वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

कोविड-19: महामारी के बाद की दुनिया में प्रवासी श्रमिकों का अनिश्चित भविष्य

थाईलैंड के बैंकॉक शहर में बर्मा के प्रवासी कर्मचारी.
IOM/Benjamin Suomela
थाईलैंड के बैंकॉक शहर में बर्मा के प्रवासी कर्मचारी.

कोविड-19: महामारी के बाद की दुनिया में प्रवासी श्रमिकों का अनिश्चित भविष्य

प्रवासी और शरणार्थी

कोविड-19 महामारी के कारण प्रवासन पर बड़े पैमाने पर रोक लग गई है, लेकिन क्या मौजूदा संकट ख़त्म होते ही लोगों का आवागमन फिर शुरू हो जाएगा? संयुक्त राष्ट्र श्रम एजेंसी (ILO) के एक वरिष्ठ अधिकारी गैरी रिनहार्ट यूएन न्यूज़ के साथ एक साक्षात्कार में बताते हैं कि अभी क्यों "सामान्य" हालात बहाल होने की सम्भावना नहीं है. साथ ही, हो सकता है कि प्रवासियों को एक बहुत ही अलग तरह के श्रम बाज़ार का सामना करना पड़े.

संयुक्त राष्ट्र श्रम एजेंसी (ILO) के वरिष्ठ अधिकारी, गैरी रिनहार्ट.

गैरी रिनहार्ट: जब कोविड-19 महामारी दुनिया भर में फैल गई तो बहुत से प्रवासियों को बिना सोचे-समझे अपने घरों को वापस भेज दिया गया, या उन्हें अपने दम पर गुज़र-बसर करने के लिये छोड़ दिया गया. प्रवासी जन जिन क्षेत्रों में काम करते हैं और जिन ख़राब परिस्थितियों में बहुत से कम कुशल प्रवासी रहते और काम करते हैं, उससे वायरस फैलने का ख़तरा बढ़ा. इसके उदाहरण हमने जर्मनी में माँस कारखानों के श्रमिकों और संयुक्त अरब अमीरात व सिंगापुर में निर्माण सैक्टर के श्रमिकों में देखे. 

यूएन न्यूज़: क्या आर्थिक संकट के कारण प्रवासियों का काम छूट जाने की ज़्यादा सम्भावना है?

गैरी रिनहार्ट: रोज़गार ख़त्म होने से अक्सर प्रवासी कामगारों पर सबसे अधिक मार पड़ती है, क्योंकि वे अधिकतर अनौपचारिक सैक्टर में काम करते हैं, जहाँ कामकाज छूटने या बीमार होने पर उन्हें सुरक्षा योजनाओं का लाभ नहीं मिलता. विशेषरूप से विकासशील देशों के प्रवासियों की यही स्थिति है और अस्थायी प्रवासियों जैसे अल्पकालीन श्रमिकों को अगर कहीं सामाजिक सुरक्षा मिलती भी है, तो वो भी ज़्यादातर चोट लगने पर मुआवज़ा मिलने या कुछ स्वास्थ्य लाभों तक ही सीमित होती है.

दुनिया के तीस से अधिक देशों के सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत से अधिक विदेशों से स्वदेशों को धन प्रेषण से आता है. विदेशों में रहने वाले या देशों के भीतर ही कामकाज करने वाले लगभग एक अरब प्रवासी श्रमिकों द्वारा घर भेजी गई यह धनराशि, कुल मिलाकर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश या आधिकारिक विकास सहायता से भी अधिक है. वर्ष 2019 में यह धनराशि लगभग एक अरब डॉलर का तीन-चौथाई भाग था. विश्व बैंक ने इसमें वर्ष 2020 के दौरान 20% की गिरावट का अनुमान लगाया है. विकासशील देशों में परिवारों पर जो असर हो रहा है, उससे अर्थव्यवस्थाएँ गहराई से प्रभावित हो रही हैं. 

म्याँमार के प्रवासी थाईलैण्ड के दक्षिणी हिस्से फांग न्गा में मछली पकड़ने की नावों और तटीय समुदायों के साथ काम करते हैं.
IOM/Thierry Falise
म्याँमार के प्रवासी थाईलैण्ड के दक्षिणी हिस्से फांग न्गा में मछली पकड़ने की नावों और तटीय समुदायों के साथ काम करते हैं.

