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ग्रामीण महिलाओं को भविष्य के संकटों के मद्देनज़र मज़बूत करने की दरकार

भारत में यूनीसेफ़ समर्थित ग्रामीण विकास कार्यक्रम के तहत ग्रामीण महिलाएँ सब्ज़ियों का उत्पादन करती हुईं.
© UNICEF/Vinay Panjwani
भारत में यूनीसेफ़ समर्थित ग्रामीण विकास कार्यक्रम के तहत ग्रामीण महिलाएँ सब्ज़ियों का उत्पादन करती हुईं.

ग्रामीण महिलाओं को भविष्य के संकटों के मद्देनज़र मज़बूत करने की दरकार

महिलाएँ

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि ग्रामीण महिलाएँ कृषि, खाद्य सुरक्षा और भूमि व प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन में बहुत अहम भूमिका निभाती हैं मगर फिर भी वो भेदभाव का सामना करती हैं, उनके साथ व्यवस्थागत नस्लभेद होता है और वो ढाँचागत ग़रीबी में जीवन जीती हैं. 

अन्तरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस के मौक़े पर 15 अक्टूबर को महासचिव ने अपने सन्देश में कहा, “कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर में ग्रामीण महिलाओं की आधी से ज़्यादा संख्या को इस रूप में प्रभावित किया है कि उनके आवागम पर पाबन्दियाँ हैं, उनकी दुकानें और बाज़ार बन्द हैं, और उनके लिये ज़रूरी सामान की आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधाएँ पैदा हुई हैं.”

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स्वास्थ्य जोखिम में

महिलाओं के सामने दरपेश मुश्किलें और चुनौतियाँ, ग्रामीण इलाक़ों में कोविड-19 महामारी के समय में और ज़्यादा बढ़ गई हैं, जहाँ महिलाओं के लिये गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएँ, ज़रूरी दवाएँ और वैक्सीन वग़ैरा की उपलब्धता पहले ही सीमित होती है.

यूएन प्रमुख ने कहा, “प्रतिबन्धकारी सामाजिक रीति-रिवाज़ों व लैंगिक पूर्वाग्रहों के कारण ग्रामीण महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता कम होती है, बहुत सी ग्रामीण महिलाएँ अलग-थलग रहने को मजबूर होती हैं, उनके बारे ग़लत जानकारी फैलाई जाती है.

और तो और, उनकी कामकाजी व निजी ज़िन्दगी में सुधार करने के लिये अहम टैक्नॉलॉजी का भी अभाव होता है.”

अलबत्ता, डिजिटल चैनल ग्रामीण इलाक़ों में भी जीवन में ऊर्जा का संचार कर सकते हैं, स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता के बारे में जानकारी मुहैया करा सकते हैं.

"मगर, ग्रामीण महिलाओं के लिये डिजिटल खाई बहुत बड़ी है और केवल एक चौथाई महिलाओं को ही कृषि के लिये डिजिटल समाधानों तक पहुँच हासिल है.”

महिलाधिकारों के लिये जोखिम

संयुक्त राष्ट्र ने ध्यान दिलाते हुए कहा है कि ग्रामीण महिलाओं की ख़ुशहाली व प्रगति के लिये संसाधन निवेश करना पहले से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है.

महामारी ने भूमि व अन्य संसाधनों के लिये उनके अधिकारों को कमज़ोर हालत में डाल दिया है, साथ ही उनके साथ लैंगिक भेदभाव तो होता ही है.

और बहुत से देशों में रीति-रिवाज़ और परम्पराएँ भूमि व सम्पदा पर महिलाओं के अधिकार सीमित करती हैं.

महिलाओं की भूमि पट्टा ज़मानत भी जोखिम में क्योंकि बेरोज़गार प्रवासी अपने मूल ग्रामीण स्थानों को वापिस लौट रहे हैं जिलससे भूमि और ग्रामीण संसाधनों पर बोझ बढ़ हा. इससे खेतीबाड़ी और खाद्य सुरक्षा में लैंगिक असमानता की खाई और ज़्यादा गहरी हुई है.

और, कोविड-19 ने विधवाओं को मिलने वाली भूमि और संसाधन विरासत को जोखिम में डाल दिया है. 

एकजुटता की दरकार

यूएन प्रमुख ने कहा कि इन सब जोखिमों के बावजूद ग्रामीण महिलाएँ महामारी का मुक़ाबला करने के प्रयासों में अग्रिम मोर्चों पर मुस्तैद रही हैं, अलबत्ता तालाबन्दी के दौरान उनका बिना आय वाला कामकाज और घरेलू कामकाज बढ़ गया है.

उन्होंने कहा कि ग्रामीण महिलाओं    की महामारी के समय में मदद करना और भविष्य के लिये उनकी मज़बूती बढ़ाने के लिये एकजुटता और सभी की मदद की ज़रूरत होगी. 

घरों में देखभाल की ज़िम्मेदारी महिलाओं और पुरुषों के बीच साझा करने के लिये नए उपायों की ज़रूरत होगी, ख़ासतौर पर बहुत हाशिये पर जीने वाले ग्रामीण इलाक़ों में.

क्या आप जानते हैं?

  • दुनिया भर की आबादी के लगभग एक चौथाई हिस्से में – ग्रामीण महिला किसान, दिहाड़ी मज़दूर और छोटी कारोबारी हैं.
  • दुनिया भर में भूमि मालिकों में केवल 20 प्रतिशत महिलाएँ हैं.
  • ग्रामीण इलाक़ों में, आय के मामले में लैंगिक असमानता की खाई 40 प्रतिशत तक ऊँची है, यानि पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं को इतनी कम आदमनी होती है.
  • श्रम बल में मौजूद लैंगिक असमानता की खाई को वर्ष 2025 तक 25 फ़ीसदी पाटने से ही वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 3.9 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हो सकता है.
  • अगर ग्रामीण महिलाओं को कृषि सम्पदा, शिक्षा और बाज़ारों की उपलब्धता में समान भागीदारी मिले, तो भुखमरी का सामना करने वाले लोगों की संख्या में 10 से 15 करोड़ तक की कमी लाई जा सकती है.