बीजिंग सम्मेलन: 25 वर्ष बाद भी उस एक्शन मंच की महत्ता नहीं हुई है कम

1995 में हुए बीजिंग महिला सशक्तिकरण सम्मलेन के बाद से वैसे तो महिलाओं की स्थिति में काफ़ी सुधार हुआ है लेकिन टिकाऊ विकास लक्ष्यों के हर मोर्चे पर अब भी वो बहुत पीछे हैं.
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1995 में हुए बीजिंग महिला सशक्तिकरण सम्मलेन के बाद से वैसे तो महिलाओं की स्थिति में काफ़ी सुधार हुआ है लेकिन टिकाऊ विकास लक्ष्यों के हर मोर्चे पर अब भी वो बहुत पीछे हैं.

बीजिंग सम्मेलन: 25 वर्ष बाद भी उस एक्शन मंच की महत्ता नहीं हुई है कम

महिलाएं

महिलाओं की प्रगति और पुरुषों के साथ उनकी बराबरी सुनिश्चित करने के मुद्दे पर हुए ऐतिहासिक बीजिंग विश्व सम्मेलन को 25 वर्ष गुज़र जाने के बाद भी उसकी महत्ता कम नहीं हुई है. महिला प्रगति व सशक्तिकरण के लिये काम करने वाली यूएन संस्था – यूएन वीमैन की कार्यकारी निदेशक फ़ूमज़िले म्लाम्बो न्गक्यूका ने शुक्रवार को ये बात ध्यान दिलाई. 

कार्यकारी निदेशक ने एक वक्तव्य में कहा कि चीन की राजधानी बीजिंग में हुए चौथे विश्व महिला सम्मेलन पर नज़र डालने से पता चलता है कि “हमने सामूहिक सक्रियता की ताक़त व प्रभाव बढ़ते देखा है, साथ ही साझी समस्याओं का साझा समाधान तलाश करने के प्रयासों में बहुपक्षवाद व साझेदारी की महत्ता भी याद दिलाई गई है.”

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बदलाव के लिये अहम ढाँचा

1995 में चीन की राजधानी बीजिंग में हुए विश्व महिला सम्मेलन में हुए विचार-विमर्श के बाद बीजिंग कार्रवाई मंच व घोषणा-पत्र वजूद में आया था.

इसमें महिलाओं व लड़कियों के मानवाधिकारों पर अमल करने के लिये 12 महत्वपूर्ण क्षेत्रो में बदला का एजेण्डा पेश किया गया था. म्लाम्बो न्गक्यूका ने कहा कि उस एजेण्डे की सतत प्रासंगिकता को आज के दौर में और भी ज़्यादा अहम माना जा रहा है.  

बीजिंग मंच में एक ऐसी दुनिया की कल्पना की गई जिसमें प्रत्येक महिला व लड़की अपनी स्वतन्त्रताओं का आसानी से प्रयोग करते हुए अपने मानवाधिकारों का आनन्द उठा सके. मसलन, हिंसा से मुक्त जीवन जीना, स्कूली शिक्षा हासिल करना, निर्णय प्रक्रिया में शिरकत करना और एक जैसे कामकाज के लिये समान आमदनी हासिल करना. 

यूएन वीमैन की इस महत्वपूर्ण समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग एक चौथाई शताब्दी बाद, एक भी देश बीजिंग मंच में व्यक्त किये गए संकल्पों पर अमल नहीं कर पाया है. 

अहम प्रगति ख़तरें में

यूएन वीमैन ने कहा है कि बीजिंग सम्मेलन की 25 वीं वर्षगाँठ हमें अपनी आँखें खोलने देने की याद दिलाने वाली एक घण्टी के समान है और यह वर्षगाँठ ऐसे समय में मनाई जा रही है जब लैंगिक असमानता के प्रभावों को नकारा नहीं जा सकता.

“शोध दिखाते हैं कि कोविड-19 महामारी ने पहले से ही जारी असमानताएँ और ज़्यादा गहरी कर दी हैं और सामूहिक प्रयासों से दशकों में हासिल की गई प्रगति और फ़ायदों को ही ख़तरे में डाल दिया है. नए आँकड़े बताते हैं कि महामारी के कारण लगभग चार करोड़ 70 लाख महिलाओं और लड़कियों का जीवन स्तर ग़रीबी रेखा से नीचे जा सकता है.”

