कोविड-19 ने निर्धन देशों में बच्चों को किया चार महीने की स्कूली पढ़ाई से वंचित

विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 ने निर्धनतम देशों में स्कूली बच्चों को लगभग चार महीने की पढ़ाई-लिखाई से वंचित कर दिया है जबकि उच्च आय वाले देशों में बच्चों की छह हफ़्ते की पढ़ाई पर ही असर पड़ा है. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF), संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवँ सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) और विश्व बैंक (World Bank) की एक साझा रिपोर्ट में यह बात उजागर हुई है.
यह रिपोर्ट कोविड-19 और महामारी से शिक्षा पर हुए असर के आकलन के लिये कराए गए सर्वेक्षण पर आधारित है जो जून से अक्टूबर 2020 के दौरान 150 से ज़्यादा देशों में कराया गया.
यूनीसेफ़ में शिक्षा मामलों के वरिष्ठ अधिकारी रॉबर्ट जेन्किन्स ने बताया कि कोविड-19 से दुनिया भर में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की बर्बादी को देखने के लिये ज़्यादा दूर तक देखने की ज़रूरत नहीं है.
Children in low-and lower-middle-income countries have lost nearly four months of schooling since the start of the pandemic. In high-income countries, it's just six weeks.https://t.co/KX3pX8G4La
UNICEF
निम्न और निम्नतर मध्य आय वाले देशों में इस तबाही का विकराल रूप हैं. इन देशों में दूरस्थ पढ़ाई (Remote learning) की सीमित सुलभता है और ज़्यादा बजट कटौतियाँ होने और पाबन्दियों को हटाने में देरी के कारण स्कूली बच्चों के लिये स्थिति सामान्य होने के अवसरों में रुकावट आई है.
“स्कूल फिर से खोलने और छूट गए ज़रूरी पाठ्यक्रम को पूरा करने को प्राथमिकता दिया जाना बेहद अहम है.”
बताया गया है कि निम्न और निम्नतर मध्य आय वाले देशों में स्कूली बच्चों के लिये घर बैठकर पढ़ाई जारी रख पाना और पढ़ाई में रुकावट आने से हुए नुक़सान की निगरानी कर पाने की सम्भावना सबसे कम है.
साथ ही उनके स्कूल फिर खोले जाने में देरी की सम्भावना, स्कूलों को सुरक्षित रूप से संचालित किये जाने और छात्रों के लौटने के लिये ज़रूरी इन्तेज़ाम और पर्याप्त संसाधनों के अभाव की सम्भावना सबसे ज़्यादा है.
रिपोर्ट के मुताबिक सर्वेक्षण किये गए दो-तिहाई से ज़्यादा देशों में स्कूल आंशिक या पूर्ण रूप से फिर से खोले जाने की घोषणा की जा चुकी है.
इसके बावजूद हर चार में से एक स्कूल को तयशुदा समय पर या तो खोला नहीं जा सका है या फिर वहाँ कक्षाएँ शुरू करने के लिये तारीख़ निर्धारित नहीं हो पाई है.
इनमें से अधिकाँश स्कूल निम्न और निम्नतर मध्य आय वाले देशों में हैं.
सर्वेक्षण में वित्तीय संसाधनों पर जवाब देने वाले 79 देशों में से लगभग 40 फ़ीसदी निम्न और निम्नतर मध्य आय वाले देशों में शिक्षा के लिये राष्ट्रीय बजट में गिरावट आई है, या फिर मौजूदा और आगामी वित्तीय वर्ष में कटौती की आशंका है.
निम्न आय वाले देशों में से आधे से ज़्यादा प्रतिभागियों ने बताया कि कोविड-19 से बचाव के उपायों, जैसे कि हाथ धोने का प्रबन्ध करने या छात्रों व शिक्षकों के लिये बचाव उपकरण जुटाने के लिये पर्याप्त धनराशि का अभाव है.
जबकि सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले उच्च आय वाले देशों में महज़ पाँच फ़ीसदी देशों में ऐसे हालात हैं.
यूनेस्को में शिक्षा मामलों के लिये सहायक महानिदेशक स्टैफ़निया जियानॉनी ने बताया, “वैश्विक महामारी से निम्न और मध्य आय वाले देशों में शिक्षा के लिये ज़रूरी धनराशि की खाई और बढ़ेगी.”
“इन्तज़ार करने के बजाय निवेश का सही चयन करके इस कमी को काफ़ी हद तक दूर किया जा सकता है.”
रिपोर्ट दर्शाती है कि लगभग सभी देशों में शिक्षा सम्बन्धी जवाबी कार्रवाइयों में ऑनलाइन प्लैटफ़ॉर्म, टैलीविज़न, रेडियो कार्यक्रमों सहित अन्य उपायों के ज़रिये दूरस्थ पढ़ाई को शामिल किया गया है.े
अधिकाँश देशों (हर 10 में से 9) में ऑनलाइन पढ़ाई को सम्भव बनाने के प्रयास किये ग हैं जिसके लिये मोबाइल फ़ोन और किफ़ायती दरों पर या निशुल्क इण्टरनेट सेवाएँ मुहैया कराई जा रही हैं. लेकिन ये सुविधाएँ हर जगह एक समान नहीं हैं.
हर 10 में से छह देश में अभिभावकों को बच्चों के घर बैठकर पढ़ाई करने के लिये ज़रूरी दिशा-निर्देश व अन्य सामग्री उपलब्ध कराई गई है.
40 फ़ीसदी देशों में स्कूलों के बन्द होने के दौरान बच्चों व उनकी देखभाल करने वालों को मनोसामाजिक परामर्श सेवाएँ प्रदान की गईं.
ये उपाय मुख्य रूप से उच्च आय वाले देशों में किये गए, विशेष रूप से उन इलाक़ों में जहाँ संसाधन तत्परता से उपलब्ध थे.
विश्व बैंक में शिक्षा के लिये वैश्विक निदेशक जेमी सावेद्रा ने स्पष्ट किया कि महामारी से पहले ही सीखने के अवसरों की निर्धनता और विषमता के प्रति चिन्ता व्याप्त थी.
लेकिन कोविड-19 के कारण सीखने के मूलभूत स्तर में गिरावट आई है और अवसरों की विषमता से हालात विनाशकारी हो सकते हैं.
इसलिये शिक्षा प्रक्रिया में फिर से स्फूर्ति भरना बेहद ज़रूरी हो गया है.