कोविड-19: शरणार्थी बच्चों की शिक्षा पर विनाशकारी असर से निपटने की पुकार
कोरोनावायरस संकट काल में दुनिया के हर देश में शिक्षा हासिल करना बच्चों के लिये चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है लेकिन शरणार्थी बच्चे इससे ख़ास तौर पर प्रभावित हुए हैं. शरणार्थी मामलों की संयुक्त राष्ट्र एजेंसी (UNHCR) ने गुरुवार को एक नई रिपोर्ट पेश करते हुए आशंका जताई है कि बड़ी संख्या में शरणार्थी बच्चे स्कूल बन्द होने, ज़्यादा फ़ीस होने या घर पर रहकर पढ़ाई करने के लिए टैक्नॉलॉजी तक पहुँच ना होने के कारण अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख पाएँगे.
शरणार्थियों की शिक्षा के लिये एकजुट प्रयासों पर केन्द्रित यूएन एजेंसी की रिपोर्ट ‘Coming Together for Refugee Education’ गुरुवार को पेश की गई.
An unfortunate probability: for countries where refugee girls’ overall secondary enrolment was already less than 10%, all girls are at risk of dropping out for good.This will impact generations to come. via @MalalaFund. https://t.co/Dkcb2zIXwI pic.twitter.com/XtCWeATjcZ
Refugees
रिपोर्ट दर्शाती है कि कोविड-19 के कारण शरणार्थियों की शिक्षा पर हुए विनाशकारी असर से निपटने के लिये अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ने तत्काल निडर क़दम नहीं उठाए तो बेहद संवेदनशील हालात में रहने को मजबूर लाखों युवा शरणार्थियों के भविष्य पर मँडराते बादल और भी स्याह हो जाएँगे.
यूएन एजेंसी के प्रमुख फ़िलिपो ग्रैन्डी ने कहा है, “इतना सब कुछ सह लेने के बाद उन्हें शिक्षा से वंचित करके हम उनसे उनका भविष्य नहीं छीन सकते.”
“वैश्विक महामारी से उपजी इतनी विकराल चुनौतियों के बावजूद, शरणार्थियों और मेज़बान समुदायों के लिये व्यापक अन्तरराष्ट्रीय समर्थन के ज़रिये हम अभिनव तरीक़ों का विस्तार सकते हैं ताकि हाल के सालों में शरणार्थियों की शिक्षा में हुई अहम प्रगति के सहेजा जा सके.”
ये रिपोर्ट वर्ष 2019 में उन 12 देशों से जुटाये गए आँकड़ों के आधार पर तैयार की गई है जहाँ विश्व में शरणार्थी बच्चों की आधी आबादी रहती है.
रिपोर्ट के मुताबिक प्राथमिक स्कूल के स्तर पर 77 फ़ीसदी शरणार्थी बच्चे स्कूलों में पंजीकृत हैं, लेकिन माध्यमिक स्तर पर यह आँकड़ा गिरकर 31 फ़ीसदी और हाई स्कूल में महज़ तीन फ़ीसदी रह जाता है.
ये आँकड़े वैश्विक औसत से बहुत पीछे हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में हुई प्रगति को भी बयाँ करते हैं.
उदाहरणस्वरूप, माध्यमिक शिक्षा में पंजीकरण बढ़ा है और लाखों शरणार्थी बच्चे नए सिरे से स्कूल जा रहे हैं - वर्ष 2019 में ही यह आँकड़ा 2 फ़ीसदी बढ़ा है.
लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इस प्रगति पर जोखिम पैदा हो गया है.
टिकाऊ विकास एजेण्डा का चौथा लक्ष्य सभी के लिये समावेशी व न्यायसंगत गुणवत्तापरक शिक्षा सुनिश्चित करने पर आधारित है लेकिन कोरोनावायरस संकट से इस दिशा में प्रयासों को गहरा झटका लगा है.
शरणार्थी लड़कियाँ ज़्यादा प्रभावित
यूएन एजेंसी के मुताबिक शरणार्थी लड़कों की तुलना में लड़कियों की शिक्षा तक पहुँच पहले से ही कम है. माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर लड़कों की तुलना में शरणार्थी लड़कियों का पंजीकरण घटकर आधा रह जाता है और कोविड-19 इस अन्तर को और ज़्यादा गहरा कर सकता है.
मलाला कोष संगठन ने अनुमान लगाया है कि कोविड-19 के कारण सैकेण्डरी स्कूल में शरणार्थी लड़कियों की आधी आबादी इस महीने स्कूल खुलने पर भी कक्षाओं में नहीं लौट पाएगी.
जिन देशों में शरणार्थी लड़कियों का माध्यमिक स्तर पर पंजीकरण पहले से ही दस फ़ीसदी से कम था, वहाँ सभी लड़कियों की शिक्षा हमेशा के लिये छूट जाने का ख़तरा है.
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यह एक ऐसा गम्भीर संकट है जिसके दुष्परिणाम कई पीढ़ियों को भुगतने पड़ सकते हैं.
“शिक्षा ना सिर्फ़ एक मानवाधिकार है बल्कि शरणार्थी लड़कियों, उनके परिवारों और समुदायों को शिक्षा से मिलने वाले संरक्षण और आर्थिक लाभ भी स्पष्ट हैं.”
यूएन एजेंसी के उच्चायुक्त ने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय शरणार्थी लड़कियों को शिक्षा से मिलने वाले अवसर प्रदान करने में विफल रहने का जोखिम मोल नहीं ले सकता.
इस रिपोर्ट में सरकारों, निजी क्षेत्र, नागरिक समाज और अन्य महत्वपूर्ण पक्षकारों से एक साथ मिलकर ऐसे समाधान तलाश करने की पुकार लगाई गई है जिनसे राष्ट्रीय शिक्षा प्रणालियों को मज़बूत बनाया जा सके और शिक्षा के लिये ज़रूरी वित्तीय संसाध जुटा पाना सम्भव हो.