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खेतों में आग: बदली-बदली सी है फ़िजाँ, बदलनी होंगी आदतें भी

भारत की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण लोगों को साँस लेने में कठिनाइ होती है और 2019 में तो हज़ारों स्कूल भी बन्द करने पड़े थे.
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भारत की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण लोगों को साँस लेने में कठिनाइ होती है और 2019 में तो हज़ारों स्कूल भी बन्द करने पड़े थे.

खेतों में आग: बदली-बदली सी है फ़िजाँ, बदलनी होंगी आदतें भी

जलवायु और पर्यावरण

वर्ष 2019 में, भारत की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास, इतना धुँधलका छा गया था कि विमानों की उड़ानों का रास्ता बदलना पड़ा, हज़ारों स्कूल बन्द करने पड़े और देश की राजधानी में लोगों को या तो घरों के भीतर ही रहने या फिर फ़ेस मास्क पहनने की सलाह दी गई. सवाल है कि आख़िर ऐसी नौबत क्यों आई?

ऐसी ख़बरे सुनने पर प्रतिक्रिया ये होना स्वाभाविक लगता है कि शायद किसी वायरस संक्रमण या बीमारी से बचने के लिये ऐहतियाती उपायों के तहत ये क़दम उठाए गए होंगे.

मगर, ऐसा दरअसल राजधानी दिल्ली की फ़िज़ाँ में प्रदूषण की मोटी चादर जम जाने के कारण उसकी तोड़ निकालने के रास्ते तलाश करने की जद्दोजहद में ऐसा किया गया. इस प्रदूषण ने दिल्ली वासियों के स्वास्थ्य को ख़तरे में डाल दिया, इसके कारण इतना गहरी धुँध छा गई कि दिखाई देना बन्द हो गया, और इसी कारण हवाई यात्रा एक जोखिम बन गई.

भारत इस वर्ष फिर ऐसे ही किसी संकट का सामना करने की तैयारी कर रहा है जब फ़िज़ाँ ज़हरीली हो जाती है.

भारत के उत्तरी इलाक़ों में किसान शरद ऋतु या पतझड़ के मौसम में नई फ़सल के लिये तैयारियों के तहत पुरानी फ़सल के बचे-खुचे तत्वों को खेतों में ही जला देते हैं.

भारत की राजधानी दिल्ली में 2019 में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक स्तर पर पहुँच गया.
UN News/Anshu Sharma
भारत की राजधानी दिल्ली में 2019 में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक स्तर पर पहुँच गया.

इस आग और लपटों से निकलने वाला धुआँ राजधानी दिल्ली की फ़िज़ाँ को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानकों से 14 गुना ज़्यादा तक ख़तरनाक बना देता है. ऐसे में देश के एक बहुत बड़े हिस्से में कोहरे की इतनी मोटी चादर ढक जाती है जिसे अन्तरिक्ष से भी सानी से देखा जा सकता है.

बेशक, भारत में ये स्थिति बहुत हैरान करने वाली है, मगर ये कोई अकेला मामला नहीं है. 

दुनिया के अन्य हिस्सों में भी किसान अपने खेतों में हर साल बड़े पैमाने पर आग लगा देते हैं जिससे भारी वायु प्रदूषण फैलता है, और ये तो मालूम ही है कि वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है.

जलवायु और स्वच्छ वायु गठबन्धन सचिवालय की अध्यक्ष हेलेना मॉलिन वल्देस का कहना है, “जिस फ़िज़ाँ में हम साँस लेते हैं, उस वायुमण्डल की गुणवत्ता बेहतर करना हम सभी के स्वास्थ्य और सामान्य जीवन के लिये बहुत ज़रूरी है.”

ये स्वच्छ वायु पहल संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) ने शुरू की है. हेलेना मॉलिन वल्देस का कहना है, “ऐसा करना खाद्य सुरक्षा, जलवायु कार्रवाई, जिम्मेदार उत्पादन व उपभोग – और समानता के लिये बुनियादी महत्व रखता है. दरअसल, जब तक हम वायु की गुणवत्ता के बारे में गम्भीर नहीं होते, हम 2030 के टिकाऊ विकास एजेण्डा के बारे में बात तक करने योग्य नहीं होंगे.”

