मावनवाधिकार परिषद के "आँख और कान" के सामने वित्तीय संकट

संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त स्वतन्त्र मानवाधिकर विशेषज्ञों ने आगाह करते हुए कहा है कि धन की कमी होने के कारण उनका कामकाज जोखिम में पड़ता नज़र आ रहा है. सोमवार को सदस्य देशों को जारी एक अपील में उन्होंने कहा कि उनके कामकाज के लिये समुचित धनराशि की उपलब्धता अनेक वर्षों से चिन्ता का कारण रही है, लेकिन कोविड-19 महामारी के संकट ने उनके कामकाज को और भी ज़्यादा कठिन बना दिया है.
सदस्य देशों ने संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट के लिये वादा की गई राशि का, अभी तक केवल 60 प्रतिशत हिस्सा ही अदा किया है.
UN experts voice concerns about impact of @UN funding crisis on their ability to effectively carry out their work.They call upon States to take urgent action to address the situation.Learn more: https://t.co/XfFjluWvM3 #StandUp4HumanRights🙌 pic.twitter.com/x6WXdbR6WK
UN_SPExperts
यूएन मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया संयोजन समिति ने एक वक्तव्य जारी करके कहा है कि परिणामस्वरूप, कुछ मानवाधिकार विशेषज्ञ ख़ुद को सौंपा गया काम सही तरीक़े से करने के योग्य नहीं हैं.
इस वक्तव्य में स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों को जिनीवा स्थित मानवाधिकार परिषद के “कान और आँख” कहा गया है.
वक्तव्य में बताया गया है कि मानवाधिकार विशेषज्ञों के कामकाज में देशों की यात्रा करना भी शामिल है जिनके दौरान वो वहाँ की सरकार व सिविल सोसायटी के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात करते हैं, मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ित लोगों से मिलते हैं और देशों की मानवाधिकार ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में मदद करने के लिये सिफ़ारिशें पेश करते हैं.
ये मानवाधिकार विशेषज्ञ स्वैच्छिक आधार पर काम करते हैं, वो संयुक्त राष्ट्र के नियमित कर्मचारी नहीं होते हैं, और उन्हें उनके कामकाज के लिये संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है. ये मानवाधिकार विशेषज्ञ, किसी सरकार या संगठन से भी स्वतन्त्र होते हैं.
मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया से सम्बद्ध संस्थाओं में 56 शासनादेश (Mandates) शामिल हैं जिनके तहत अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार स्थिति कवर की जाती है; इनमें, ऐसे समुदायों व आबादियों के अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति कवर करनी शामिल है जो ऐतिहासिक रूप से भेदभाव का शिकार रही हैं.
इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने सदस्य देशों को जारी एक अपील में गम्भीर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि अगर धन की कमी के इस संकट को हल करने के लिये तुरन्त कोई समाधान नहीं तलाश किया गया तो “एक संरक्षण खाई” बन सकती है.
उन्हें संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं को अपनी रिपोर्ट सौंपने, मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ितों के साथ सम्पर्क क़ायम रखने, और तत्काल महत्व के मामलों पर अपना कामकाज जारी रखने की अपनी ज़िम्मेदारी निभानी है.
कमेटी ने कहा है, “मानवाधिकारों से जुड़े हर क्षेत्र की ही तरह, कोविड-19 महामारी को देशों द्वारा उन शासनादेशों (Mandates) के लिये धन मुहैया कराने में नाकामी के लिये एक बहाने के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, जो ख़ुद सदस्य देशों ने ही स्थापित किये हैं.”
“इतना ही नहीं, स्वैच्छिक रूप में काम करने वाले इन मानवाधिकार विशेषज्ञों को अतिरिक्त ख़र्च के लिये धन अपनी ख़ुद की जेबों से देना पड़ा है, जिसमें इण्टरनेट की उपलब्धता और अन्य आवश्यक टैक्नॉलॉजी पर ख़र्च शामिल हैं.”
साथ ही उन्हें अपना कामकाज जारी रखने के लिये अपने बच्चों और अन्य सम्बन्धियों की देखभाल पर भी रक़म ख़र्च करनी पड़ती है.
कमेटी ने कहा है कि मानवाधिकार विशेष प्रक्रिया के शासनादेशों (Mandates) के तहत काम करने वाले कुछ मानवाधिकार विशेषज्ञों ने मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ितों की मदद करने के लिये अपनी सामान्य ड्यूटी की ज़रूरतों से भी आगे जाकर काम किया है.
सदस्य देश तब तक ये दावा नहीं कर सकते कि वो इन मानवाधिकार विशेषज्ञों को आवश्यक सहायता मुहैया करा रहे हैं, जब तक कि वो संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट के लिये अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को समय पर पूरा नहीं करते हैं.
धन की कमी के बारे में संयोजन समिति की ये पुकार ऐसे समय में आई है जब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (जिनीवा) और यूएन महासभा (न्यूयॉर्क) के सत्र चल रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) से जारी एक प्रैस विज्ञप्ति के अनुसार संयोजन समिति ने इन दोनों ही सत्रों में शिरकत करने वालों से आग्रह किया है कि वो इन महत्वपूर्ण विचार-विमर्शों के दौरान सदस्य देशों की पुकार को ध्यान से सुनें, और संयुक्त राष्ट्र के वित्तीय संकट का टिकाऊ हल निकालने के लिये तत्काल अहम क़दम उठाएँ.