यूएन न्यूज़: क्या वैश्विक अर्थव्यवस्था ठीक होने पर प्रवासियों को रोज़गार मिल पाएगा?

गैरी रिनहार्ट: महामारी की वजह से आपूर्ति श्रृँखलाओं में व्यवधान और बन्द सीमाएँ ज़्यादातर रोज़गारदाता कम्पनियों को प्रौद्योगिकी, स्वचालन और आर्टिफिशियल इण्टैलिजेन्स की ओर ले जाएँगी. एक लेखांकन कम्पनी EY द्वारा हाल ही में किये एक सर्वेक्षण में, 45 देशों में आधे से अधिक कम्पनी मालिकों ने कहा कि वे अपने व्यवसायों को स्वचालित करने की योजना को गति दे रहे हैं, और लगभग 41 प्रतिशत ने कहा कि वे स्वचालन बढ़ाने में निवेश कर रहे हैं, जिससे कोविड संकट के बाद की दुनिया में व्यवसाय करने के लिये तैयार रहें. 

प्रवासियों के लिये यह सम्भावित बुरी ख़बर है. दक्षिण पूर्व एशिया इसका एक उदाहरण है: इस क्षेत्र में ज़्यादातर कपड़ा कारख़ानों में देश के ही भीतर के प्रवासी श्रमिक काम करते हैं, या फिर थाईलैण्ड का झींगा छीलने का उद्योग, जहाँ अधिकतर म्याँमार प्रवासी काम करते हैं. 

इन उद्योगों में मानव श्रमिकों की आवश्यकता कम करने या ख़त्म करने की तकनीक पहले से मौजूद है.

रवाण्डा में यूएनडीपी के देश प्रतिनिधि स्टीफन रॉड्रिक्स (बाएँ से दूसरे) किगाली में रोबोट सौंपने के बाद रवाण्डा के सरकारी अधिकारियों व ज़ोराबॉट्स के प्रतिनिधि के साथ.
UN RWANDA
रवाण्डा में यूएनडीपी के देश प्रतिनिधि स्टीफन रॉड्रिक्स (बाएँ से दूसरे) किगाली में रोबोट सौंपने के बाद रवाण्डा के सरकारी अधिकारियों व ज़ोराबॉट्स के प्रतिनिधि के साथ.

यहाँ तक कि 1990 के दशक में शुरू हुई आउटसोर्सिंग से लाभ उठाने वाले फिलीपीन्स के कॉल सैण्टर भी प्रभावित हुए हैं. यह अनुमान लगाया गया है कि इन ‘नए’ कामकाजों में से 90 प्रतिशत तक स्वचालन से ख़तरे में हैं. मतलब ये कि कुल मिलाकर देश में दस लाख रोज़गार जो जीडीपी का लगभग सात प्रतिशत हिस्सा हैं, स्वचालन से जोखिम का सामना कर रहे हैं.

सबसे ज़्यादा असर पड़ेगा, निर्माण, खुदरा, स्वास्थ्य देखभाल और आतिथ्य-सत्कार क्षेत्रों पर. जापानी स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में रोबोटिक केयर वर्कर्स यानि ‘केयरबोट्स’ को भारी काम के लिये अधिकाधिक इस्तेमाल किया जा रहा है. शारीरिक श्रम वाले ये कार्य पारम्परिक रूप से प्रवासियों द्वारा किये जाते रहे हैं. 

खुदरा क्षेत्र आमतौर पर प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर करता है, लेकिन कोविड-19 महामारी से ऑनलाइन ख़रीदारी में भारी वृद्धि हुई है. आतिथ्य क्षेत्र में, स्वचालित प्रयोगों में रोबोट शामिल हैं जो जहाज़ों और हवाई अड्डों पर बारटेण्डिंग सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं और होटलों में मेहमानों के कमरों तक भोजन पहुँचाते हैं. चीन में, बहुत से होटल ऐप या ‘फ़ेस रिकॉगनीशन’ यानि चेहरे की पहचान के ज़रिये स्वचालित सुविधा दे रहे हैं. एलेक्सा-सक्षम स्पीकरों से होटल के कमरों में मेहमानों को दर्शनीय स्थलों की यात्रा के सुझाव और कर्मचारियों के सम्पर्क में आए बिना टूथब्रश जैसी चीज़ों के लिये दरख़्वास्त करने की सुविधाएँ दी जा रही हैं. 