काला कार्बन

बहुत से किसान खेतों में ही फ़सलों को जला देना, ज़मीन की सफ़ाई, खाद डालने और खेतों को नई फ़सले के लिये तैयार करने का सबसे सस्ता और प्रभावी तरीक़ा समझते हैं. 

अलबत्ता, ये ध्यान देने की बात है कि खेतों में जलने वाली इस आग और इनसे भड़कने वाली जंगली आगें, दुनिया भर में काले कार्बन का सबसे बड़ा स्रोत हैं, जोकि इनसानों और पर्यावरण दोनों के स्वास्थ्य के लिये गम्भीर ख़तरा हैं. 

काला कार्बन पीएम2.5 का एक तत्वे है. पीएम2.5 प्रदूषण फैलाने वाला ऐसा सूक्ष्म कण है जो फेफड़ों और रक्त प्रवाह में गहराई से दाख़िल हो जाता है. पीएम2.5 इनसान में हृदय और फेफड़ों की बीमारी, आघात (स्ट्रोक) और कुछ तरह के कैंसर से मौत होने का ख़तरा बढ़ा देता है. इन कारणों से दुनिया भर में हर वर्ष लगभग 70 लाख लोगों की मौत होती है. 

पीएम2.5 बच्चों में भी मनोवैज्ञानिक और व्यवहार समस्याएँ पैदा कर सकता है, वृद्धों में, इसका सम्बन्ध अलज़ाइमर, पर्किन्सन और भूलने की बीमारियों से भी है. और वायु प्रदूषण के कारण साँस लेने सम्बन्धी स्वास्थ्य प्रणाली पर असर पड़ता है, इसके कारण कोविड-19 से संक्रमित होने का ख़तरा भी बढ़ जाता है.

दिल्ली और अन्य शहरों में ऑटोरिक्शा जैसे वाहनों से भी बहुत प्रदूषण फैलता है
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दिल्ली और अन्य शहरों में ऑटोरिक्शा जैसे वाहनों से भी बहुत प्रदूषण फैलता है

काला कार्बन को वैसे तो लघु अवधि वाला जलवायु प्रदूषक कहा जाता है, इसका मतलब है कि ये कुछ ही दिनों या सप्ताहों तक मौजूद रहता है, मगर, वैश्विक तापमान वृद्धि पर इस असर कार्बन डाय ऑक्साइड की तुलना में 460 से लेकर 1500 गुना ज़्यादा ताक़तवर होता है.

एक बेहतर रास्ता

विडम्बना ये है कि खेतों में बची-खुची फ़सलों को जलाने से विकास या फ़ायदा होने के बजाय नुक़सान ज़्यादा होता है क्योंकि इसके कारण ज़मीन में पानी बनाए रखने की क्षमता और और उत्पादकता में 25 से 30 प्रतिशत तक की कमी होती है. इस वजह से किसानों को ज़मीन की उत्पादकता बढ़ाने के वास्ते महँगे खाद, उर्वरकों और महँगा सिंचाई प्रणालियों का इस्तेमाल में भारी धन ख़र्च करना पड़ता है.

काला कार्बन वर्षा के रुझान में भी बदलाव कर सकता, ख़ासतौर से एशियाई मॉनसून में, जिससे मौसम सम्बन्धी उन घटनाओं में व्यवधान पैदा होता है जो खेत-बाड़ी के लिये अनुकूल होती हैं.

अन्तरराष्ट्रीय क्रायोस्फ़ेयर जलवायु पहल के निदेशक पाम पियर्सन का कहना है, “जलाई गई ज़मीन में दरअसल उत्पादकता कम होती है और उनके क्षरण की दर भी ज़्यादा होती है. किसान इस नुक़सान की भरपाई ज़्यादा खाद व उर्वरक का प्रयोग करके करते हैं.” इस संगठन ने दुनिया भर में किसानों को खेतों में आग लगाए बिना खेतीबाड़ी करने के तरीक़े सुझाने के क्षेत्र में काफ़ी काम किया है.

अफ़ग़ानिस्तान के हेरात में धूल भरी आँधी से बचने की कोशिश करता हुआ एक परिवार. वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है.
UNAMA/Fraidoon Poya
अफ़ग़ानिस्तान के हेरात में धूल भरी आँधी से बचने की कोशिश करता हुआ एक परिवार. वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है.

