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पत्रकारों पर हमलों में दण्ड निडरता

काँगो लोकतान्त्रिक गणराज्य की राजधानी किन्शासा के पास मालूकू शिविर में पत्रकारों की भीड़.
UN Photo/Sylvain Liechti
काँगो लोकतान्त्रिक गणराज्य की राजधानी किन्शासा के पास मालूकू शिविर में पत्रकारों की भीड़.

पत्रकारों पर हमलों में दण्ड निडरता

मानवाधिकार

वर्ष 2020 में पत्रकारों के ख़िलाफ़ अपराधों के मामलों में दण्ड निडरता की दर में मामूली गिरावट तो आई है लेकिन अब भी विश्व भर में ऐसे 87 फ़ीसदी मामले अनसुलझे हैं. प्रैस स्वतन्त्रता की रक्षा में अग्रणी भूमिका निभाने वाली यूएन एजेंसी - संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवँ सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की नई रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. 

यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले ने पत्रकारों की सुरक्षा और दण्डमुक्ति के ख़तरे के मुद्दे पर सोमवार को एक रिपोर्ट जारी की है - ‘Safety of Journalists and the Danger of Impunity’. 

रिपोर्ट दर्शाती है कि दुनिया भर में पत्रकारों के ख़िलाफ़ अपराधों के मामलों में महज़ 13 फ़ीसदी मामले ही सुलझ पाए हैं. 

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वर्ष 2019 में यह दर 12 प्रतिशत और 2018 में 11 फ़ीसदी थी. 

हर दो साल में जारी की जाने वाली यह रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2018-19 में विश्व भर में में पत्रकारों की हत्या के 156 मामले दर्ज किये गए थे.

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक दशक में हर चार दिन में एक पत्रकार की मौत हुई है. 

वर्ष 2018 में 99 मौतें दर्ज की गई थीं जबकि 2019 में 57 पत्रकारों के मारे जाने के मामले सामने आए, जोकि पिछले दस वर्षों में सबसे कम आँकड़ा था. 

रिपोर्ट में कहा गया है कि सितम्बर 2020 तक 39 पत्रकार अपनी जान गँवा चुके हैं.  

पत्रकारिता: एक ‘ख़तरनाक पेशा’

यह रिपोर्ट सोमवार, 2 नवम्बर को 'पत्रकारों के ख़िलाफ़ दण्ड निडरता का अन्त' करने के लिये मनाए जाने वाले अन्तरराष्ट्रीय दिवस के अवसर पर जारी की गई है.

यूएन एजेंसी के मुताबिक पत्रकारिता अब भी एक ख़तरनाक पेशा बना हुआ है: पत्रकारों के सामने ख़तरे अनेक हैं और व्यापक सत्र पर हैं. 

“हिंसक संघर्षों से गुज़र रहे देशों के सम्बन्ध में हताहतों में गिरावट आई है, भ्रष्टाचार, मानवाधिकार उल्लंघन, पर्यावरणीय अपराध, तस्करी और राजनैतिक घपलों के मामलों पर रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों पर जानलेवा हमले अन्य देशों में बढ़े हैं.”

यह रिपोर्ट हर दूसरे वर्ष यूनेस्को में संचार विकास के लिये अन्तरराष्ट्रीय कार्यक्रम (International Programme for the Development of Communication) की अन्तर-सरकारी परिषद को सौंपी जाती है. 

यूनेस्को के सदस्य देशों के लिये यह वैश्विक घटनाक्रम का जायज़ा लेने और पत्रकारों की सुरक्षा को बढ़ावा देने व दण्डमुक्ति के ख़िलाफ़ लड़ाई में चुनौतियों पर चर्चा करने का एक अवसर है.

लैंगिक भिन्नताएँ

रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि पत्रकारों के ख़िलाफ़ हमलों में लैंगिक कारकों की भी भूमिका है. 

वर्ष 2018-19 में पत्रकारों पर हमलों के अधिकाँश दर्ज मामलों में पुरुषों को निशाना बनाया गया: 2019 में 91 फ़ीसदी पीड़ित पुरुष थे, जबकि 2018 में यह संख्या 93 प्रतिशत थी. 

इसकी एक वजह ख़तरनाक इलाक़ों में महिला पत्रकारों का कम संख्या में मौजूद होना बताया गया है, साथ ही कम महिलाओं को राजनैतिक भ्रष्टाचार और संगठित अपराधों जैसे सम्वेदनशील मुद्दों की पड़ताल की ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है. 

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यूनेस्को के अनुसार व्याप्त रुढ़िवादिता के कारण कभी-कभी महिलाओं को जोखिम भरे इलाक़ों में जाने या कुछ ख़ास मुद्दों पर रिपोर्टिंग से भी रोका जाता है.

लेकिन महिला पत्रकारों को ऑनलाइन व ऑफ़लाइन लिंग-आधारित हमलों का सामना करना पड़ता है जिससे उनकी सुरक्षा के लिये जोखिम पैदा होता है. 

ये हमले उत्पीड़न से लेकर, शारीरिक या यौन दुर्व्यवहार, निजी और पहचान ज़ाहिर करने वाली जानकारी को सार्वजनिक करने तक हो सकते हैं.  

टीवी व स्थानीय पत्रकारों के लिये बड़ा जोखिम 

पिछले वर्षों के अनुरूप, रिपोर्ट दर्शाती है कि पीड़ितों में सबसे बड़ा समूह टीवी पत्रकारों का है. 

2018 और 2019 में, अपनी जान गँवाने वाले 30 फ़ीसदी (47 मौतें) टीवी पत्रकार थे, जिसके बाद 24 फ़ीसदी रेडियो पत्रकारों और 21 फ़ीसदी अख़बारों में काम करने वाले पत्रकार मारे गए.

पिछले वर्षों की तरह अधिकाँश पीड़ित स्थानीय स्तर पर काम करने वाले पत्रकार थे – 2018 में 95 स्थानीय पत्रकारों और 2019 में 56 स्थानीय पत्रकारों की जानें गई. 

दुनिया भर में मारे गए पत्रकारों की संख्या.
Source: UNESCO report
दुनिया भर में मारे गए पत्रकारों की संख्या.

यूएन एजेंसी का कहना है कि पत्रकारों के ख़िलाफ़ अपराधों के मामलों में दण्ड निडरता अब भी फैली हुई है, अलबत्ता, 2020 में उसमें मामूली गिरावट आई है.  

सदस्य देशों से प्राप्त आँकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में पत्रकारों के ख़िलाफ़ अपराधों के 13 फ़ीसदी मामले सुलझा लिये गए, जबकि 2019 में 12 प्रतिशत और 2018 में 11 फ़ीसदी मामले ही सुलझाए जा सके थे.