पिछले 20 वर्षों के दौरान जलवायु आपदाओं में चिन्ताजनक बढ़ोत्तरी हुई

संयुक्त राष्ट्र की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि 21वीं शताब्दी के पहले 20 वर्षों में जलवायु आपदाओं में भारी बढ़ोत्तरी हुई है. संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने सोमवार को एक नई रिपोर्ट जारी करने के मौक़े पर एक चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि लगभग सभी देशों ने उन नुक़सानदेह उत्सर्जनों से निपटने के लिये पर्याप्त क़दम नहीं उठाए हैं जोकि जलवायु ख़तरों से जुड़े हैं और बड़ी संख्या में त्रासदियों के लिये ज़िम्मेदार हैं.
आपदा जोखिम घटाने पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UN Office on Disaster Risk Reduction) ने सभी देशों के नाम एक अपील जारी करते हुए भूकम्प, सूनामी लहरों, जैविक ख़तरों सहित अन्य विनाशकारी घटनाओं से बचाव की पुख़्ता तैयारी करने की बात कही है.
Disaster risk governance done well can be the difference between: life and death; being injured or being fit; having a roof over your head or being homeless. 13 October is #DRRday and #ItsAllAboutGovernance https://t.co/KrX0T3sbUp pic.twitter.com/hfa9IOe2UT
UNDRR
यूएनडीआरआर प्रमुख व आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर महासचिव की विशेष प्रतिनिधि मामी मिज़ूतोरी ने बताया कि आपदा प्रबन्धन एजेंसियों को अपने कर्मचारियों व स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं के समर्पण और बेहतर तैयारियों के ज़रिये बहुत से लोगों की ज़िन्दगियाँ बचाने में सफलता मिली है.
“लेकिन उनके लिये हालात अब भी मुश्किल हैं, विशेष रूप से उन औद्योगिक देशों के लिये जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों को घटाने में बुरी तरह विफल हो रहे हैं.”
यूएनडीआरआर कार्यालय ने यह रिपोर्ट बेल्जियम में Centre for Research on the Epidemiology of Disasters के सहयोग से तैयार की है.
रिपोर्ट के मुताबिक अब तक दुनिया भर में पिछले दो दशकों में सात हज़ार से ज़्यादा (7,348) आपदा घटनाएँ दर्ज की गई हैं जिनमें 12 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है – यानि प्रतिवर्ष लगभग 60 हज़ार मृतक.
इन आपदाओं से अब तक कुल चार अरब से ज़्यादा लोग प्रभावित हुए हैं, अनेक लोग एक बार से ज़्यादा प्रभावित हुए हैं.
पिछले दो दशकों में त्रासदियों से विश्व अर्थव्यवस्था को 2.97 ट्रिलियन डॉलर की रक़म का नुक़सान हुआ है.
आँकड़े दर्शाते हैं कि धनी देशों की तुलना में निर्धन देशों में मृत्यु दर चार गुणा अधिक रही है.
2000 से 2019 की तुलना में उसके अतीत के दो दशकों (1980 से 1999) प्राकृतिक आपदाओं के चार हज़ार से अधिक मामले (4,212) ही दर्ज किये गए थे और 11 लाख 90 हज़ार लोगों की मौत हुई थी.
इन आपदाओं में तीन अरब से ज़्यादा लोग प्रभावित हुए थे और वैश्विक अर्थव्यवस्था को 1.63 ट्रिलियन डॉलर की हानि हुई.
विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले दो दशकों में आपदा घटनाओं की निगरानी व रिपोर्टिंग प्रक्रिया बेहतर होने से उनकी संख्या में आई बढ़ोत्तरी को समझा जा सकता है. इसके बावजूद जलवायु सम्बन्धी आपात परिस्थितियों में बढ़ोत्तरी इस वृद्धि का प्रमुख कारण बताया गया है.
