ओज़ोन सन्धियाँ: राजनैतिक इच्छाशक्ति के प्रेरणादायक उदाहरणों की स्रोत
संयुक्त राष्ट्र ने पृथ्वी के चारों तरफ़ सुरक्षात्मक परत – ओज़ोन को बहाल करने के लिये हुए तमाम वैश्विक समझौतों की कामयाबी को पहचान देने के लिये बुधवार को अन्तरराष्ट्रीय ओज़ोन परत संरक्षा दिवस मनाया है.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस दिवस के मौक़े पर दिये एक सन्देश में 1985 में वजूद में आई ओज़ोन परत सुरक्षा सन्धि, उस सन्धि के माँट्रियॉल प्रोटोकॉल और उस प्रोटोकॉल में हुए किगाली संशोधन की सराहना की.
“ओज़ोन सम्बन्धी सन्धियाँ प्रेरणादायक उदाहरण पेश करते हुए स्पष्टता से नज़र आती हैं जहाँ राजनैतिक इच्छा दिखती है, और ये जज़्बा भी कि जब हम सभी के हित के लिये कुछ भी मिलजुलकर हासिल करना चाहते हैं तो कोई सीमा या बाधा आड़े नहीं आती.”
महासचिव ने कहा, “हमने ओज़ोन परत को बचाने के लिये जिस तरह मिलजुलकर काम किया है, आइये, उसी एकजुटता की भावना से पृथ्वी ग्रह के नुक़सान की भरपाई करें, पूरी मानवता की भलाई के लिये एक ज़्यादा समानता वाला और ख़ुशहाल भविष्य बनाने के लिये एकजुटता अपनाएँ.”
महासचिव ने कोरनावायरस महामारी और उसके विनाशकारी सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के मद्देनज़र और ज़्यादा मज़बूत, लचीले वे सहनशील समाजों का निर्माण करने का आहवान किया.
यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, “हम महामारी के सामाजिक व आर्थिक विनाशकारी प्रभावों से जैसे-जैसे वैश्विक पुनर्बहाली की तरफ़ नज़र टिकाए हुए हैं, हमें ज़्यादा मज़बूत, लचीले व सहनशील समाजों का निर्माण करने के लिये प्रतिबद्धता दिखानी होगी.”
उन्होंने कहा, “ये बहुत ज़रूरी है कि हम अपने प्रयास जलवायु परिवर्तन की चुनौती का मुक़ाबला करने, प्रकृति व पारिस्थितिकी तन्त्र को बचाने में लगाएँ जो हमारा वजूद बनाए रखने में मददगार हैं.”
ओज़ोन परत की संरक्षा के लिये वियेना सन्धि वर्ष 2020 में अपनी 35वीं वर्षगाँठ मना रही है. पृथ्वी के चारों तरफ़ मौजूद सुरक्षात्मक परत – ओज़ोन में हुए छेद को भरने के प्रयासों की दिशा में ये सन्धि पहला क़दम रही है.
देशों ने, 1987 में, इस सन्धि के तहत ही मॉट्रियॉल प्रोटोकॉल पारित किया जिसके तहत एयरोसोल्स और ठण्डा करने वाले उपकरणों में इस्तेमाल होने वाली गैसों को बदलने के प्रति संकल्प व्यक्त किया गया.
इन्हीं गैसों के कारण ओज़ोन परत में छेद हुआ था. अभी तक इन गैसों का लगभग 99 प्रतिशत हिस्सा बदल दिया गया है जिसकी बदौलत ओज़ोन परत की मरम्मत करने में मदद मिली है.
महासचिव एंतोनियो गुटेरश ने कहा कि अलबत्ता, मॉट्रियॉल प्रोटोकॉल का काम अभी पूरा नहीं हुआ है.
“माँट्रियॉल प्रोटोकॉल में किये गए किगाली संशोधन के ज़रिये अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ठण्डा करने वाली उन गैसों का विकल्प तलाश करने की कोशिश कर रहा है जिनके कारण जलवायु में व्यवधान की गम्भीर चुनौती सामने आई है.”
उन्होंने कहा कि अगर किगाली संशोधन को पूरी तरह लागू किया जाता है तो वैश्विक तापमान में 0.4 डिग्री सेल्सियस की कमी हो सकती है. मैं उन 100 पक्षों को मुबारकबाद देता हूँ जो धरातल पर असल काम करके बदलाव लाने में नेतृत्व कर रहे हैं.
ओज़ोन क्या है?
ओज़ोन दरअसल ऑक्सीजन का एक रूप है जिसका रासायनिक फ़ॉर्मूला O3 है. वही ऑक्सीजन जो हम साँस के ज़रिये अन्दर खींचते हैं और जो हमारे रक्त का जीवनदायी तत्व है, साथ ही ऑक्सीजन पृथ्वी पर जीवन की मौजूदगी के लिये बहुत ही ज़रूरी हिस्सा है जिसे O2 कहा जाता है.
ओज़ोन परत का ज़्यादातर हिस्सा पृथ्वी के हर ओर कुछ ऊँचाई वातावरण में स्थित है, ये पृथ्वी की सतह से 10 से 40 किलोमीटर ऊपर है. इस क्षेत्र को स्ट्रैटोस्फ़ेयर कहा जाता है जिसमें वातावरण में मौजूद ओज़ोन का लगभग 90 फ़ीसदी हिस्सा मौजूद है.
वैसे तो ओज़ोन, पूरे वातावरण का मामूली हिस्सा भर है, मगर पृथ्वी पर जीवन की मौजूदगी और वजूद के लिये ओज़ोन बहुत-बहुत ज़रूरी है क्योंकि ओज़ोन परत पृथ्वी ग्रह को सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट (यूवी-बी) किरणों से सुरक्षित रखती है जो जैविक रूप से बेहद ख़तरनाक़ होती हैं.
अन्तरराष्ट्रीय दिवस
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1994 में 16 सितम्बर को अन्तरराष्ट्रीय ओज़ोन परत सुंरक्षा दिवस घोषित किया था. ये दिवस ओज़ोन परत को नुक़सान पहुँचान वाले पदार्थों को बदलने के बारे में 1987 में हुए माँट्रियॉल प्रोटोकॉल पर दस्तख़त किया जाने की याद में शुरू किया गया.
वर्ष 2020 में इस अन्तरराष्ट्रीय दिवस की थीम रही – “जीवन के लिये ओज़ोन”.
ये थीम याद दिलाती है कि ओज़ोन ना केवल पृथ्वी पर जीवन की मौजूदगी के लिये अति महत्वपूर्ण है, बल्कि हमें भविष्य की पीढ़ियों की ख़ातिर भी ओज़ोन की संरक्षा के लिये प्रयास जारी रखने होंगे.