कोविड-19: संक्रमण के इलाज में कारगर नहीं रहीं 'एण्टीवायरल दवाएँ'

विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के ख़िलाफ़ कारगर उपचार की तलाश के लिये संयुक्त राष्ट्र के संयोजन में जारी 'अन्तरराष्ट्रीय एकजुटता वैक्सीन ट्रायल' के ताज़ा नतीजे दर्शाते हैं कि जिन दवाओं का परीक्षण किया जा रहा था उनसे कोरोनावायरस के इलाज में कोई ख़ास मदद नहीं मिली है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने छह महीने पहले एकजुटता ट्रायल (Solidarity Therapeutics Trial) शुरू किया था जिसका उद्देश्य यह जाँच करना था कि कोविड-19 के उपचार में 'एण्टी वायरल' दवाओं सहित अन्य कौन सी दवाएँ कारगर हैं.
दुनिया भर में कोविड-19 संक्रमण के अब तक तीन करोड़ 86 लाख मामलों की पुष्टि हो चुकी है और 10 लाख 93 हज़ार लोगों की मौत हुई है.
Remdesivir, hydroxychloroquine, lopinavir/ritonavir और interferon के परीक्षणों के नतीजे दर्शाते हैं कि ये दवाएँ मौतों को टालने या फिर मरीज़ों के अस्पताल में भर्ती रहने का समय कम करने में या तो बेअसर साबित हुई हैं या फिर उनका मामूली प्रभाव ही हुआ है.
इससे पहले जून में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा का परीक्षण रोके जाने की घोषणा की गई थी और जुलाई में दो दवाओं के परीक्षण के तहत मरीज़ों का पंजीकरण रोक दिया गया था.
इसे कोविड-19 उपचार की तलाश में दुनिया का सबसे बड़ा परीक्षण बताया गया है जिसमें 30 देशों के 500 अस्पतालों में 13 हज़ार से ज़्यादा मरीज़ों ने हिस्सा लिया.
इस परीक्षण में संक्रमण की घातकता और उससे होने वाली मौतों पर असर, वैण्टीलेटर पर रखे जाने और अस्पताल में भर्ती मरीज़ों की अवधि का आकलन किया गया.
इन नतीजों के बाद यह बताया गया है कि फ़िलहाल डेक्सामीथेज़ोन नामक दवा ही कोविड-19 के गम्भीर मरीज़ों के उपचार में मददगार साबित हुई है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आगाह किया है कि कोविड-19 ने उन लोगों के लिये विशेष रूप से मुश्किलें खड़ी कर दी हैं जो पहले से ही उच्च रक्तचाप (Blood pressure) की समस्या से पीड़ित हैं.
यह चेतावनी उन 120 देशों से मिले आँकड़ों के आधार पर जारी की गई है जहाँ कोरोनावायरस संकट से स्वास्थ्य सेवाओं में आए व्यवधान का असर लम्बे समय से बीमार लोगों पर हुआ है.
आँकड़े दर्शाते हैं कि कोविड-19 से होने वाली 50 से 60 फ़ीसदी मौतें पहले से स्वास्थ्य समस्याओं को झेल रहे लोगों की हो रही है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी में ग़ैर-संचारी रोगों के विभाग में निदेशक डॉक्टर बेन्टे मिकेलसन ने बताया कि विश्व भर में एक अरब 13 करोड़ से ज़्यादा लोग हायपरटेन्शन (उच्च रक्तचाप) से पीड़ित हैं.
इनमें 74 करोड़ से ज़्यादा लोग निम्न और मध्य आय वाले देशों में रहते हैं, और इनमें 80 फ़ीसदी से ज़्यादा देश ऐसे हैं जहाँ 50 प्रतिशत से भी कम लोगों को उपचार मिल पा रहा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, औसतन, हर चार में से एक पुरुष इस समस्या से पीड़ित है जबकि हर पाँच में से एक महिला को यह स्वास्थ्य समस्या है.
इसके अतिरिक्त, हर पाँच में से दो व्यक्तियों को यह अन्दाज़ा भी नहीं है कि वे उच्च रक्तचाप की अवस्था के साथ रह रहे हैं.
डॉक्टर मिकेलसन के मुताबिक, "कोविड-19 और उच्च रक्तचाप के मामले में, जिन 122 देशों से हमें जानकारी मिली है, उनमें 50 फ़ीसदी से ज़्यादा देशों में स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में आंशिक या पूर्ण रूप से व्यवधान आया है."
"इसके अलावा, हम बड़ी संख्या में लोगों की मौत देख रहे हैं."
उन्होंने स्पष्ट किया कि वैश्विक स्तर पर अभी आँकड़ों की गणना किया जाना बाक़ी है लेकिन जिन देशों में आँकड़े उपलब्ध हैं, वहाँ कोविड-19 से गम्भीर रूप से बीमार और मृतकों में 50 से 60 फ़ीसदी लोग उच्च रक्तचाप, डायबिटीज़ सहित अन्य ग़ैर-संचारी रोगों से पीड़ित थे.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आगाह किया है कि कोविड-19 महामारी अब फिर उन देशों में उभार पर हैं जहाँ पाबन्दियों में ढील दे दी गई थी.
वैश्विक गोलार्ध में इस मौसम में इन्फ़्लुएँजा भी फैलता है जिससे स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त भार पड़ने की आशंका है.
इसके मद्देनज़र यूएन एजेंसी ने सरकारों से हायपरटेन्शन से निपटने के प्रयासों में तेज़ी दिखाने की पुकार लगाई है.
डॉक्टर मिकेलसन ने कहा कि तथ्य दर्शाते हैं कि ख़राब आहार और नमक के अधिक इस्तेमाल के साथ-साथ लोगों के जीवन में सक्रियता घट रही है जिससे उच्च रक्तचाप के मामलों की दर बढ़ रही है.
16 अक्टूबर को ‘विश्व उच्च रक्तचाप दिवस’ के अवसर डॉक्टर मिकेलसन ने ऐसी सिफ़ारिशें व उत्पाद पेश किये हैं जिनसे महामारी के दौरान व उसके गुज़र जाने के बाद भी उच्च रक्तचाप के ख़िलाफ़ लड़ाई में मदद मिलेगी.
स्वास्थ्य प्रसासन ये सिफ़ारिशें अपनाकर लोगों के रक्तचाप को नियन्त्रण में रखने और आघात, दिल का दौरा और किडनी ख़राब होने के मामलों में कमी लाई जा सकती है.
18 देशों में 30 लाख लोगों के रक्तचाप पर नियन्त्रण में सफलता मिलने के बाद ये प्रोटोकॉल तैयार किया गया है.
विश्व स्वास्थ्य ऐसेम्बली ने वर्ष 2025 तक उच्च रक्तचाप के मामलों में 25 फ़ीसदी की कटौती लाने का लक्ष्य रखा है लेकिन महज़ 20 फ़ीसदी देश ही इस लक्ष्य की ओर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं.