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राहत का अभाव 'घातक' साबित हुआ - समुद्र में फँसे अनेक रोहिंज्या शरणार्थियों की मौत

म्याँमार से बचकर भागे रोहिंज्या शरणार्थी बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में भी अक्सर मौसम की मार जैसी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं.
IOM/Mohammed
म्याँमार से बचकर भागे रोहिंज्या शरणार्थी बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में भी अक्सर मौसम की मार जैसी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं.

राहत का अभाव 'घातक' साबित हुआ - समुद्र में फँसे अनेक रोहिंज्या शरणार्थियों की मौत

प्रवासी और शरणार्थी

अंडमान सागर में छह महीने से ज़्यादा समय तक फँसे रहने के बाद तीस से ज़्यादा रोहिंज्या शरणार्थियों की मौत होने की आशंका जताई गई है. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने कहा है मुश्किल हालात से जूझ रहे लोगों को शरण देने के लिये देशों की सामूहिक अनिच्छा के परिणामस्वरूप यह घटना हुई है. 

फ़रवरी 2020 में क़रीब 330 शरणार्थी दक्षिणी बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में यात्रा पर निकले थे.

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विकट परिस्थितियों में समुद्र में महीनों तक फँसे रहने के बाद लगभग 300 लोग सोमवार सुबह इण्डोनेशिया के आचेह के उत्तरी तट पर उतरे. लेकिन माना जा रहा है कि 30 से ज़्यादा लोगों की समुद्र में ही मौत हो गई. 

एशिया और प्रशान्त क्षेत्र में यूएन एजेंसी की निदेशक इंद्रिका रत्वाटे ने अपने बयान में कहा, "छह महीने से भी ज़्यादा समय से देशों द्वारा कार्रवाई की सामूहिक अनिच्छा ने कठिनाईयाँ को और बढ़ाया है.”

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी के मुताबिक इस तरह की त्रासदियों को रोकने के लिये इस क्षेत्र के लिये स्थापित 'बाली प्रक्रिया' के तहत भी लोगों की ज़िन्दगियों को नहीं बचाया जा सके. बताया गया है कि शरणार्थियों के समूह ने यात्रा के दौरान बार-बार तटों पर उतरने के प्रयास किये लेकिन वो ऐसा करने में विफल रहे. 

इंद्रिका रत्वाटे ने कहा, "शरणार्थियों ने बताया कि अनेक लोगों की तो यात्रा के दौरान ही मौत हो गई. UNHCR और अन्य एजेंसियों ने बार-बार चेतावनी दी थी कि यदि समुद्र में फँसे शरणार्थियों को तुरंत, सुरक्षित तरीक़े से उतरने की अनुमति नहीं दी गई तो इसके गम्भीर परिणाम होंगे. अंंतत:, पिछले छह महीनों की निष्क्रियता घातक सिद्ध हुई है.”

आचेह में यूएन एजेंसी के कर्मचारी  शरणार्थियों की ज़रूरतों का आकलन करने के लिए स्थानीय अधिकारियों की मदद कर रहे हैं.

तात्कालिक प्राथमिकता के रूप में ज़रूरी प्राथमिक चिकित्सा और इलाज़ मुहैया कराया जा रहा है. इसके साथ-साथ इण्डोनेशिया के मानक स्वास्थ्य उपायों के अनुसार सभी का कोविड-19 का परीक्षण भी किया जाएगा. 

बचाए गए लोगों में दो-तिहाई महिलाएँ और बच्चे हैं.

वादे 'अधूरे' रह गये 

'बाली प्रक्रिया' की शुरुआत वर्ष 2002 में इण्डोनेशिया के बाली में हुए एक क्षेत्रीय मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान हुई जिसका उद्देश्य तस्करी, मानव तस्करी और उनसे सम्बन्धित अन्तरराष्ट्रीय अपराधों से जुड़े व्यावहारिक मुद्दों के समाधान की तलाश करना था.

पाँच साल पहले बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर में एक संकट खड़ा हो गया था जब समुद्र में जोखिम भरे हालात में फँसे हजारों शरणार्थियों और प्रवासियों को जीवनरक्षक सहायता और राहत नहीं मिल पाई थी.  

उस संकट के दौरान बाली प्रक्रिया में शामिल देशों ने इस तरह की क्षेत्रीय चुनौतियों के लिए एक विश्वसनीय और सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता को स्वीकार किया था. 

यूएन एजेंसी की एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के लिये निदेशक ने कहा कि जिस उद्देश्य से इस क्षेत्र की सरकारों ने यह तंत्र बनाया था उस प्रतिबद्धता का वादा अधूरा रह गया है. 

"एक व्यापक और निष्पक्ष कार्रवाई के लिए यह ज़रूरी है कि पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में ठोस प्रयास हों और ज़िम्मेदारी बाँटी जाए ताकि जो देश संकटग्रस्त शरणार्थियों को अपने तट पर उतरने की अनुमति दें उन पर एकतरफ़ा बोझ ना पड़े."

एक जटिल शरणार्थी संकट

ये संकट अगस्त 2017 में तब शुरू हुआ जब उत्तरी म्याँमार में दूरदराज़ की पुलिस चौकियों पर कथित रूप से रोहिंज्या समुदाय के लोगों ने हमला किया.

इसकी जवाबी कार्रवाई में मुख्य रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक रोहिंज्या समुदाय  को व्यवस्थित रूप से निशाना बनाया गया जिसे संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारियों सहित मानवाधिकार समूहों ने जातीय सफ़ाये की कोशिश क़रार दिया.

इसके बाद के हफ्तों में सात लाख से अधिक रोहिंज्याओं ने जान बचाने के लिये घरों से भागकर बांग्लादेश में शरण ली - इनमें बड़ी संख्या में बच्चे, महिलाएँ और बुज़ुर्ग थे. 

इस व्यापक पलायन से पहले भी अतीत में हुए विस्थापन के परिणामस्वरूप दो लाख से अधिक रोहिंज्या शरणार्थी बांग्लादेश में रह रहे थे.