अपराधों और जनसंहारों को रोकने से एसडीजी में मिलती है मदद - आईसीसी

अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आसीसी) के अध्यक्ष चिले ईबोई-ओसूजी का कहना है कि जनसंहार, सशस्त्र लड़ाई-झगड़े और क्रूर व भीषण अपराध होने से रोकना टिकाऊ विकास में मददगार साबित होता है. आईसीसी जनसंहार, युद्धापराध, मानवता के विरुद्ध अपराधों और आक्रामकता से जुड़े अपराधों की जाँच-पड़ताल करता है और उनके लिये ज़िम्मेदार लोगों पर मुक़दमे चलाता है. साथ ही, शान्ति व न्याय की स्थापना करना और मज़बूत संस्थानों के निर्माण में, देशों की मदद करने में भी आईसीसी की अहम भूमिका है.
ये लक्ष्य, टिकाऊ विकास लक्ष्य 16 के लिये बहुत अहम हैं. ध्यान रहे कि तमाम देशों ने दुनिया भर में ग़रीबी मिटाने, एक ज़्यादा न्यायसंगत और शान्तिपूर्ण विश्व का निर्माण करने और साथ ही पृथ्वी ग्रह की हिफ़ाज़त करने के इरादे से 17 टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर सहमति व्यक्ति की हुई है.
यूएन न्यूज़ ने अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के अध्यक्ष चिले ईबोई-ओसूजी से बातचीत की शुरूआत इस सवाल के साथ की कि शान्ति व टिकाऊ विकास के लिये न्याय कितना महत्वपूर्ण है.
“सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये आईसीसी की प्रत्यक्ष अहमियत है, क्योंकि ये सशस्त्र लड़ाई-झगड़ों उनसे पैदा होने वाले अत्याचारों को टालने के लक्ष्य को लेकर काम करता है. न्याय सुनिश्चित किये बिना तो, लड़ाई-झगड़े, अत्याचार और भय बेलगाम हो जाएँगे.
इस बात को इस तरह भी कहा जा सकता है: अगर किसान अपने खेतों तक नहीं पहुँच सकते क्योंकि वहाँ सैनिक अभियान चल रहे हैं या बारूदी सुरंगे बिछी हुई हैं, तो सामाजिक-आर्थिक विकास किस तरह कामयाब हो सकता है? आर्थिक बुनियादी ढाँचा तबाह होने के कारण अगर कारोबारी लोग अपना कामकाज नहीं कर सकते? जहाँ, बच्चे स्कूल नहीं जा सकते, जहाँ, बहुमूल्य साधन शिक्षा व स्वास्थ्य देखभाल पर ख़र्च करने के बजाय हथियारों पर ख़र्च किये जाते हैं.
जहाँ निवेशक लड़ाई-झगड़ों और अस्थिरता के हालात से घबराते हैं. जहाँ, लोग हताहत होते हैं या अपने जीवन की सुरक्षा को लेकर भयभीत हैं. जहाँ, देश के सर्वश्रेष्ठ दिमाग़ वाले लोगों को सुरक्षित जीवन की ख़ातिर कहीं और भागने के लिये मजबूर कर दिया जाता है. और जहाँ, देशों को अपने पड़ोसी देशों में लड़ाई-झगड़ों और अशान्ति के कारण शरणार्थियों को संभालने में जद्दोजहद करनी पड़ती है.
युद्धों और लड़ाई-झगड़ों का आर्थिक विकास पर प्रभाव बयान नहीं किया जा सकता. विश्व बैंक द्वारा 2011 में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया था कि गृहयुद्ध का औसत नुक़सान मध्यम आकार की विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देश के 30 वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद के बराबर होता है. युद्ध या हिंसा के मुख्य रूप समाप्त होने जाने के बाद भी व्यापार को उबरने में 20 वर्ष से ज़्यादा का समय लग जाता है.”
“आईसीसी ऐसा करने के लिये उन अपराधों को रोकने पर ध्यान टिकाता है जो शान्ति, सुरक्षा और दुनिया की बेहतरी के लिये ख़तरा पैदा करते हैं: जनसंहार, युद्धापराध, मानवता के ख़िलाफ़ अपराध, और आक्रामकता के अपराध. हम एक ऐसी दुनिया देखने के लिये संघर्ष करते हैं कि जहाँ इस तरह के अत्याचारों और अपराधों को दण्डमुक्ति के साथ अंजाम ना दिया जा सके.
आईसीसी, अत्याचारी अपराधों को होने से रोकने में मदद करके, हिंसा और उससे सम्बन्धित मौतों को कम करने में योगदान करता है, जोकि टिकाऊ विकास लक्ष्य 17 का पहला उद्देश्य है. जिन देशों की राष्ट्रीय न्याय व्यवस्थाएँ अपराधों के लिये जवाबदेही सुनिश्चित करने के योग्य नहीं है, आईसीसी वहाँ क़ानून के शासन के सिद्धान्त लागू कराता है और पीड़ितों को न्याय दिलाने की व्यवस्था करता है. ये सभी टिकाऊ विकास लक्ष्य 16 के तहत महत्वपूर्ण लक्ष्य हैं. आईसीसी की व्यवस्था देशों में राष्ट्रीय न्यायिक संस्थाओं के क्षमता निर्माण को बढ़ावा देता है जोकि एसडीजी 16 का एक और उद्देश्य है.”
