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सुरक्षा परिषद: 'साझा दुश्मन' से लड़ाई के लिये वैश्विक युद्धविराम पर ज़ोर

माली के बामाको में महिलाएँ अपने बच्चों का टीकाकरण करा रही हैं.
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माली के बामाको में महिलाएँ अपने बच्चों का टीकाकरण करा रही हैं.

सुरक्षा परिषद: 'साझा दुश्मन' से लड़ाई के लिये वैश्विक युद्धविराम पर ज़ोर

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र की उपमहासचिव आमिना मोहम्मद ने मंगलवार को सुरक्षा परिषद से आग्रह किया है कि दुनिया भर में हिंसा में शामिल लड़ाकों को हथियार डालने और कोरोनावायरस रूपी साझा दुश्मन से लड़ाई पर ध्यान केन्द्रित करने के लिये प्रोत्साहित करना होगा जिसके लिये और ज़्यादा प्रयास किये जाने की ज़रूरत है.    

यूएन उपप्रमुख आमिना मोहम्मद ने मंगलवार को विश्व के विभिन्न देशों में घरेलू अशान्ति व टकराव के कारणों पर चर्चा के लिये सुरक्षा परिषद की बैठक को वीडियो कॉन्फ़्रेन्सिन्ग के ज़रिये सम्बोधित किया.

उन्होंने कहा, “मुझे इस अपील के प्रति आपके संकल्प पर भरोसा है.”

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“और मुझे रोकथाम व समाधानों में नए सिरे से आपके राजनैतिक व वित्तीय निवेशों पर भरोसा है, जिनका मक़सद एक ऐसे समय में सुरक्षा व हिंसा के जोखिमों को दूर करना है जब दुनिया को शान्ति व ठहराव की पहले से कहीं ज़्यादा आवश्यकता है.” 

उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस संकट के कारण हिंसक संघर्षों को बढ़ावा देने वाले हालात गहरा रहे हैं - सीमा-पार असुरक्षा व जलवायु सम्बन्धी ख़तरों से लेकर सामाजिक अशान्ति और लोकतन्त्र में भरोसे के अभाव तक.

“शिकायतें और विषमताएँ गहरा रही हैं, हर प्रकार के प्रशासन और संस्थाओं में भरोसा दरक रहा है और निर्बलताएँ बढ़ रही हैं.” 

लाखों-करोड़ों महिलाओं पर जोखिम

उपमहासचिव आमिना मोहम्मद ने कोविड-19 महामारी का पहले से मौजूद आर्थिक व सामाजिक विषमताओं पर हुए असर का ज़िक्र किया. साथ ही मानवाधिकारों को बढ़ावा दिये जाने और उनकी रक्षा की अहमियत को रेखांकित किया, विशेष रूप से महिलाओं के लिये. 

“हिंसा में शामिल पक्ष महामारी का फ़ायदा असुरक्षा को पनपने देने या उसे ज़्यादा गम्भीर बनाने और मेडिकल देखभाल व अन्य जीवनरक्षक सहायता और सेवाओं में बाधा पहुँचाने के लिये कर रहे हैं.”

उन्होंने आगाह किया कि महिलाएँ अर्थव्यवस्थाओं के उन क्षेत्रों मे काम करती हैं जो महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.

इसके मद्देनज़र लिंग-आधारित और घरेलू हिंसा में चिन्ताजनक बढ़ोत्तरी हुई है और पुरुषों की तुलना में उनके पास बचत, सामाजिक संरक्षा और स्वास्थ्य कवरेज का अभाव है. 

“हम शान्ति और सुरक्षा की बात किस तरह कर सकते हैं जब लाखों महिलाओं पर उनके अपने घरों में बड़े जोखिम हैं? और हम जानते हैं कि महिलाओं व लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा, नागरिक दमन और हिंसक संघर्ष में सीधा सम्बन्ध है.”

जलवायु कारक

जलवायु परिवर्तन और सुरक्षा चुनौतियों में सम्बन्ध को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि जलवायु आपात स्थिति दुनिया में विषमता, असुरक्षा और हिंसक संघर्ष का एक प्रमुख कारण है. 

सहेल, लेक चाड क्षेत्र और मध्य पूर्व में अपने मिशन का उल्लेख करते हुए यूएन उपप्रमुख ने बताया कि बड़ी संख्या में लोगों के विस्थापन का शिकार होने, और घरों, आजीविकाओं व समुदायों को बर्बाद करने वाली चरम मौसम की घटनाओं – सूखा, बाढ़ – में सम्बन्ध है.  

“कुछ मामलों में जलवायु संकट राष्ट्रों के अस्तित्व के लिये ही ख़तरा है.” 

यूएन अधिकारी ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि समन्वित प्रयासों के अभाव में विकास पर प्रगति अवरुद्ध हो गई है.

उन्होंने बेहतर ढँग से पुनर्बहाली को आगे बढ़ाने का आहवान करते हुए कहा, “महामारी ने पहले ही दिखा दिया है कि तेज़ गति से बदलाव सम्भव है – लाखों-करोड़ों लोगों ने कामकाज, पढ़ाई-लिखाई और सामाजिकरण के नए तरीक़े अपनाए हैं.” 

यूएन उपप्रमुख के मुताबिक कोविड-19 महामारी और उससे उबरने के प्रयासों ने टिकाऊ विकास के 2030 एजेण्डा की आवश्यकता को फिर से रेखांकित किया है.

उन्होंने टिकाऊ विकास एजेण्डा को रोकथाम का एक औज़ार क़रार दिया जिससे लैंगिक समानता, क़ानून के राज और सुशासन भी सुनिश्चित किये जा सकते हैं. 

असमान विश्व व्यवस्था

आर्थिक एवँ सामाजिक परिषद (ECOSOC) के अध्यक्ष मुनीर अकरम ने अपने सम्बोधन में स्पष्ट किया कि सामूहिक और सहयोगपूर्ण सुरक्षा के आदर्शों को पूरा कर पाने में यूएन की विफलता दरअसल असमान विश्व व्यवस्था का परिणाम है. 

हिंसक संघर्षों के पीछे अनेक बुनियादी कारण छिपे हैं - आन्तरिक संघर्षों से लेकर संसाधनों के अभाव और लोगों को अपना राजनैतिक व आर्थिक भविष्य तय करने से रोकने तक. 

कोविड-19 महामारी की वजह से विश्व अर्थव्यवस्था के 5-10 फ़ीसदी तक सिकुड़ने की आशंका है और मुख्य रूप से यह इस बात पर निर्भर करता है कि देशों को कोरोनावायरस पर क़ाबू पाने में कितनी सफलता हासिल होती है.

आर्थिक एवँ सामाजिक परिषद प्रमुख मुनीर अकरम ने आशंका जताई 10 करोड़ से ज़्यादा लोगों के फिर से ग़रीबी में धँसने का ख़तरा है जिसमें निर्धनतम देशों में लोगों को सबसे ज़्यादा पीड़ा होगी. 

उन्होंने सचेत किया कि वित्तीय सहायता के अभाव में बहुत से विकासशील देशों को राजस्व की कमी का सामना करना पड़ेगा जिससे आर्थिक चुनौतियाँ बढ़ेंगी.

प्रभावित देशों में सामाजिक तनाव बढ़ने से क्षेत्रीय संघर्षों व वैश्विक तनावों के भड़कने का जोखिम है.