यूएन वीमैन प्रमुख ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दूरगामी सामाजिक व आर्थिक प्रभावों में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा में ख़ासी बढ़ोत्तरी होना शामिल है. इससे पिछले 25 वर्षों के दौरान महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाने के प्रयासों में हासिल की गई महत्वपूर्ण प्रगति पलट जाने का ख़तरा उत्पन्न हो गया है.

उन्होंने कहा, “साथ ही कोविड-19 महामारी से निपटने के प्रयासों में महिलाओं के नेतृत्व की असाधारण क्षमता और महत्व सबके सामने है."

"ये भी ध्यान देने योग्य है कि महिलाओं के कठिन परिश्रम, महिला आन्दोलन ने विश्व को किस हद तक टिकाऊ बनाया है, इसमें घरेलू कामकाज से लेकर, मानवाधिकारों व राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के लिये जद्दोजहद शामिल हैं.”

नेपाल में एक महिला पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता की पुकार लगाते हुए
©World Bank/Stephan Bachenheimer
नेपाल में एक महिला पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता की पुकार लगाते हुए

फ़ूमज़िले म्लाम्बो न्गक्यूका ने कहा कि साल 2021 तक 43 करोड़ 50 लाख महिलाओं और लड़कियों के अत्यन्त ग़रीबी के गर्त में चले जाने का ख़तरा है.

इसके मद्देनज़र उन्होंने तमाम सरकारों, स्थानीय प्रशासनों, कारोबारी संगठनों और और उद्योग जगत का आहवान किया है कि ऐसा नहीं होने देने के लिये भरपूर प्रयास किये जाएँ.

फ़ूमज़िले म्लाम्बो न्गक्यूका ने कहा कि ये बड़े फेरबदल किये जाने का अवसर है. हमारी दुनिया में जीवन बेहतर बनाने के लिये इस्तेमाल की जाने वाली आर्थिक व नीति सहायताओं में महिलाओं व बच्चों को प्राथमिकता पर रखना होगा.

नेतृत्व की महत्ता

नेताओं की राजनैतिक इच्छा शक्ति काफ़ी बड़ा बदलाव ला सकती है. यूएन वीमैन प्रमुख ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के आगामी सत्र में शिरकत करने वालों से कहा कि वो लैंगिक समानता और तमाम महिलाओं व लड़कियों को सशक्त बनाने के प्रयास तेज़ करने में अपनी ताक़त का इस्तेमाल करें.

उन्होंने कहा, “कोविड-19 से निपटने के मानवीय प्रयास, आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज, कामकाजी दुनिया में बड़े बदलाव और सामाजिक व भौतिक दूरियाँ बनाने की ऐहतियात को एकजुटता के साथ लागू करना, ये सभी क़दम महिलाओं और लड़कियों के लिये एक बेहतर दुनिया बनाने के अच्छे अवसर भी हैं.”

कामयाबी का नुस्ख़ा

संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2019 में, एक वैश्विक अभियान शुरू किया था जिसका नाम था - Generation Equality: Realizing Women’s Rights for an Equal Future, यानि समान पीढ़ी: एक समानता वाले भविष्य के लिये महिलाओं के अधिकारों को मूर्त रूप देना. इस अभियान में सरकारों से सिविल सोसायटी, शिक्षाविदों और निजी सैक्टर के साथ नए संकल्प व नई साझेदारियाँ शुरू करने का आहवान किया गया है. 

बीजिंग सम्मेलन की 25 वीं वर्षगाँठ मनाने के लिये 1 अक्टूबर को एक उच्चस्तरीय बैठक होगी जिसे महासभा के अध्यक्ष आयोजित कर रहे हैं. सदस्य देशों को एक लैंगिक रूप से समान दुनिया बनाने की दिशा में उठाए गए क़दमों व संकल्पों के बारे में जानकारी इस मीटिंग में पेश करने का मौक़ा मिलेगा.

यूएन महिला संस्था की प्रमुख ने कहा कि हम सभी को 1995 में विश्व द्वारा महिलाओं व लड़कियों से किये गए वायदों को फिर से पक्का करना होगा.

“हम सभी को बीजिंग सम्मेलन की मिशन भावना से प्रेरणा लेकर पीढ़ियों व सैक्टरों के साथ नई साझेदारियाँ बनानी होंगी जिनके ज़रिये महिलाओं व विश्व की ख़ातिर एक संगठित बदलाव के लिये इस मौक़े का सदुपयोग किया जा सके.”