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“पीड़ित समुदायों में प्रभाव बहुत वास्तविक नज़र आता है. आईसीसी ने पीड़ितों को न्याय पाने के असाधारण मौक़े मुहैया कराए हैं – जोकि एसडीजी 16 का एक महत्वपूर्ण अंग है. पीड़ितों को क़ानूनी सहायता निशुल्क मुहैया कराई जाती है और पीड़ित लोगों को ख़ुद के साथ हुई ज़्यादतियों के लिये मुआवज़े की माँग करने का भी अधिकार है. ये पुनर्वास न्याय आईसीसी की क़ानूनी प्रक्रिया का स्वर्णिम ठप्पा है.
पीड़ितों के लिये आईसीसी का ट्रस्ट फण्ड अभी तक अपने सहायता कार्यक्रमों के ज़रिये लगभग 5 लाख पीड़ितों को शारीरिक व मनोवैज्ञानिक पुनर्वास सहायता मुहैया कराने के साथ-साथ उनकी सामाजिक व आर्थिक मदद भी कर चुका है.
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वैश्विक स्तर पर बात करें तो आईसीसी ने अपने दौर में सर्वाधिकारवाद की पकड़ ढीली की है. दमनकारी अब इस भ्रम में नहीं रह सकते कि वो अपनी क्रूरताओं के लिये जवाबदेही से बचने की आज़ादी में रह सकते हैं. पीड़ितों के लिये अब एक ऐसा स्थान मौजूद है जिसकी तरफ़ वो न्याय की उम्मीद के साथ देख सकते हैं. और दमनकारियों को हमेशा ये चिन्ता सताएगी कि आईसीसी उनके साथ, निकट या दूर भविष्य में क्या कर सकता है.
एक अन्य महत्वपूर्ण प्रभाव देशों की राष्ट्रीय क़ानूनी प्रणालियों पर हुआ है. रोम संविधि का पक्ष बनने वाले अनेक देशों ने अपने यहाँ राष्ट्रीय क़ानूनों में बदलाव करके अपने यहाँ ही न्यायालयों को जनसंहार, मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों और युद्धापराधों के मुक़दमे चलाने की इजाज़त दी है. ध्यान रहे कि आईसीसी की स्थापना रोम संविधि के तहत ही की गई थी.”
“सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि सभी देश इस संविधि के पक्ष या हिस्सा नहीं हैं. दुनिया के कुल सम्प्रभु देशों में से लगभग एक तिहाई आईसीसी के पक्ष हैं, अब भी लगभग 70 देश ऐसे हैं जिन्हें अभी रोम संविधि का पक्ष बनकर न्यायालय के साथ सहयोग करने की प्रतिबद्धता दिखानी है. इससे भी ज़्यादा ख़राब बात ये है कि कुछ देश जानबूझकर आईसीसी की अहमियत को नकारते हैं. हाल ही में, अमेरिका ने, आईसीसी की गतिविधियों व कार्रवाइयों को प्रभावित करने के इरादे से आईसीसी और उसके महत्वपूर्ण पदाधिकारियों के ख़िलाफ़ भीषण उपायों का सहारा लिया है, जिनमें आर्थिक प्रताड़ना भी शामिल है.
ये बिल्कुल अस्वीकार्य है और इसे रोका जाना होगा. इस तरह के हमलों के सन्दर्भ में देशों, क्षेत्रीय संगठनों, पेशेवर संगठनों, सिविल सोसायटी और नागरिकों से जो हमें मदद मिली है, हम उसके लिये उनके शुक्रगुज़ार हैं. और इनमें बहुत से अमेरिकी नागरिक भी हैं.”
“हर कोई, अपने देशों में सरकारों पर, रोम संविधि को समर्थन देने के लिये, लोकतान्त्रिक तरीकों से दबाव डालकर मदद कर सकते हैं. अगर आपका देश अभी तक रोम संविधि में शामिल नहीं हुआ है तो आप अपनी सरकार को उसमें शामिल होने के आग्रह करने वाला माहौल बना सकते हैं, और इस तरह अन्तरराष्ट्रीय न्याय को मज़बूत कर सकते हैं. आमजन आईसीसी के बारे में जागरूकता बढ़ाने में भी मदद सर सकते हैं, मसलन सोशल मीडिया पर. आमजन, पीड़ितों की मदद के लिये बनाए गए आईसीसी ट्रस्ट फ़ण्ड में दान भी कर सकते हैं.
हम, अत्याचारी अपराधों के लिये दण्डमुक्ति के ख़िलाफ़ एकजुट होकर, और एक साथ मिलकर, एक ज़्यादा न्यायपूर्ण दुनिया बना सकते हैं.