कृषि में ज़हरीली पौध को नियन्त्रित करने और सटीक कटाई के लिये, ग्लोबल पोज़ीशनिंग प्रणाली (जीपीएस) तकनीक का उपयोग करते हुए रोबोट का उपयोग किया जा सकता है. महामारी ने बिना चालकों की कारों की तकनीक को बढ़ावा दे दिया है, जो जल्द ही टैक्सी ड्राइविंग में नज़र आएँगी. ये भी ऐसे ही एक काम हैं जिनमें बहुत से प्रवासी कार्यरत हैं.

फ्राँस की एक शिक्षक कोविड-19 महामारी के दौरान अपने छात्रों को दूरस्थ शिक्षा के ज़रिये पढ़ा रही हैं.
ILO Photo/Marcel Crozet
फ्राँस की एक शिक्षक कोविड-19 महामारी के दौरान अपने छात्रों को दूरस्थ शिक्षा के ज़रिये पढ़ा रही हैं.

पिछले कुछ महीनों ने हमें दिखाया है कि बहुत सारी प्रक्रियाएँ और बैठकें (जैसे डॉक्टरों से परामर्श, वीज़ा नवीनीकरण आदि) ऑनलाइन की जा सकती हैं. टैलीमेडिसिन में उछाल आया है और जैसे-जैसे वीडियो प्रौद्योगिकी में सुधार हो रहा है, बुख़ार, हृदय गति व रक्तचाप भी वैबकैम के माध्यम से नापे जा सकते हैं. कई तरह की शिक्षा भी डिजिटल मंचों के माध्यम से दी जा रही है और इण्टरनैट-आधारित शिक्षा सेवाओं में भारी वृद्धि हुई है.

वर्चुअल रियलिटी में सुधार, संवर्धित वास्तविकता, होलोग्राम तकनीक और सहयोग उपकरणों से यह और भी आसान बन जाएगा. बहुत से प्रशासनिक कार्य भी दूरस्थ रूप से किये जा सकते हैं: इनमें रोज़गार के अनेक नए अवसर हैं, जो प्रवासन की आवश्यकता को कम कर सकते हैं और दूरदराज़ की कामकाजी महिलाओं के लिये बिना जाए ही काम करने व उनकी प्रतिभा के अनुरूप अवसरों का उपयोग करने के द्वार खुल सकते हैं. यह उन क्षेत्रों के लिये ख़ासतौर पर महत्वपूर्ण होगा, जहाँ महिलाओं को घर से बाहर निकलकर काम करने के ख़िलाफ़ साँस्कृतिक पूर्वाग्रह मौजूद हैं: इससे महिलाओं को काम खोजने में मदद करने के नए मंच मिलेंगे और दूरस्थ कार्य के ज़रिये चुपचाप वो रोज़गार वाला कामकाज कर सकेंगी.

बाफ्टा विजेता फिल्म निर्माता और सीरिया के स्वास्थ्य कार्यकर्ता, हसन अक्कड़ अब ब्रिटेन में रह रहे हैं.
© Hassan Akkad
बाफ्टा विजेता फिल्म निर्माता और सीरिया के स्वास्थ्य कार्यकर्ता, हसन अक्कड़ अब ब्रिटेन में रह रहे हैं.

यूएन न्यूज़: क्या महामारी से प्रवासियों के प्रति दृष्टिकोण प्रभावित हुआ है?

गैरी रिनहार्ट: कोविड-19 के कारण भेदभाव भी बढ़ा है, ख़ासतौर पर एशियाई विरोधी भेदभाव में वृद्धि हुई है और कुछ लोकलुभावन राजनैतिक दलों ने अपने फ़ायदे के लिये प्रवासियों को बलि का बकरा बना दिया है. (यह हमने इटली, स्पेन ,ग्रीस, फ्राँस और जर्मनी में स्पष्ट देखा है).

