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म्याँमार में चुनाव से पहले मानवाधिकारों की स्थिति पर ‘गम्भीर चिन्ता’

म्याँमार के राख़ीन प्रान्त के सित्वे में घरेलू विस्थापितों के लिये बनाये गये एक शिविर में महिलाएँ व बच्चे.
© UNICEF/Nyan Zay Htet
म्याँमार के राख़ीन प्रान्त के सित्वे में घरेलू विस्थापितों के लिये बनाये गये एक शिविर में महिलाएँ व बच्चे.

म्याँमार में चुनाव से पहले मानवाधिकारों की स्थिति पर ‘गम्भीर चिन्ता’

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) ने म्याँमार में मानवाधिकार हनन के मामलों और अल्पसंख्यक समुदायों के ख़िलाफ़ नफ़रत भरे सन्देश फैलने पर गहरी चिन्ता जताई है. मंगलवार को यूएन कार्यालय की ओर से यह बयान ऐसे समय में आया है जब म्याँमार में अगले महीने 8 नवम्बर को होने वाले आम चुनावों की तैयारियाँ चल रही हैं. 

जिनीवा में यूएन मानवाधिकार कार्यालय में प्रवक्ता रवीना शमदासानी ने बताया कि रोहिंज्या मुस्लिम समुदाय और जातीय राख़ीन जनसमूह के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदायों पर ग़ैरआनुपातिक असर हुआ है. 

“ये चुनाव म्याँमार के लोकतान्त्रिक दिशा में आगे बढ़ने की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण पड़ाव को प्रदर्शित करते हैं लेकिन विचारों, अभिव्यक्ति और सूचना पाने की आज़ादी पर पाबन्दियाँ जारी रहने से नागरिकों के लिये स्थान को अब भी क्षति पहुँच रही है.”

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उन्होंने ऐसी भाषा के इस्तेमाल के प्रति आगाह किया जिससे भेदभाव, दुश्मनी और हिंसा को भड़काया जा सकता है.

यूएन मानवाधिकार प्रवक्ता ने विरोधी विचारों और नीतियों व कार्रवाई की आलोचना के प्रति सरकार और सैन्य नेतृत्व की असहिष्णुता पर भी चिन्ता जताई है.

पिछले दो महीनों के दौरान अनेक छात्र कार्यकर्ताओं पर आरोप तय किये गए हैं और चार छात्रों को विभिन्न क़ानूनों के तहत छह साल क़ैद की सज़ा सुनाई गई है. 

इन छात्रों ने उत्तरी राख़ीन और चिन प्रान्तों में हिंसक संघर्षों का अन्त किये जाने और उन इलाक़ों में मोबाइल इण्टरनेट सेवाएँ बहाल किये जाने की माँग की थी, साथ ही वो, हिरासत में लिये गये अन्य छात्र कार्यकर्ताओं की रिहाई की भी माँग कर रहे थे. 

मानवाधिकार प्रवक्ता ने कहा, “हम सरकार से आग्रह करते हैं कि जिस किसी भी व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी का इस्तेमाल करने के लिये क़ानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है, उनके ख़िलाफ़ लगे आरोप वापिस ले लिये जाएँ.”

“चुनावों से पहले के सन्दर्भ में यह विशेष रूप से एक मूल्यवान अधिकार है.” 

यूएन मानवाधिकार कार्यालय के मुताबिक म्याँमार में नागरिकता और चुनाव सम्बन्धी भेदभावपूर्ण क़ानून हैं जिनमें नागरिकों के विभिन्न वर्गों को भिन्न-भिन्न अधिकार दिये गए हैं. 

बताया गया है कि इन क़ानूनों का सबसे ज़्यादा नकारात्मक असर मुस्लिम अल्पसंख्यकों समूहों पर हुआ है जिन्हें मोटे तौर पर किसी भी प्रकार के नागरिकता अधिकारों से वंचित रखा गया है. 

संघीय चुनाव आयोग ने 16 अक्टूबर को राख़ीन प्रान्त सहित लगभग 56 नगरों और बस्तियों में चुनाव ना कराए जाने की घोषणा की थी.

रवीना शमदासानी के मुताबिक चुनाव आयोग ने यह निर्णय लिये जाने की वजह नहीं बताई है, जिससे उन इलाक़ों में राजनैतिक भागीदारी के अधिकार पर भेदभाभवपूर्ण ढँग से असर पड़ता है जहाँ जातीय अल्पसंख्यक समुदाय रहते हैं. 

उन्होंने बताया कि राख़ीन और चिन प्रान्त के 8 नगरों और बस्तियों में इण्टरनेट पर पाबन्दी लगी है जिससे विश्वसनीय जानकारी हासिल करने की, स्थानीय नागरिकों की क्षमता पर असर पड़ा है. 

इनमें कोविड-19 महामारी और चुनावी प्रक्रिया से जुड़े इन्तज़ाम सम्बन्धी जानकारी भी शामिल है. 

मानवाधिकार प्रवक्ता ने फ़ेसबुक के ज़रिये मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ नफ़रत भरे सन्देशों और भाषणों के बेरोकटोक प्रसार पर गहरी चिन्ता जताई है. 

हालाँकि उन्होंने स्पष्ट किया कि फ़ेसबुक ने ऐसी सामग्री की शिनाख़्त करने और उसे हटाने के प्रयास किये हैं. 

इस सम्बन्ध में उन्होंने म्याँमार सरकार से राष्ट्रपति के उन दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्रवाई किये जाने का आग्रह किया है जो इस वर्ष अप्रैल में जारी किये गए थे.

इन दिशा-निर्देशों का लक्ष्य नफ़रत भरे सन्देशों की सार्वजनिक रूप से निन्दा किया जाना, सहिष्णुता को बढ़ावा देना, और चुनाव प्रत्याशियों व लोक अधिकारियों द्वारा भाषणों में बहुलतावाद को बढ़ावा देना है.