ईरान: मानवाधिकार कार्यकर्ता बन्दियों को, कोविड-19 के जोखिम में, रिहा करने की पुकार

एक जेल का दृश्य
UNICEF/Rajat Madhok
एक जेल का दृश्य

ईरान: मानवाधिकार कार्यकर्ता बन्दियों को, कोविड-19 के जोखिम में, रिहा करने की पुकार

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने ईरान से क़ैद में रखे गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों और राजनैतिक बन्दियों को रिहा करने की पुकार लगाई है. मानवाधिकार उच्चायुक्त ने इन तमाम बन्दियों की स्वास्थ्य स्थिति पर गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए उनके कोविड-19 के संक्रमण की चपेट में आने की भी आशंका जताई है.

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के अनुसार ईरान की जेलों में पहले से ही बहुत भीड़भाड़ है और वहाँ स्वच्छता भी बहुत ख़राब है, लेकिन महामारी शुरू होने के बाद से उन जेलों में हालत और भी ख़राब हो गई है.

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पानी की कमी व ऐहतियाती बचाव उपकरणों के अभाव, परीक्षण सुविधा की कमी, एकान्तवास व इलाज की पर्याप्त सुविधा नहीं होने के कारण बहुत से बन्दियों में कोरोनावायरस का संक्रमण फैल गया है और अनेक बन्दियों की मौत भी हो गई है.

मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने किसी भी देश में सरकार की ज़िम्मेदारी ध्यान दिलाते हुए कहा कि उसकी निगरानी में मौजूद सभी व्यक्तियों के स्वास्थ्य और रहन-सहन की बेहतर व्यवस्था करना सरकार का दायित्व है और इनमें जेलों में बन्द लोग भी शामिल हैं.

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने मंगलवार को जारी एक प्रैस विज्ञप्ति में कहा, “अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों के तहत देश अपनी निगरानी में मौजूद तमाम इनसानों का मानक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार हैं, जिसमें शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य भी शामिल है, इनमें वो लोग भी शामिल हैं जिन्हें उनकी स्वतन्त्रता से भी वंचित किया गया है.”

उन्होंने कहा, “जिन लोगों को केवल उनके राजनैतिक विचारों या मानवाधिकारों के समर्थन में आवाज़ उठाने के लिये बन्दी बनाया जाता है, उन्हें जेल में बिल्कुल भी नहीं रखा जाना चाहिये, और ऐसे बन्दियों के साथ सख़्ती तो बिल्कुल भी नहीं की जानी चाहिये और उन्हें किसी तरह के जोखिम वाले हालात में क़तई नहीं रखा जाना चाहिये.”

कोविड-19 के ख़िलाफ़ उपाय

फ़रवरी में ईरानी अदालत ने जेलों में भीड़ कम करने और कोविड-19 का संक्रमण फैलाव रोकने के मक़सद से कुछ लोगों को अस्थायी तौर पर रिहा किये जाने के निर्देश जारी किये थे.

मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के अनुसार आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक़ इससे लगभग एक लाख 20 हज़ार बन्दियों को फ़ायदा हुआ था. लेकिन ऐसा लगता है कि वो उपाय स्थगित कर दिये गए हैं और बड़ी संख्या में क़ैदियों को फिर से जेल में बुलाया गया है.

इसके अलावा जिन लोगों को “राष्ट्रीय सुरक्षा” से जुड़े तथाकथित आरोपों या अपराधों के सिलसिले में पाँच वर्ष से ज़्यादा की सज़ा के तहत जेलों में बन्दी रखा गया था, उन्हें रिहाई की योजना से बाहर रखा गया था.

परिणामस्वरूप, ऐसे लोग जिन्हें मनमाने तरीक़े से बन्दी बनाया गया, जिनमें मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, दोहरी या विदेशी नागरिकता वाले लोग, पर्यावरणवादी, और जिन्हें अपने विचार व्यक्त करने या फिर अपने मानवाधिकारों का इस्तेमाल करने के लिये बन्दी बनाया गया था, उन्हें कोविड-19 वायरस के संक्रमण की चपेट में आने के ज़्यादा जोखिम में रख दिया गया है.

मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने कहा, “हम ये देखकर बहुत चिन्तित हैं कि कोविड-19 के संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिये जो उपाय किये गए, उन्हीं उपायों को कुछ ख़ास श्रेणी के क़ैदियों या बन्दियों के ख़िलाफ़ किस भेदभावपूर्ण तरीक़े से लागू किया गया है.”

प्रतीकात्मक मामला

सबसे ज़्यादा विवादित व प्रतीकात्मक मामला एक प्रसिद्ध वकील और महिलाधिकार कार्यकर्ता नसरीन सोतूदेह का है जिन्हें मानवाधिकारों से जुड़े उनके कार्यों के लिये मिश्रित रूप से 30 वर्ष की जेल की सज़ा सुनाई गई है. उनकी ज़िन्दगी के लिये बहुत ख़तरा बताया गया है क्योंकि वो दिल की बीमारियों की मरीज़ हैं और लम्बी भूख हड़ताल के कारण बहुत कमज़ोर भी हो गई हैं.

मिशेल बाशेलेट ने कहा, “एक बार फिर, हम अधिकारियों से नसरीन सोतूदेह को तुरन्त रिहा करने की अपील करते हैं, और उन्हें चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध कराए जाने से पहले एक बार उनके घर पर उनका स्वास्थ्य बेहतर करने का मौक़ा मिलना चाहिये.”

ईरान के शीराज़ का एक दृश्य. संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने मनमाने तरीक़े से बन्दी बनाए गए प्रदर्शनकारियों की रिहाई की माँग की है.
UNsplash/Ali Barzegarahmadi
ईरान के शीराज़ का एक दृश्य. संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने मनमाने तरीक़े से बन्दी बनाए गए प्रदर्शनकारियों की रिहाई की माँग की है.

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि अनेक वर्षों तक, वह अपने हमवतन ईरानियों के मानवाधिकारों के लिये साहसिक पैरोकार रही हैं, और अब ये सरकार की बारी है कि वो ख़ुद उनके अधिकारों का उल्लंघन ना करे, क्योंकि उन्होंने अन्य लोगों की ज़िन्दगी बेहतर बनाने के लिये बहुत प्रयास किये हैं.

असहमति कोई अपराध नहीं है

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने असहमति भरे विचार व्यक्त करने वाले लोगों को लगातार और व्यवस्थित तरीक़े से निशाना बनाए जाने पर भी गहरी चिन्ता व्यक्त की है. साथ ही अपने बुनियादी अधिकारों का इस्तेमाल करने को आपराधिकरण की श्रेणी में रखना भी बहुत चिन्ताजनक है.

“ये देखना हृदयविदारक है कि आपराधिक न्याय व्यवस्था को किस तरह सिविल सोसायटी की आवाज़ बन्द करने के एक औज़ार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.”

उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “असहमति व्यक्त करना कोई अपराध नहीं है. ये एक बुनियादी अधिकार है और जिसकी गारण्टी होनी चाहिये और उसे इस्तेमाल करने की आज़ादी भी.” 

उन्होंने ईरान सरकार का आहवान किया कि जिन लोगों को पर्याप्त क़ानूनी सहायता दिये बिना बन्दी बनाया गया और उन्हें जेल की सज़ा सुनाई गई, उन सभी मामलों की समीक्षा अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनी ज़िम्म्दारियों के तहत की जाए, जिनमें निष्पक्ष मुक़दमे का अधिकार भी शामिल है.

मिशेल बाशेलेट ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, राजनैतिक क़ैदियों, शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों और अपने विचार व्यक्त करने या अपने मानवाधिकारों का इस्तेमाल करने के लिये आज़ादी से वंचित किये गए तमाम अन्य लोगों की तुरन्त रिहाई की भी माँग की है. 

उन्होंने कहा कि इस तरह के अन्याय को ऐसे समय में ठीक करना और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है जब कोविड-19 ईरान की जेलों में क़हर बरपाने लगा है.