लेकिन ज़रूरी नहीं है कि महामारी के बाद की दुनिया को लेकर सभी खबरें बुरी हों. ऐसे संकेत भी मिल रहे हैं कि इसमें प्रवासियों के लिये नए उत्पन्न करने और यहाँ तक कि बेहतर धारणाएँ भी बनने की उम्मीद है. 

उदाहरण के लिये, अनेक प्रवासी चिकित्सा में अग्रिम भूमिकाएँ निभा रहे हैं या सुपरमार्केट में अलमारियाँ लगाने और अस्पतालों की सफ़ाई जैसी आवश्यक सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं. इसके अतिरिक्त, हमने संकट से निपटने के लिये उच्च-आय वाले देशों में विदेशी-प्रशिक्षित और विदेशों से आए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर प्रतिबन्धों में कुछ नरमी देखी है: शरणार्थी डॉक्टरों को जर्मनी की मान्यता न होने के बावजूद चिकित्सा मदद के लिये बुलाया गया, वहीं ब्रिटेन में चिकित्सकों को तेज़ी से मान्यता दी गई. कुछ अमेरिकी राज्यों में विदेशी प्रशिक्षित डॉक्टरों को काम करने की अनुमति दी गई और ऑस्ट्रेलिया में विदेशी प्रशिक्षित नर्सों के लिये काम करने के घण्टों का दायरा बढ़ा दिया गया. 

वास्तव में, हाल की लोकलुभावन बयानबाज़ी के बावजूद, प्रवासियों के प्रति दृष्टिकोण लगातार सुधर रहा है. पिछले साल प्रकाशित 18 देशों के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 1994 में 63 प्रतिशत अमेरिकी नागरिक प्रवासियों को देश पर बोझ मानते थे, वहीं केवल 31 प्रतिशत मानते थे कि वो देश को मज़बूत कर सकते हैं. 

25 साल आगे जाकर देखें तो आँकड़े एकदम उलट हैं. दो में से एक अमेरिकी नागरिक अब प्रवासन का समर्थन करता है. इसी सर्वेक्षण के अनुसार, दुनिया के आधे प्रवासियों की मेज़बानी करने वाले शीर्ष प्रवासी गन्तव्य देशों के लोग मानते हैं कि अप्रवासी उनके देशों को मज़बूत करते हैं. ब्रिटेन, फ्राँस, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, कैनेडा, स्वीडन और जर्मनी के अधिकाँश लोग इस कथन से सहमत हैं कि 'प्रवासी मेरे देश को मजबूत बनाते हैं.’

हो सकता है कि इस संकट का एक परिणाम हो - वैश्विक कार्यस्थल में अधिक समावेश, अधिक विविधता और कई अन्य कारकों में सुधार - जो बेहतर आजीविका की तलाश में लोगों को उनके घरों और देशों को छोड़ने के लिये प्रेरित करते हैं.

प्रवासी श्रमिक और कोविड-19: 

•    भीड़-भरे आश्रयस्थलों में रहने वाले कम-कुशल श्रमिक प्रवासी, महामारी से बेहद प्रभावित हुए हैं: 19 जून 2020 तक सिंगापुर में जिन कोविड-19 मामलों की पुष्टि की गई थी, उनमें 95 प्रतिशत से अधिक प्रवासी थे.
•    दुनिया भर में 90 फीसदी लोग प्रवासी श्रमिकों द्वारा भेजे गए धन प्रेषण पर निर्भर हैं. आर्थिक संकट ने इस धन के प्रवाह को विशेष रूप से प्रभावित किया है.
•    प्रवासियों को रोज़गार खोने और संक्रमित होने के जोखिम ज़्यादा होने के कारण, बहुत से श्रमिक अपने मूल देश वापस लौट रहे हैं: दुनिया भर में सबसे अधिक प्रवासी भेजने वाले देश भारत ने 3 सितम्बर तक दूसरे देशों में फँसे अपने 1 करोड़ 30 लाख से अधिक प्रवासियों की वापसी के इन्तज़ाम किये थे.