त्रासदियों की 40 फ़ीसदी से ज़्यादा घटनाएँ बाढ़ सम्बन्धी हैं जिनसे एक अरब 65 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं, जबकि तूफ़ान सम्बन्धी 28 प्रतिशत, भूकम्प 8 प्रतिशत और चरम तापमान की 6 फ़ीसदी घटनाएँ दर्ज की गई हैं.
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में वैश्विक औसत तापमान पूर्व औद्योगिक काल के स्तर की तुलना में 1.1 डिग्री सैल्सियस अधिक था, जिसके परिणामस्वरूप चरम मौसम की घटनाओं – गर्म हवाएँ, सूखा, बाढ़, तूफ़ान और जंगलों में आग – की घटनाओं की आवृत्ति बढ़ रही है.
यूएनडीआरआर प्रमुख ने कहा है कि वर्ष 2015 में पेरिस समझौते में वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को सीमित रखने के लिये अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा लिये गए संकल्पों के बावजूद यह देखना चिन्ताजनक है कि देश जानते-समझते हुए भी अपने विनाश के बीज बो रहे हैं.
उन्होंने कहा कि और विज्ञान व तथ्यों के बावजूद हमारे एकमात्र घर को लाखों लोगों के लिये एक ऐसे नर्क के रूप में तब्दील किया जा रहा है जहाँ वे नहीं रह सकते.
यूएनडीआरआर कार्यालय के प्रमुख मामी मिज़ूतोरी ने कोविड-19 का ज़िक्र करते हुए स्पष्ट किया कि महामारी ने आपदा जोखिम प्रबन्धन में ख़ामियाँ उजागर कर दी हैं.
ताज़ा रिपोर्ट में सरकारों से उन सभी आपदाओं के लिये पुख़्ता तैयारी किये जाने की पुकार लगाई गई है जो अक्सर आपस में जुड़ी होती हैं.
इन ख़तरों में जोखिम बढ़ाने वाले कारक, जैसेकि निर्धनता, जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण, ख़तरनाक इलाक़ों में जनसंख्या वृद्धि, अनियन्त्रित शहरीकरण और जैवविविधता का खोना है.
उन्होंने कहा कि पिछले 20 वर्षों में चरम जलवायु घटनाओं के नियमित रूप से घटने के बावजूद सिर्फ़ 93 देशों ने अब तक आपदा जोखिम रणनीतियाँ राष्ट्रीय स्तर पर लागू की हैं.
“आपदा जोखिम प्रशासन सबसे अधिक राजनैतिक नेतृत्व और उन वादों को पूरा किये जाने पर निर्भर करता है जो पेरिस समझौते और आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर सैन्डाई फ़्रेमवर्क को पारित होने के दौरान लिये गए थे.”
“लेकिन यह दुखद है कि हम अपनी इच्छा से विध्वंसकारी हो रहे हैं, और यही इस रिपोर्ट का निष्कर्ष है: कोविड-19 ताज़ा प्रमाण है कि राजनेताओं और व्यवसायियों को अपने इर्द-गिर्द दुनिया को समझना अब भी बाक़ी है.”
ताज़ा रिपोर्ट दर्शाती है कि समय-पूर्व चेतावनी प्रणालियों, आपदा तैयारियों और जवाबी कार्रवाई की मदद से कुछ जोखिमों से निर्बल समुदायों की रक्षा करने में मदद मिली है.
लेकिन अगर वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी आगे भी जारी रही तो बहुत से देशों में यह प्रगति अतीत की बात हो जाएगी.
फ़िलहाल विश्व जिस मार्ग पर आगे बढ़ रहा है उससे वैश्विक तापमान में 3.2 डिग्री सैल्सियस या उससे ज़्यादा की वृद्धि की आशंका है.
इस बढ़ोत्तरी को पेरिस में तय हुए 1.5 डिग्री सैल्सियस के लक्ष्य तक सीमित रखने के लिये औद्योगिक देशों को अगले 10 वर्षों में ग्रीनहाउस गैसों में प्रतिवर्ष कम से कम 7.2 प्रतिशत की वार्षिक कटौती करनी होगी.