पाम पियर्सन का कहना है, “आग मुक्त विकल्पों में एक ये भी है कि पिछली फ़सल के बचे अवशेषों, पुआल या भूसे को खेदों में भी मिला दिया जाए, या फिर उसमें ही अगली फ़सल का बीजारोपड़ कर दिया जाए, ऐसा करने से किसानों को धन की काफ़ी बचत हो सकती है.”

पाम पियर्सन कहते हैं कि खेतों में ही पुरानी फ़सलें जलाने की लम्बे समय से चली आ रही आदतों को बदलने के लिये किसानों को शिक्षित करने, उन्हें जागरूक बनाने और उनकी क्षमताएँ बढ़ाने की ज़रूरत है. ये एक बहुत बड़ा काम है लेकिन इसके फ़ायदे अनगिनत व दीर्घकालीन होंगे.

मसलन, भारत के उत्तरी हिस्सों में, खेतों से निकलने वाले प्रदूषण को कम करने से, बाढ़ व सूखे के ख़तरे को कम किया जा सकता है, जिनके लिये काला कार्बन ज़िम्मेदार होता है. काले कार्बन से हिमालयी बर्फ़ और ग्लेशियर भी पिघलते हैं जोकि उन अरबों लोगों के लिये जीवन को ही बदल देने वाला प्रभाव छोड़ते हैं जिनका जीवन उन पहाड़ों से निकलने वाली नदियों पर निर्भर होता है.

विश्व व्यापी प्रयास

जलवायु और स्वच्छ वायु गठबन्धन खेतों में ही फ़सलों को जलाने देने के बेहतर विकल्पों को बढ़ावा देने के लिये देशों में क्षेत्रीय नैटवर्कों के साथ मिलकर काम करता है. मसलन, भारत में, ये गठबन्धन किसानों को खेतों में ही फ़सलें जलाने के विकल्पों के बारे में जानकारी और सहायता मुहैया कराता है. खेतों में लगाई जाने वाली आग की निगरानी करने और उनके असर का आकलन करने के लिये उपग्रहों की मदद लेता है.

ये गठबन्धन भारत में नीति निर्माण, किसानों को अनुदान मुहैया कराने और सबसे महत्वपूर्ण, खेतीबाड़ी से निकलने वाले कूड़े-कचरे को एक संसाधन में तब्दील करने का काम भी कर रहा है.

उरुग्वे में एक फ़सल का नज़ारा, दुनिया भर में बहुत से किसान नई फ़सल के लिये तैयारियों के तहत पुरानी फ़सल के बचे-खुचे हिस्से में आग लगा देते हैं जिससे कई तरह के नुक़सान होते हैं.
FAO/Sandro Cespoli
उरुग्वे में एक फ़सल का नज़ारा, दुनिया भर में बहुत से किसान नई फ़सल के लिये तैयारियों के तहत पुरानी फ़सल के बचे-खुचे हिस्से में आग लगा देते हैं जिससे कई तरह के नुक़सान होते हैं.

अपने यहाँ वायु प्रदूषण कम करना सभी देशों के लिये दुनिया भर में वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाने की दिशा में मिला-जुला, वैश्विक प्रयास है.

वर्ष 2020 में, 7 सितम्बर को, पहली बार, दुनिया नीले आकाश के लिये अन्तरराष्ट्रीय स्वच्छ वायु वर्ष मना रही है. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वायु गुणवत्ता को तात्कालिक प्राथमिकता के रूप में पहचान देने के वास्ते ये दिवस मनाए जाने को मंज़ूरी दी है. 

हम जिस तरह रहते हैं, उसमें बेहतरी के लिये बदलाव करने के वास्ते ये अन्तरराष्ट्रीय दिवस एक पुकार है – हम जितना वायु प्रदूषण करते हैं उसमें कमी करने के लिये – तब तक, जब तक कि दुनिया के हर हिस्से में हर व्यक्ति को साँस लेने के लिये स्वच्छ वायु उपलब्ध नहीं हो जाती.

ये लेख मूल रूप में यहाँ प्रकाशित हो चुका है - https://www.unenvironment.org/news-and-stories/story/farm-fresh-change-air