कोविड-19 से उबरने और बेहतर जीवन स्तर के लिये टिकाऊ शहरीकरण अहम
संयुक्त राष्ट्र की पर्यावास एजेंसी यूएन हैबीटैट (UN Habitat) ने कहा है कि कोविड-19 महामारी और उसके बहुत व्यापक आर्थिक प्रभावों से उबरने के प्रयासों में नगर अति महत्वपूर्ण होंगे. शनिवार को जारी की गई विश्व नगर रिपोर्ट 2020 में टिकाऊ शहरीकरण के मूल्य और ये दिखाया गया है कि शहरीकरण स्वास्थ्य आपदा के प्रभावों से उबरने के वैश्विक प्रयासों में किस तरह मदद कर सकता है.
यूएन हैबीटैट की कार्यकारी निदेशक मायमूना मोहम्मद शरीफ़ ने कहा है, “विश्व नगर रिपोर्ट 2020 में स्पष्ट तरीक़े से दिखाया गया है कि सुनियोजित, सुप्रबन्धित, और वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर शहर और क़स्बे ऐसे आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय और अन्य अदृश्य अहमियत व संसाधनों का निर्माण करते हैं जिनके ज़रिये सभी लोगों की ज़िन्दगी की गुणवत्ता बेहतर की जा सकती है.”
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UNHABITAT
“शहरीकरण का फ़ायदा ग़रीबी, असमानता, बेरोज़गारी, जलवायु परिवर्तन और अन्य तरह की वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिये किया जा सकता है.”
शहर बदलाव लाते हैं
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया भर में, कुल आबादी का लगभग 55 प्रतिशत लोग नगरीय इलाक़ों में रहते हैं, वर्ष 2050 तक ये संख्या बढ़कर लगभग 70 प्रतिशत होने का अनुमान है.
यूएन हैबीटैट का कहना है कि कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने के प्रयासों का केन्द्र शहरी इलाक़े ही रहै हैं क्योंकि कोरोनावायरस के संक्रमण के लगभग 95 प्रतिशत मामले नगरीय इलाक़ों में ही हुए हैं.
रिपोर्ट में नवीन नगरीय एजेण्डा की भूमिका पर भी ज़ोर दिया गया है, जोकि टिकाऊ शहरीकरण के लिये एक 20 वर्षीय योजना है. ये योजना टिकाऊ विकास हासिल करने और जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला करने के लिये एक रोड मैप है.
ये योजना आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय नज़रिये से शहरीकरण की अहमियत का विश्लेषण करती है.
शहरीकरण की अहमियत
यूएन हैबीटैट ने विस्तार से बताया है कि शहरों के कुशल संचालन से आर्थिक अहमियत व सम्पदा का निर्माण होता है, मसलन, ऐसे यातायात व परिवहन साधन मुहैया कराकर जिनके ज़रिये भीड़ कम हो और यात्रा का समय कम हो, जिससे ज़्यादा उत्पादक रोज़गार के अवसर पैदा होते हैं.
एजेंसी का कहना है कि जिन शहरों में पैदल पहुँच में सिटी सेण्टर होते हैं तो वहाँ पर्यावरणीय अहमियत उत्पन्न होती है, जिससे उन शहरों के कुल कार्बन उत्सर्जन हिस्से में कमी होती है.
इस बीच, शहरी नीतियाँ सामाजिक असमानताएँ भी कम कर सकती हैं. मसलन, निम्न आय वाले लोगों के लिये आवास मुहैया कराकर, या प्रवासियों व हाशिये पर रहने वाले अन्य समूहों के लोगों को सुरक्षित स्थान उपलब्ध कराकर.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे भी आगे, जो शहर सुनियोजित होते हैं और उनका प्रबन्धन कुशल होता है तो उनके ज़रिये गौरव महसूस होता है, साथ ही वो सांस्कृतिक परम्पराओं के केन्द्र के रूप में भी काम करते हैं.
भविष्य के शहरों का सशक्तिकरण
यूएन हैबीटैट रिपोर्ट विश्व नगर दिवस के मौक़े पर शनिवार को जारी की गई जो हर वर्ष 31 अक्टूबर को मनाया जाता है.
यूएन महासचिव एंतोनीयो गुटेरेश ने विश्व नगर दिवस के मौक़े पर अपने सन्देश में भविष्य के शहरों को समुदायिक गतिविधियों के केन्द्र में रखे जाने का आहवान किया है.
उन्होंने कहा, “जब शहरी समुदाय नीति निर्माण और निर्णय प्रक्रिया में शामिल होते हैं, और उनके पास वित्तीय संसाधन होते हैं तो परिणाम ज़्यादा समावेशी और टिकाऊ होते हैं.”
यूएन पर्यावास एजेंसी ज़ोर देकर कहा है कि टिकाऊ शहरीकरण के मूल्य को तभी समझा जा सकता है जबकि विभिन्न प्रकार की योजना, वित्तीय और प्रशासन परिस्थितियाँ मौजूद हों.
रिपोर्ट में तमाम देशों की सरकारों से ऐसा माहौल बनाने का आहवान किया गया है जिसमें स्थानीय प्रशासन को राजस्व इकट्ठा करने, भूमि के नियमन, शहरी प्रगति, शहरों के बेतहाशा फैलाव को सीमित करने और भीड़-भाड़ वाले घरों से छुटकारा पाने के अधिकार दिये जाएँ.
साथ ही, स्थानीय प्रशासनिक संस्थाओं को नागरपालिका सेवाओं और सार्वजनिक स्थानों में बेहतरी लाने के लिये भी राजस्व एकत्र करना चाहिये.