कोविड-19: स्वास्थ्य, सामाजिक व आर्थिक चुनौतियों से निपटने में एकजुटता की दरकार

विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 से दुनिया भर में ना सिर्फ़ मानव जीवन को भीषण नुक़सान हुआ है बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य, खाद्य प्रणालियों और कामकाजी दुनिया के लिये एक अभूतपूर्व चुनौती पैदा हो गई है. संयुक्त राष्ट्र की अग्रणी एजेंसियों ने मंगलवार को एक साझा बयान जारी करके मौजूदा हालात की व्यापकता और विकरालता पर चिन्ता ज़ाहिर की है.
अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), खाद्य एवँ कृषि संगठन (FAO), अन्तरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (IFAD) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ओर से जारी इस वक्तव्य में कहा गया है कि महामारी के कारण उपजा आर्थिक व सामाजिक व्यवधान विनाशकारी साबित हुआ है.
Smallholder farmers need to be linked to markets so that they can improve their farming and sell their products.IFAD supports projects that connect rural people to markets and services so they can grow more and earn more.#InvestInRuralPeople pic.twitter.com/WYAnXq8k4y
IFAD
करोड़ों लोगों के निर्धनता के गर्त में धँसने की आशंका है और अल्पपोषण का शिकार लोगों की संख्या बढ़ने का अनुमान है. मौजूदा समय में लगभग 69 करोड़ लोग अल्पपोषण से पीड़ित हैं लेकिन इस वर्ष के अन्त तक इस संख्या में 13 करोड़ से ज़्यादा का इज़ाफ़ा हो सकता है.
“यह समय वैश्विक एकजुटता और समर्थन के लिये है, विशेष रूप से हमारे समाज के सबसे निर्बल समुदायों के साथ, ख़ास तौर पर उभरते हुए और विकासशील देशों में.”
“एक साथ मिलकर ही हम महामारी के आपस में जुड़े स्वास्थ्य और सामजिक व आर्थिक प्रभावों पर कामयाबी पा सकते हैं, और उसे लम्बे समय तक जारी रहने वाली मानवीय व खाद्य सुरक्षा बर्बादी में तब्दील होने से रोक सकते हैं, जिससे विकास में हाल के दशकों में हासिल हुई प्रगति के खोने का भी ख़तरा है.”
यूएन एजेंसियों ने चिन्ता जताई है कि महामारी के प्रभावों से लाखों उद्यमों के अस्तित्व के लिये ख़तरा पैदा हो गया है.
फ़िलहाल तीन अरब 30 करोड़ लोग वैश्विक कार्यबल का हिस्सा हैं लेकिन इनमें से लगभग पचास फ़ीसदी यानि आधी संख्या के रोज़गार पर जोखिम मँडरा रहा है.
अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में कार्यरत कामगारों पर विशेष रूप से आजीविका खोने का ख़तरा है. उनके पास सामाजिक संरक्षा और गुणवत्तापरक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का अभाव है और तालाबन्दी के दौरान आय का स्रोत ना होने के कारण उनके लिये परिवार की गुज़र-बसर चलाना मुश्किल साबित हुआ है.
कृषि क्षेत्र में कामकाज करने वाले और स्व-रोज़गार वाले कामगारों को बड़े स्तर पर निर्धनता, कुपोषण और ख़राब स्वास्थ्य का सामना करना पड़ रहा है.
बहुत से कामगार कम या अनियमित आय होने और सामाजिक संरक्षा के अभाव में असुरक्षित परिस्थितियों में भी काम करने के लिये मजबूर हैं. इससे उन पर व उनके परिवारों के समक्ष अतिरिक्त जोखिम उत्पन्न हो रहा है.
यूएन एजेंसियों ने आशंका जताई है कि आय का स्रोत ख़त्म हो जाने के कारण प्रभावित कामगार हताशा में नासमझी भरे फ़ैसले लेने के लिये मजबूर हो सकते हैं, जैसेकि घबराहट में अपनी सम्पत्ति बेच देना, ख़राब शर्तों पर क़र्ज़ लेना या फिर बच्चों का बाल श्रम का शिकार होना.
“प्रवासी कृषि कामगार ख़ास तौर पर नाज़ुक हालात में हैं, क्योंकि उन्हें अपने परिवहन, कार्यस्थलों और रहने के स्थानों पर जोखिमों और सरकारों द्वारा किये गए राहत उपायों तक पहुँचने में संघर्ष का सामना करना पड़ता है.”
कोविड-19 महामारी ने मौजूदा खाद्य प्रणाली की कमज़ोरियाँ उजागर कर दी हैं.
सीमाएँ बन्द होने, व्यापार सम्बन्धी और आवाजाही पर रोक होने से घरेलू व अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओँ में व्यवधान आया है जिससे स्वस्थ्य, सुरक्षित व विविध आहार तक लोगों की पहुँच कम हुई है.
यूएन एजेंसियों ने ज़ोर देकर कहा है कि दीर्घकालीन रणनीतियाँ विकसित की जानी होंगी ताकि स्वास्थ्य व कृषि-खाद्य सैक्टरों के सामने मौजूद ख़तरों से निपटा जा सके.
इसके तहत खाद्य असुरक्षा, कुपोषण, ग्रामीण क्षेत्रों में पसरी निर्धनता और सामाजिक संरक्षा के अभाव सहित अन्य चुनौतियों से निपटे जाने को प्राथमिकता देनी होगी.
वक्तव्य में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र मौजूदा संकट पर पार पाने और टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने में सभी देशों के साथ अपनी विशेषज्ञता व अनुभव प्रदान करने के लिये संकल्पबद्ध है.
“हमें इस अवसर की शिनाख़्त बेहतर पुनर्निर्माण के अवसर के रूप में करनी होगी.”
यूएन एजेंसियों के मुताबिक मानव स्वास्थ्य, आजीविकाओं, खाद्य सुरक्षा व पोषण की रक्षा करते हुए ख़ुद को नई परिस्थितियों के अनुरूप ढालने के लिये ज़रूरी है कि पर्यावरण के भविष्य के बारे में पुनर्विचार किया जाए, और जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण क्षरण से निपटने में तात्कालिकता और महत्वाकाँक्षा दर्शाई जाए.