लोग घरों से काम करना चाहते थे, या कामकाज के घण्टों में लचीलापन चाहते थे, तथ्य दर्शाते हैं कि उनकी उत्पादकता बढ़ी है. 

उनके लिये घर पर काम करने के लिये परिस्थितियाँ बेहतर हैं, ऑफ़िस की तुलना में ध्यान भटकाव कम हैं जिसका असर उनकी उत्पादकता बढ़ने के रूप में हुआ है. साथ ही घरेलू ज़िम्मेदारियों को पूरा कर पाने और आफ़िस से घर आने-जाने में समय बचाना भी सम्भव हुआ है. 

- एक बड़ा जोखिम यह है कि शुरुआती दौर में लोगों के घरों से काम करने से उत्पादकता बढ़ी है, लेकिन अगर हालात ऐसे आगे भी जारी रहे तो लोगों के थकान का शिकार होने की आशंका है. ख़ास तौर पर यदि बच्चे स्कूल ना जा रहे हों या फिर उन पर अन्य ज़िम्मेदारियाँ हों. 

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से कामकाज के लिये निर्धारित स्थान का शेष घरेलू जीवन से दूरी ज़रूरी बताई गई है लेकिन यह दूरी फ़िलहाल सिमट रही है. 

बोसनिया एण्ड हर्ज़ेगोविना में एक बच्ची अपने पिता के साथ कसरत करते हुए.
© UNICEF/Igor Isanovic
बोसनिया एण्ड हर्ज़ेगोविना में एक बच्ची अपने पिता के साथ कसरत करते हुए.

भविष्य की चुनौतियाँ

- कम्पनियाँ यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि उनके कर्मचारी मेहनत से काम कर रहे हैं और वास्तव में अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभा रहे हैं. कार्यालयों में सुबह नौ बजे से शाम पाँच बजे वाली व्यवस्था में यह निगरानी सम्भव है. 

लेकिन अब ऐसे सॉफ़्टवेयर ऐप का इस्तेमाल बढ़ रहा है जहाँ मैनेजर दूर बैठकर भी अपने कर्मचारियों की निगरानी कर सकते हैं. यह बात अभी हर कम्पनी के लिये लागू नहीं होती लेकिन ऑनलाइन निगरानी का चलन बढ़ने की आशंका वास्तविक है. 

- ऐसे समय में जब दुनिया एक प्रयोग से गुज़र रही है, भविष्य में सर्वश्रेष्ठ कम्पनियाँ यह समझ जाएँगी कि पारस्परिक बातचीत और सहयोग को नए माहौल में किस तरह आगे बढ़ाना है. इससे कर्मचारियों के कल्याण का ख़याल रखते हुए उनकी उत्पादकता बढ़ा पाना सम्भव होगा जिससे कम्पनियों को भी फ़ायदा होगा. 

कामकाजी परिस्थितियों में रातों-रात आया यह व्यापक बदलाव और इसके प्रभाव महामारी के गुज़र जाने के बाद भी जारी रहने की सम्भावना है.